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वैश्विक बाजारों से कम है भारतीय बाजारों का रिटर्न

Last Updated- December 12, 2022 | 6:01 AM IST

सोमवार की गिरावट ने प्रदर्शन के मोर्चे पर वैश्विक इक्विटी बाजारों के मुकाबले भारतीय इक्विटी बाजार को निचले पायदान पर ला दिया। देसी बेंचमार्क सेंसेक्स अप्रैल में और एक महीने की अवधि में भी सभी अहम वैश्विक बाजारों के मुकाबले पिछड़ रहा है और इसमें अमेरिकी डॉलर के लिहाज से क्रमश: 5.8 फीसदी व 8.8 फीसदी की गिरावट आई है।
किस्मत में तेज सुधार के कारण फरवरी के मध्य तक भारत सबसे अच्छा प्रदर्शन करने वाले वैश्विक बाजारों में से एक था और उसका रिटर्न 10 फीसदी से ज्यादा रहा था।
कोविड-19 के मामलों में फिर से हो रही बढ़ोतरी और लॉकडाउन के कारण अर्थव्यवस्था में सुधार की उम्मीद धूमिल हुई है। साथ ही कंपनियों की आय में भी सुधार की उम्मीद फीकी पड़ी है। इस वजह से विदेशी निवेशक यहां बिकवाली कर रहे हैं।
वैश्विक निवेशक अपना ध्यान विकसित बाजार पर लगा रहे हैं और अमेरिका व यूरोप बड़े मार्जिन के साथ उभरते बाजारों के मुकाबले बेहतर प्रदर्शन कर रहे हैं। अमेरिका में एसऐंडपी-500 इस महीने चार फीसदी चढ़ा है जबकि यूरो स्टॉक्स-50 में 3 फीसदी की बढ़ोतरी दर्ज हुई है, जो यूरोपीय इक्विटी के प्रदर्शन की माप करता है। विश्लेषकों ने कहा कि विविध प्रदर्शन एक संकेत है कि निवेशक इस महामारी से असमान वैश्विक रिकवरी की संभावना देख रहे हैं। महामारी पर लगाम कसने को लेकर बेहतर पकड़ और टीकाकरण के काम में तेजी ने विकसित बाजारों का आकर्षण बढ़ाया है।
एवेंडस कैपिटल ऑल्टरनेट स्ट्रैटिजीज के सीईओ एंड्रयू हॉलैंड ने कहा, अमेरिका में टीकाकरण काफी तेजी से हो रहा है। उनकी अर्थव्यवस्था काफी तेजी से दोबारा खुलेगी और आय भी तेजी से रफ्तार पकड़ेगी। बाइडन की बुनियादी ढांचे में निवेश की योजना अर्थव्यवस्था को मजबूती देगी। ब्रिटेन में भी ऐसी ही स्थिति है। एशिया में टीकाकरण का काम सुस्त रफ्तार से चल रहा है। इसी वजह से विदेशी फंडों का प्रवाह यहां से बाहर जा रहा है।
अप्रैल में अब तक भारत ने 14 लाख कोविड के नए संक्रमण के आंकड़े दर्ज किए हैं और इस तरह से उसने अमेरिका के बाद दूसरे सबसे ज्यादा प्रभावित देश ब्राजील को पीछे छोड़ दिया।
रुपये में गिरावट विदेशी निवेशकों की देसी शेयरों व डेट में निवेश की इच्छा पर ग्रहण लगा रहा है। इस महीने डॉलर के मुकाबले रुपया तीन फीसदी टूटा है। आरबीआई की तरफ से इस तिमाही में 1 लाख करोड़ रुपये के बॉन्ड खरीदने की घोषणा के बाद देसी बॉन्ड प्रतिफल में आई कमी के बीच रुपये में कमजोरी आई है।
नोमूरा की मुख्य अर्थशास्त्री (भारत व एशिया-जापान को छोड़कर) सोनल वर्मा ने कहा, उभरते बाजारों – इंडोनेशिया, भारत व फिलिपींस में केंद्रीय बैंकों की आने वाले समय की चुनौतियां निरुत्साहित करने वाली हैं। उन्होंने कहा, अब अमेरिकी में बढ़त का उम्दा प्रदर्शन, विकसित बाजारों में बॉन्ड प्रतिफल में बढ़ोतरी और फेडरल रिजर्व के कदम की संभावना से निवेशक ज्यादा जोखिम प्रीमियम की मांग कर रहे हैं। विशेषज्ञों ने कहा कि वैक्सीन में अंतर से विकसित बाजारोंं को विकासशील बाजारों पर बढ़त मिल सकती है। भारत जैसे बाजारों को जो चीजें झटका दे सकती है वह यह है कि अगर अमेरिकी डॉलर और बॉन्ड प्रतिफल में बढ़ोतरी होती है तो दुनिया की सबसे बड़ी अर्थव्यवस्था का भविष्य भी सुधरेगा।
पांच महीने के अंतराल के बाद विदेशी निवेशक शुद्ध बिकवाल बन गए हैं। विशेषज्ञों का कहना है कि अगर देश में कोविड-19 की स्थिति और बिगड़ती है तो यहां से और निवेश निकासी की संभावना से इनकार नहीं किया जा सकता।

First Published - April 12, 2021 | 11:16 PM IST

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