विदेशी ब्रोकरेज फर्म यूबीएस की एक ताजा रिपोर्ट से पता चलता है कि इक्विटी बाजारों की चाल बदलने में अहम योगदान रखने वाले विदेशी निवेशकों का प्रवाह पिछले कुछ वर्षों में फीका रहा है और छोटे निवेशक अब बढ़-चढ़कर निवेश कर रहे हैं। यह रिपोर्ट नवंबर 2020 में कराए गए उस सर्वे पर आधारित है जिसमें 95,000 रुपये महीने की औसत आय कमाने वाले शहरी उपभोक्ताओं पर ध्यान केंद्रित किया गया था।
यूबीएस में कार्यकारी निदेशक एवं इंडिया स्ट्रेटेजिस्ट सुनील तिरुमलाई ने 20 जनवरी को दीपोज्जल साहा और अक्षय गट्टानी के साथ मिलकर तैयार की गई रिपोर्ट में लिखा है, ‘कुल मिलाकर, जब हम म्युचुअल फंडों और प्रत्यक्ष शेयर खरीद के जरिये घरेलू इक्विटी बचत को देखें तो पता चलता है कि भारतीय परिवार एक प्रमुख ताकत हैं और पिछले दो वर्षों के दौरान विदेशी पोर्टफोलियो (एफपीआई) शुद्घ प्रवाह के मुकाबले इनका निवेश 25 प्रतिशत अधिक रहा है।’ इक्विटी में बढ़ती खुदरा भागीदारी की एक मुख्य वजह कोविड-19 की वजह से लगाया गया लॉकडाउन रहा जिससे निवेशकों ने अपनी बचत पूंजी बाजारों में लगाने और अपने निवेश पर बेहतर प्रतिफल पाने पर जोर दिया। यूबीएस ने कहा है कि एनएसई पर निवेशकों द्वारा भागीदारी वित्त वर्ष 2021 में अब तक बढ़कर 46 प्रतिशत रही, जबकि वित्त वर्ष 2020 में यह 39 प्रतिशत थी।
वित्तीय पूंजी
यूबीएस के अनुसार चालू वर्ष 2020 के 9 महीनों में भारतीय परिवारों की वित्तीय पूंजी 22 लाख करोड़ रुपये दर्ज की गई, जो पांच साल के टें्रड के मुकाबले 9 प्रतिशत ज्यादा है। जहां यूबीएस ने सुझाव दिया है कि यह कहना कठिन है कि भारतीय निवेशकों में इक्विटी निवेश के प्रति इतना भरोसा कैसे आया है, लेकिन इससे 200 अरब डॉलर की इस अतिरिक्त बचत को बढ़ावा मिला है। भारतीय स्टेट बैंक की आर्थिक शाखा एसबीआई इकोरैप का मानना है कि एसेंशियल/नॉन-डिस्क्रेशनरी और नॉन-एसेंशियल/डिस्क्रेशनरी उत्पाद श्रेणियों के संदर्भ में उपभोक्ताओं की खर्च आदतों में महामारी के दौरान बदलाव आया।
भारतीय स्टेट बैंक की 22 जनवरी की रिपोर्ट में समूह के मुख्य आर्थिक सलाहकार डॉ. सौम्य कांति घोष ने लिखा है, ‘डिस्क्रेशनरी खर्च की भागीदारी जहां फरवरी में कुल कार्ड खर्च के 35 प्रतिशतपर पहुंच गई थी, वहीं अप्रैल में यह गिरकर 15 प्रतिशत रह गई। अप्रैल से, डिस्क्रेशनरी खर्च की भागीदारी हालांकि 15 प्रतिशत और 35 प्रतिशत के बीच अस्थिर रही है जिससे संकेत मिलता है कि उपभोक्ता अभी भी डिस्क्रेशनरी खपत में तेजी को लेकर अनिश्चित बने हुए हैं, क्योंकि अर्थव्यवस्था के विभिन्न चरणों में पूरी तरह से खुलने को लेकर उपभोक्ताओं के मन में आशंकाएं बरकरार हैं।’
यूबीएस की रिपोर्ट में कहा गया है कि हालांकि बाजार-आधारित योजनाओं में निवेशित बचत की भागीदारी इस अवधि के दौरान 5 प्रतिशत पर रही, जो मुद्रा (17 प्रतिशत), बीमा, पेंशन और भविष्य निधि (31 प्रतिशत) में प्रवाह के मुकाबले काफी कम है।
रिपोर्ट में कहा गया है, ‘इक्विटी और इक्विटी म्युचुअल फंडों में प्रत्यक्ष रूप से करीब 78 और 74 प्रतिशत निवेश कर चुके निवेशकों ने कहा कि वे अगले एक साल के दौरान इक्विटी और इक्विटी म्युचुअल फंडों में अपनी बचत का हिस्सा बढ़ाना चाहेंगे।’
सुरक्षित विकल्प
यूबीएस ने कहा है कि 20 साल की बड़ी समय सीमा के संदर्भ में भारतीय परिवार अभी भी बीमा और सेवानिवृति बचत से संबंधित बाजार-केंद्रित योजनाओं के साथ साथ सुरक्षित निवेश विकल्पों को पसंद करते हैं।
रिपोर्ट में कहा गया है, ‘सुरक्षित परिसंपत्तियों के लिए भारतीय परिवारों का लगाव बढ़ा है। पिछले 20 साल में, जमाओं, नकदी और अन्य सुरक्षित परिसंपत्तियों के लिए भारतीय परिवारों की पसंद का मतलब है कि वे अपनी कुल वित्तीय पूंजी का करीब 60 प्रतिशत हिस्सा इन योजनाओं में बरकरार रखे हुए हैं, भले ही इन विकल्पों ने इक्विटी और म्युचुअल फंड जैसी योजनाओं के मुकाबले कम प्रतिफल दिया है।’