स्विट्जरलैंड के विदेशी पोर्टफोलियो निवेशकों (एफपीआई) को अब भारत में अपनी आय पर 5 प्रतिशत के बजाय 10 प्रतिशत का ऊंचा लाभांश कर देना होगा, क्योंकि देश ने लाभकारी कर दर को वापस लेने की घोषणा की है।
अक्टूबर 2023 में नेस्ले के लिए विदहोल्डिंग टैक्स के रिफंड मामले में सुप्रीम कोर्ट के फैसले के बाद, स्विस अधिकारियों ने अब विदहोल्डिंग टैक्स की एकतरफा कटौती को वापस ले लिया है और डबल टैक्स अवॉयडेंस एग्रीमेंट (डीटीएए) के तहत भारत के साथ सर्वाधिक पसंदीदा राष्ट्र (एमएफएन) क्लॉज के एकतरफा आवेदन को निलंबित कर दिया है।
एक्विलॉ में कार्यकारी निदेशक (टैक्स) राजर्षि दासगुप्ता ने कहा, ‘इससे एफपीआई का प्रबंधन करने वाले स्विस बैंकों पर असर पड़ सकता है। दोहरे कराधान की समस्या हो सकती है। इससे भारतीय संस्थाओं के लिए कर देनदारियों में इजाफा हो सकता है। हालांकि ऐसी घोषणा से 2018-2014 के कर वर्षों के दौरान प्राप्त आय प्रभावित नहीं होगी और स्विट्जरलैंड में परिचालन कर रही भारतीय कंपनियां भारत-स्विट्जरलैंड डीटीएए के तहत मिलने वाले अन्य लाभ (जैसे कि तकनीकी सेवाओं के लिए रॉयल्अी और शुल्क पर कर राहत आदि) का फायदा उठाने में सक्षम बनी रहेंगी।’
हालांकि, जब संपत्ति और भारत में निवेश की बात आती है तो स्विट्जरलैंड शीर्ष 10 एफपीआई क्षेत्राधिकारों में शुमार नहीं है, लेकिन इस क्षेत्राधिकार से 90 एफपीआई पंजीकृत हैं।
हाल में एक अन्य स्विस बैंकिंग दिग्गज क्रेडिट सुइस का नियंत्रण हासिल करने वाली यूबीएस देश से बाहर परिचालन करने वाले मुख्य एफपीआई में से एक है।
किंग स्टब ऐंड कसीवा, एडवोकेट्स ऐंड अटॉर्नीज में पार्टनर सिंधुजा कश्यप ने कहा, ‘लाभांश पर विदहोल्डिंग कर दरें अब बढ़ने की संभावना है, जिससे इन निवेशकों के लिए कर-पश्चात शुद्ध रिटर्न कम हो जाएगा। एफपीआई के लिए (जो आम तौर पर कम प्रतिफल मार्जिन पर काम करते हैं) कर में इस तरह की वृद्धि अन्य उभरते बाजारों या अधिक अनुकूल कर व्यवस्था प्रदान करने वाले क्षेत्राधिकारों की तुलना में भारतीय इक्विटी के आकर्षण को काफी हद तक प्रभावित कर सकती है।’
कश्यप का कहना है कि स्विस एफपीआई को अपने निवेश पोर्टफोलियो का पुनर्मूल्यांकन करने के लिए बाध्य होना पड़ सकता है, तथा अधिक पूर्वानुमानित और निवेशक-अनुकूल कर व्यवस्था वाले क्षेत्राधिकारों में पूंजी का पुनः आवंटन करना पड़ सकता है।
अक्टूबर 2023 में, भारत की सर्वोच्च अदालत ने दिल्ली उच्च न्यायालय के उस फैसले को पलट दिया, जिसमें डीटीएए के एमएफएन क्लॉज के तहत लाभकारी कर दरों के आवेदन को बरकरार रखा गया था। सर्वोच्च न्यायालय के आदेश के अनुसार, आयकर अधिनियम की धारा 90 के अनुसार अधिसूचना के अभाव में एमएफएन क्लॉज प्रत्यक्ष रूप से लागू नहीं होता है। भारत और स्विट्जरलैंड ने 1994 में प्रत्यक्ष कर समझौते पर हस्ताक्षर किए थे, जिसे बाद में 2000 और 2010 में संशोधित किया गया, जिसके तहत लाभांश पर मूल कर की दर 10 प्रतिशत थी।
वर्ष 2010 में दोनों देशों के बीच हस्ताक्षरित प्रोटोकॉल के तहत, यदि भारत किसी तीसरे देश (जो ओईसीडी का सदस्य है) के लिए लाभांश या ब्याज पर कराधान को कम दर तक सीमित कर देता है, तो वही दर स्विट्जरलैंड और भारत के बीच लागू होगी।
भारत ने बाद में लिथुआनिया और कोलंबिया के साथ समझौते किए और लाभांश पर 5 प्रतिशत कर दर निर्धारित की। दोनों देश 2018 और 2020 में ओईसीडी में शामिल हुए, जिससे स्विस संस्थाएं भी लाभकारी कर के लिए पात्र बन गईं।