डीएसपी म्युचुअल फंड (DSP Mutual Fund) में इक्विटी प्रमुख विनीत सांब्रे ने शिवम त्यागी को ईमेल बातचीत में बताया कि भारतीय उद्योग जगत वित्त वर्ष 2025 की दूसरी तिमाही के लिए अपने वित्तीय नतीजे पेश करने को तैयार है। इसलिए भविष्य में बाजार धारणा आय वृद्धि पर निर्भर करेगी। इंटरव्यू के अंश:
पश्चिम एशिया में सुलगते तनाव के बीच अभी के बाजार के बारे में आपकी क्या धारणा है?
लंबी तेजी के बाद बाजार में मौजूदा कमजोरी को मंदी वाला बाजार समझने की गलती नहीं की जानी चाहिए। मूल्यांकन में बड़ी तेजी के बाद यह एक मामूली गिरावट है। इस गिरावट की कई वजह हैं जिनमें पश्चिम एशिया में बढ़ता तनाव और पिछली तिमाहियों की तुलना में आय वृद्धि की सुस्त रफ्तार मुख्य रूप से शामिल हैं। इसके अलावा लंबे समय तक कमजोरी के बाद प्रोत्साहन उपायों की उम्मीद से चीन के बाजार में संभावित सुधार के अनुमानों ने भी इसमें अहम योगदान दिया है।
पश्चिम एशिया के तनाव के कारण कच्चे तेल की कीमतों में इजाफा हुआ है जिससे भारतीय अर्थव्यवस्था प्रभावित हो सकती है क्योंकि देश कच्चे तेल का बड़ा आयातक है। बढ़ती तेल कीमतों से मुद्रास्फीति में इजाफा हो सकता है और व्यापार संतुलन गड़बड़ा सकता है। यदि टकराव और बढ़ा तो इससे तेल कीमतों में अनियंत्रित तेजी को बढ़ावा मिल सकता है। इसलिए बाजार धारणा कुछ समय तक सुस्त बनी रह सकती है।
यदि पश्चिम एशिया में संकट स्थानीय स्तर तक ही सीमित रहा तो क्या तेजी देखी जा सकती है? भारत में आप कौन से क्षेत्रों पर दांव लगा रहे हैं?
यह मानना सही है कि धारणा के चलते बाजार में कुछ उतार-चढ़ाव आएगा। संस्थागत और रिटेल निवेशकों दोनों के मजबूत घरेलू निवेश से गिरावट के उचित स्तरों पर खरीदारी आ सकती है। इसलिए ऐसा नहीं लगता कि हम लंबी मंदी के बाजार की ओर बढ़ रहे हैं क्योंकि छोटी गिरावट को खरीदारी के अवसर के तौर पर देखा जाएगा।
बैंकों और बीमा के अलावा कुछ ही क्षेत्र उचित मूल्यांकन पर कारोबार कर रहे हैं। हालांकि हम कंज्यूमर डिस्क्रेशनरी में संभावना देख रहे हैं क्योंकि इस क्षेत्र ने व्यावसायिक रफ्तार में सुस्ती दर्ज की है। लेकिन अनुकूल मॉनसून और मध्य और निम्न वर्ग के बीच बढ़ते आय स्तर की वजह से इसमें सुधार देखा जा सकता है।
हम किस तरह की गिरावट देख सकते हैं – समय या कीमत आधारित गिरावट?
इस समय विचार के लिए दो मुख्य बिंदु हैं- मूल्यांकन और आय वृद्धि। पिछले कुछ वर्षों में भारतीय बाजारों में मजबूत वृद्धि हुई है जिस से विभिन्न मानदंडों पर मूल्यांकन बढ़ा है। इसमें कुछ तेजी उचित थी क्योंकि यह विभिन्न क्षेत्रों में मजबूत आय वृद्धि के कारण आई थी। हालांकि तेज विस्तार की इस अवधि के बाद आय वृद्धि अब धीमी होती दिख रही है।
पश्चिम एशिया के अलावा, कौन से वैश्विक कारक अल्पावधि से मध्यावधि में भारतीय बाजार के लिए तेजी या मंदी का रुख पैदा कर सकते हैं?
हमें ब्याज दरों पर अमेरिकी फेडरल रिजर्व के रुख पर नजर रखने की जरूरत होगी क्योंकि इसका वैश्विक बाजारों पर व्यापक असर पड़ता है। हालांकि वैश्विक मुद्रास्फीति अपेक्षाकृत स्थिर बनी हुई है, फिर भी कई देशों के व्यापार बाधाएं खड़ी करने के कारण सावधानी बरतने की आवश्यकता है जिससे भविष्य में मुद्रास्फीति संबंधी दबाव पैदा हो सकते हैं। इन व्यापार प्रतिबंधों और मौजूदा भू-राजनीतिक अनिश्चितताओं के कारण वस्तुओं की कीमतें तेजी से अस्थिर हो गई हैं।