दो साल पहले आज के ही दिन बाजार में एक दिन की सबसे बड़ी गिरावट में से एक देखने को मिली थी और बाजार 13 फीसदी टूट गया था क्योंकि कोविड-19 संक्रमण दुनिया भर में फैलना शुरू हो गया था, जिससे सरकारों को पूर्ण रूप से बंदी की घोषणा करने के लिए बाध्य होना पड़ा था। इससे आर्थिक परिदृश्य पर सवालिया निशान लग गया था।
शेयरों में साल 2020 के उच्चस्तर से 40 फीसदी से ज्यादा की गिरावट दर्ज हुई थी क्योंंकि निवेशक जीविका व अर्थव्यवस्था पर महामारी के असर से दो-चार हो रहे थे।
निराशाजनक माहौल के बीच जब बाजारों ने 23 मार्च, 2020 को कोविड-19 का निचला स्तर बनाया था तो शायद ही किसी ने अनुमान लगाया होगा कि कुछ ही महीनों में बाजार दोगुने से ज्यादा हो जाएगा।
आक्रामक प्रोत्साहन पैकेज और महामारी के बाद सरकारों व वैश्विक केंद्रीय बैंकों खास तौर से अमेरिकी फेडरल रिजर्व के कदमों से शेयरों ने उड़ान भरी।
अल्फानीति फिनटेक के सह-संस्थापक यू आर भट्ट ने कहा, मौद्रिक सहजता के साथ केंद्रीय बैक के हस्तक्षेप ने पूरा खेल ही बदल दिया। इसका काफी हद तक श्रेय केंद्रीय बैकों को जाता है। अब अर्थव्यवस्था में सुधार होने लगा है, ऐसे में बाजार प्रोत्साहन पैकेज की वापसी को ठीक ही मान रही है क्योंंकि वह आत्मविश्वास से लबरेज है।
बाजार का रिटर्न अभी भी बेहतर है और दो साल का निफ्टी का रिटर्न 2.3 गुना है जबकि निफ्टी मिडकैप 100 व स्मॉलकैप 100 का रिटर्न क्रमश: 2.7 गुना व 3.1 गुना है, जो और भी बेहतर है।
हालांकि ये तीनों सूचकांक पिछले साल महामारी के बाद बनाए अपने-अपने उच्चस्तर से नीचे आए हैं क्योंकि विदेशी निवेशकों ने निवेश की निकासी की है, जिसकी वजह फेडरल रिजर्व की तरफ से ब्याज दर में बढ़ोतरी व बैलेंस शीट का आकार घटाने का फैसला है।
महामारी के बाद अर्थव्यवस्था व बाजारों ने अलग-अलग रुख अपनाया है। इक्विनॉमिक्स के संस्थापक जी चोकालिंगम ने कहा, महामारी के झटके के बाद अर्थव्यवस्था में नरमी देखने को मिली। महामारी भी चरणों या लहर के तौर पर आई। इससे बाजारों को समझदार बने रहने में मदद मिली। जीडीपी में हालांकि तत्काल गिरावट आई, लेकिन लोगों को भरोसा था कि अर्थव्यवस्था में सुधार होगा।
दो साल का बाजारों का रिटर्न हालांकि काफी बेहतर नजर आ रहा है लेकिन महामारी के पहले के उच्चस्तर के मुकाबले यह बढ़त मामूली नजर आ रही है। एमएससीआई इमर्जिंग मार्केट व एमएससीआई वल्र्ड का रिटर्न इस अवधि में क्रमश: 7.2 फीसदी व 25 फीसदी ही रहा।
महामारी के बाद भारत वैश्विक स्तर पर बेहतर गंतव्य में से एक रहा है। इस बेहतर प्रदर्शन का श्रेय देसी पूंजी के बाजार में आने को दिया जा रहा है।
स्वतंत्र बाजार विश्लेषक अंबरीश बालिगा ने कहा, भारतीय बाजारों को जिसने बचाया, वह है खुदरा निवेशकों की ताकत। हम कभी सोच भी नहीं सकते कि खुदरा निवेशक बाजार का रुख करेंगे। विगत में हमने खुदरा भागीदारी में भारी उछाल देखा है। हालांकि यह पहला मौका है जब हमे खुदरा निवेशकों को बाजारों की अगुआई करते देखा। कोविड के बाद की तेजी का यह सबसे बड़ा फायदा है।
अक्टूबर से ही विदेशी पोर्टफोलियो निवेशकों ने देसी बाजार से 2.1 लाख करोड़ रुपये निकाले हैं। विगत में ऐसी बिकवाली से बाजारों में गिरावट देखने को मिली है। हालांकि इस बार बेंचमार्क सूचकांकों ने एक अंकों की गिरावट के साथ ही रह गया।
चोकालिंगम ने कहा, मोटे तौर पर जब एफपीआई बड़ी मात्रा में बिकवाली करते हैं तो बाजार गिरता है। इस बार ऐसा नहीं हुआ, जिसकी वजह खुदरा निवेशक हैं, जो बाजार में आए। लीमन संकट के दौरान देसी संस्थागत निवेशकों का निवेश मजबूत था, लेकिन वह बाजार को एकीकृत करने में नाकाम रहा था। इस बार डीआईआई की खरीदारी को खुदरा निवेशकों ने भी सहारा दिया और बाजार एफपीआई की बिकवाली के दबाव के बाद भी काफी हद तक खड़ा रहा।