चालू कैलेंडर वर्ष 2025 में अब तक अमेरिकी डॉलर के मुकाबले रुपये में 4.1 फीसदी की गिरावट देखी गई है। बिज़नेस स्टैंडर्ड के एक सर्वेक्षण में शामिल अधिकांश उत्तरदाताओं के अनुसार, साल के अंत तक रुपये के 90 प्रति डॉलर के आसपास रहने की उम्मीद है। सर्वेक्षण में यह भी दिखाया गया है कि अधिकांश उत्तरदाताओं को उम्मीद है कि चालू वित्त वर्ष 2025-26 के अंत तक रुपया बढ़कर लगभग 88.50 प्रति डॉलर हो जाएगा। चालू वित्त वर्ष 2026 में अब तक रुपये में 4.3 फीसदी की गिरावट आई है।
अमेरिका के साथ व्यापार समझौते पर मुहर लगाने में हुई देरी और विदेशी पूंजी के बाहर जाने जैसे कारकों के कारण रुपये में बड़ी कमजोरी देखी गई, जिससे पिछले सप्ताह के दौरान यह मुद्रा 91 प्रति डॉलर के स्तर को पार कर गई।
काफी उतार-चढ़ाव भरे सप्ताह के दौरान रुपये ने लगातार चार सत्रों में नए निचले स्तर को छुआ और इसके बाद भारतीय रिजर्व बैंक (आरबीआई) के हस्तक्षेप के कारण रुपया सप्ताह के अंत में डॉलर के मुकाबले लगभग 1.3 फीसदी मजबूत हुआ। अस्थिर कारोबार के बीच यह 91.08 प्रति डॉलर और 89.25 प्रति डॉलर के बीच बना रहा।
शुक्रवार को कारोबार के आखिरी सत्र के दौरान रुपये में तेज बढ़त देखी गई जिसे आरबीआई द्वारा आक्रामक डॉलर बिक्री का सहारा मिला। शुक्रवार को घरेलू मुद्रा ने तीन वर्षों में सबसे बड़ी एक दिवसीय बढ़त दर्ज की और यह 1.1 फीसदी बढ़कर 89.29 प्रति डॉलर के स्तर पर आ गई जबकि पिछले सत्र में यह 90.26 प्रति डॉलर थी। पिछले हफ्ते, घरेलू मुद्रा ने छह महीने में सबसे बड़ी साप्ताहिक बढ़त भी दर्ज की क्योंकि आरबीआई ने डॉलर के मुकाबले एकतरफा गिरावट को रोकने के लिए हस्तक्षेप किया था।
बाजार के प्रतिभागियों ने कहा कि आरबीआई का यह कदम सटोरियों को बाहर निकालने और उन ट्रेडर के बीच दहशत पैदा करने के मकसद से था जिन्होंने डॉलर पर खरीद और रुपये पर बिक्री का दांव लगा रखा था। उन्होंने कहा कि केंद्रीय बैंक की लगातार दूसरे सत्र में डॉलर की बिक्री से संकेत मिलता है कि वह एकतरफा गिरावट को बर्दाश्त नहीं करेगा, जिससे सट्टेबाजी पर अंकुश लगाने के साथ ही बाजार में दोतरफा जोखिम बहाल करने में मदद मिलेगी।
आईडीएफसी फर्स्ट बैंक की मुख्य अर्थशास्त्री गौरा सेन गुप्ता ने कहा, ‘रुपये के कमजोर होने का कारण यह है कि देश में विदेशी धन कम आ रहा है और आरबीआई के पास रुपये को गिरने से बचाने के लिए पर्याप्त साधन नहीं हैं। इन दोनों कारकों में जल्द बदलाव आने की संभावना नहीं है भले ही अमेरिका के साथ व्यापार समझौते पर मुहर लग जाए। ऐसे में हम उम्मीद करते हैं कि मध्यम अवधि में गिरावट का दबाव फिर से बढ़ेगा, हालांकि वित्त वर्ष 2027 में गिरावट की रफ्तार ज्यादातर मध्यम रहने की उम्मीद है।’
गुप्ता के अनुसार रुपये में निकट अवधि की स्थिरता आरबीआई के हस्तक्षेप, अमेरिका के साथ व्यापार समझौते और मौसमी कारकों के कारण आएगी। उन्होंने कहा, ‘अक्टूबर 2025 से आरबीआई के हस्तक्षेप पैटर्न में बदलाव आया है और साथ ही इसके द्वारा विदेशी मुद्रा हस्तक्षेप में वृद्धि हुई है। अगर भारत, अमेरिका के साथ व्यापार समझौते पर मुहर लगाता है तो इससे बाजार धारणा में सुधार होगा और वित्त वर्ष 2027 में चालू खाता घाटे के जोखिम कम होंगे।’
आईडीएफसी फर्स्ट बैंक की मुख्य अर्थशास्त्री गौरा सेन गुप्ता ने कहा मौसमी कारक भी चौथी तिमाही में रुपये के लिए सहायक हो जाते हैं क्योंकि व्यापार घाटा कम होता है और भुगतान संतुलन अधिशेष में होता है।
सर्वेक्षण में शामिल प्रतिभागियों ने कहा कि नवंबर में सीमित होने के बावजूद, व्यापार घाटा हाल के महीनों में अपेक्षा से अधिक रहा है। व्यापार सौदा अब भी दूर की कौड़ी है और नकारात्मक खबरों की अनुपस्थिति के बावजूद बार-बार होने वाली देरी से बाजार की धारणा पर दबाव पड़ रहा है। साथ ही, आरबीआई के पास रुपये को गिरने से बचाने के लिए अधिक कुछ करने की गुंजाइश कम हो सकती है।
ऐसा इसलिए है क्योंकि उसने पहले से ही रुपये और डॉलर के बीच भविष्य में होने वाले सौदे और विदेशी बाजारों के सौदों यानी ‘नॉन-डिलिवरेबल फॉरवर्ड’ (एनडीएफ) और ‘ऑनशोर फॉरवर्ड’ बाजारों में बड़ी मात्रा में शॉर्ट यानी बिक्री की पोजीशन ले रखी हैं। इस वजह से, भविष्य में जरूरत पड़ने पर हस्तक्षेप करने के लिए, आरबीआई को 88.80 के स्तर के आसपास कुछ पोजीशन वापस लेना पड़ सकता है।
फॉरवर्ड मार्केट पोजीशन पर ताजा आंकड़ों के अनुसार, आरबीआई ने इस साल जून और अक्टूबर के बीच विदेशी मुद्रा बाजार में लगभग 30 अरब डॉलर के साथ हस्तक्षेप किया है जो जून-सितंबर के दौरान 18 अरब डॉलर और अक्टूबर में 10 अरब डॉलर था। आरबीआई की शॉर्ट डॉलर फॉरवर्ड पोजीशन अक्टूबर के अंत तक बढ़कर 63 अरब डॉलर हो गई, जबकि सितंबर के अंत में यह 59 अरब डॉलर थी। अक्टूबर में, आरबीआई रुपये को 88.80 के स्तर से नीचे जाने से रोकने के लिए लगातार डॉलर की आपूर्ति कर रहा था।
आईएफए ग्लोबल के संस्थापक और सीईओ अभिषेक गोयनका ने कहा, ‘विदेशी पोर्टफोलियो निवेशकों (एफपीआई) की आवक को लेकर अब भी भ्रम है। नवंबर में व्यापार घाटा कम तो हुआ है लेकिन यह हाल के महीने में अपेक्षा से अधिक रहा है।’
गोयनका ने कहा, ‘बाजारों में हस्तक्षेप करने की आरबीआई की क्षमता एनडीएफ और ऑनशोर फॉरवर्ड बाजारों में पहले से ही बड़ी शॉर्ट पोजीशन से बाधित हो सकती है, जिससे केंद्रीय बैंक संभावित रूप से भविष्य में हस्तक्षेप के लिए भंडार संरक्षित करने के लिए 88.80 के स्तर के आसपास बने कुछ शॉर्ट सौदों को जरूरी होने पर कम करने पर मजबूर हो सकता है। इन कारकों से रुपये के लिए 88.00 रुपये प्रति डॉलर के आसपास एक मजबूत आधार मिलने की उम्मीद है और रुपये के आगे भी एक दायरे में बने रहने की संभावना है।’