बोफा का कहना है कि अगला साल भारतीय शेयर बाजार के लिए उतार-चढ़ाव भरा वर्ष साबित हो सकता है। ब्रोकरेज का कहना है कि निफ्टी मौजूदा सूचकांक घटकों की 18.8 गुना एक वर्षीय आगामी आय के दीर्घावधि औसत के मुकाबले 20.7 गुना पर कारोबार कर रहा है। इसके अलावा, भारत 45 प्रतिशत के दीर्घावधि औसत के मुकाबले अपने उभरते बाजार प्रतिस्पर्धियों के मुकाबले 98 प्रतिशत की तेजी पर कारोबार कर रहा है।
भारत में बोफा सिक्योरिटीज में शोध प्रमुख अमीष शाह ने कहा, ‘हम इस तेजी की मात्रा पर चर्चा कर सकते हैं, लेकिन बाजार महंगे बने हुए हैं। यह हमारी मुख्य चिंताओं में से एक है।’ चीन की आर्थिक वृद्धि और नीतियों में सुधार से इस तेजी में नरमी आ सकती है। ब्रोकरेज का कहना है कि इसके अलावा, वित्त वर्ष 2023 और वित्त वर्ष 2024 के लिए आय अनुमानों में बड़ी कमी की जा सकती है।
शाह ने कहा, ‘दुनिया में मंदी का जोखिम है। भारत की निर्यात वृद्धि और अमेरिका तथा यूरोप की आर्थिक वृद्धि के बीच संबंध है। अमेरिका में मंदी से जुड़े घटनाक्रम का भारत के लिए निर्यात वृद्धि पर प्रभाव पड़ा है। शेयर बाजार की तेजी सीमित बनी रहेगी।’
हालांकि भारतीय इक्विटी बाजारों में मजबूत घरेलू प्रवाह की वजह से ज्यादा गिरावट की आशंका नहीं है। पेंशन फंड, बीमा फंड और एसआईपी का अगले साल भारतीय इक्विटी में कम से कम 20 अरब डॉलर का योगदान रह सकता है।
हालांकि विदेशी पोर्टफोलियो निवेशक (एफपीआई) की लगातार निकासी से बाजारों पर दबाव बढ़ सकता है, लेकिन बिकवाली बढ़ने की आशंका सीमित है, क्योंकि एफपीआई स्वामित्व वर्ष के निचले स्तर पर है। इसके अलावा, घरेलू वित्तीय परिसंपत्तियों में बड़ा बदलाव देखा जा रहा है, क्योंकि वित्तीय बचत का बड़ा हिस्सा जमाओं के बजाय इक्विटी और छोटी बचत में लग रहा है।
शाह ने कहा, ‘शुद्ध आधार पर पूंजी प्रवाह से बाजारों को मदद मिल सकती है। बाजार महंगे हैं और मजबूत प्रवाह की वजह से महंगे बने रहेंगे।’ क्या चीन में हालात सामान्य होने से भारत में पूंजी प्रवाह प्रभावित होगा, इस बारे में शाह ने कहा कि भारत और चीन उभरते बाजार के निवेश प्रवाह के लिए प्रतिस्पर्धा नहीं करते हैं और उनका प्रत्यक्ष रूप से जुड़ाव है। ईएम बाजारों में एफपीआई प्रवाह का मतलब भारत में निवेश बढ़ना होगा।