विश्व के तीसरे सबसे बड़े ग्रॉसरी रिटेलर टेस्को पीएलसी के साथ हुए फ्रेंचाइजी समझौते से टाटा की ट्रेंट को तुरंत कोई फायदा होता नहीं दिखता है।
लंबी अवधि में टेस्को से हुए समझौते का फायदा ट्रेंट को मिलना चाहिए क्योंकि टेस्को के पास तकनीकी कुशलता है। इसके अलावा शायद कंपनी को टेस्को के इंडिया में कैश एंड कैरी ऑपरेशन से भी फायदा मिलना चाहिए। इससे ट्रेंट की ज्यादा उत्पादों तक पहुंच हो जाएगी।
इसके अलावा टेस्को देश के हाईपरमार्केट बाजार में ट्रेंट की किसी प्रतियोगी को सेवाएं प्रदान नहीं करेगी। इसतरह ट्रेंट की टेस्को के साथ एक एक्सक्यूजिव डील है लेकिन इसका मतलब यह नहीं है कि ट्रेंट को टेस्को से कोई प्रेफेंशियल प्राइसिंग हासिल होगी।
अगर बाद में प्रत्यक्ष विदेशी निवेश की सीमा में कोई परिवर्तन किया जाता है तो और विदेशी कंपनियों को भी देश में अपने रिटेल ऑपरेशन के लिए मदद मिलती है तो यह देखना जरूरी होगा कि ट्रेंट का टेस्को के साथ समझौता कैसे काम करता है।
ट्रेंट जो वर्तमान में वेस्टसाइड, स्टार बाजार और लैंडमार्क फॉरमेट में 50 स्टोर का परिचालन करती है, अपने स्टोर को खोलने की जल्दी में नही है, इसके बावजूद भी कि कंपनी के पास पर्याप्त पूंजी है। हालांकि कंपनी प्रबंधन का कहना है कि वह तीन सालों के भीतर 50 नए हाइपरमार्केट स्टोर खोलेगा।
इसके अतिरिक्त इस रिटेल कंपनी ने रियल एस्टेट कंपनियों के साथ भी अरैंजमेंट किया है और उसके वेस्टसाइड और लैंडमार्क के ज्यादा स्टोर खोलने चाहिए। पिछले वित्त्तीय वर्ष में ट्रेंट का राजस्व महज 13.7 फीसदी बढ़कर 514.16 करोड़ रुपए रहा। जबकि कंपनी के ऑपरेटिंग प्रॉफिट में 0.5 फीसदी की कमी आई और यह 15.22 करोड़ के स्तर पर आ गया।
कंपनी का शुध्द लाभ भी 32.86 करोड़ के सपाट स्तर पर रहा। इसकी वजह कंपनी की ऊंची अन्य आय रही। रियल एस्टेट में लागतों के कम न होने की वजह से कंपनी की टॉपलाइन ग्रोथ उत्साहजनक नहीं रही। कंपनी की प्रति शेयर आय भी वित्त्तीय वर्ष 2007 केस्तर 20.37 रुपए से घटकर पिछले वित्त्तीय वर्ष में 17.89 फीसदी के स्तर पर आ गई।
ट्रेंट ने हाल ही में 160 करोड़ रुपए राइट इश्यू के जरिए जबकि 90 करोड़ रुपए प्रेफेंशियल इश्यू के जरिए जुटाए हैं। गुरुवार को कंपनी के शेयर की कीमत में 10 फीसदी से भी ज्यादा सुधार आने की यह भी वजह रही। मौजूदा बाजार मूल्य 546 रुपए पर कंपनी के स्टॉक का कारोबार वित्त्तीय वर्ष 2009 में अनुमानित आय से 26 गुना के स्तर पर हो रहा है।
स्टर्लाइट-माइनिंग प्रॉफिट
उड़ीसा की लांजीगढ़ बाक्साइट की खान के खनन की अनुमति कोर्ट के द्वारा मिलने के बाद 24,705 करोड़ की स्टर्लाइट को राहत की सांस मिलने की उम्मीद है। हालांकि इससे स्टर्लाइट से ज्यादा मूल कंपनी वेंदाता समूह को फायदा मिलेगा।
इसकी वजह है कि वेंदाता के पास एल्यूमिना रिफायनरी प्रोजेक्ट-वेंदाता एल्यूमिना में 70 फीसदी से भी ज्यादा की हिस्सेदारी है। जिसकी क्षमता 11 लाख टन प्रति वर्ष है। वेंदाता एल्यूमिना में स्टर्लाइट की मात्र 30 फीसदी हिस्सेदारी है। लेकिन स्टर्लाइट के प्रबंधकों का कहना है कि बॉक्साइट की बिक्री से हुई कमाई का कंपनी के वित्त्तीय वर्ष 2010 में अनुमानित संचित लाभ 4100 करोड़ में बहुत कम हिस्सेदारी होगी।
अगर कोई देर नहीं होती है तो खान से खनन नौ महीनों में शुरू हो जाना चाहिए। लंजीगढ़ बॉक्साइट माइन में 770 लाख टन का अनुमानित रिजर्व है और यह रिफायनरी के काफी निकट स्थित है। खान से रिफायनरी को सप्लाई ट्रांसफर प्राइसिंग के आधार पर होगी। उत्पादन की लागत काफी कम होगी और प्रबंधन का मानना है कि यह 450 डॉलर प्रति टन की जगह 250 डॉलर प्रति टन होगी।
स्टर्लाइट की संचित कुल बिक्री में छह फीसदी की कमी आई है और जून 2008 की तिमाही में यह घटकर 5,770 करोड़ रुपए पर आ गया है। जिंक और सीसा दोनों की बिक्री में करीब 40 फीसदी की गिरावट आई। जिंक की कीमतों में 37 फीसदी के वॉल्यूम ग्रोथ की वजह से 42 फीसदी की गिरावट आई।
जिंक का उत्पादन प्लांट में आ रही रुकावट की वजह से प्रभावित हुआ है और सितंबर तिमाही में भी इसके कमजोर रहने की संभावना है। एल्यूमिनियम की बिक्री 35.8 फीसदी बढ़कर 398 करोड़ रुपए पर रही। जिसकी वजह सात फीसदी का बेहतर रियलाइजेशन रहा।
यद्यपि कंपनी का पूंजीगत खर्चा महज एक फीसदी घटा, लेकिन ऑपरेटिंग प्रॉफिट मार्जिन 3.5 फीसदी अंक गिरकर सालाना आधार पर 31.6 फीसदी के स्तर पर आ गया और शुध्द लाभ भी 115 करोड़ के सपाट स्तर पर रहा।
स्टर्लाइट को करीब 25,000 करोड़ से 26,000 करोड़ का राजस्व प्राप्त होनें की संभावना है। उसने जारी वित्त्तीय वर्ष में 4100 करोड़ के शुध्द लाभ का लक्ष्य बनाया है। कंपनी के स्टॉक में जनवरी की ऊंचाई से अब तक 42 फीसदी की गिरावट आई है और मौजूदा समय में इसका कारोबार 597 रुपए पर हो रहा है।