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Stock Market: भारतीय शेयर बाजार को बदलने वाले नीतियों के मास्टर: मनमोहन सिंह की कहानी

पहले कार्यकाल में आर्थिक सुधारों और कर्ज को कम करके शेयर बाजार को दी मजबूती, लेकिन दूसरे कार्यकाल में विवादों और धीमी वृद्धि ने बढ़ाई चुनौतियां

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सुन्दर सेतुरामन   
Last Updated- December 28, 2024 | 11:23 AM IST

डॉ. मनमोहन सिंह के प्रधानमंत्री के रूप में पहले कार्यकाल (2004-2009) में शेयर बाजार ने शानदार प्रदर्शन किया। इस दौरान सेंसेक्स में 180% और निफ्टी में 172% की बढ़त दर्ज की गई। हालांकि, शेयर बाजार में सबसे अच्छा प्रदर्शन पी. वी. नरसिम्हा राव के प्रधानमंत्री रहते हुए हुआ। उस समय सेंसेक्स ने 181% और निफ्टी ने 171.4% की बढ़त हासिल की। उस दौर में डॉ. मनमोहन सिंह वित्त मंत्री थे और उन्होंने देश को आर्थिक सुधारों के जरिए गंभीर वित्तीय और भुगतान संकट से उबारा।

मनमोहन सिंह के वित्त मंत्री रहते कई अहम आर्थिक सुधार किए गए, जिनसे शेयर बाजार को मजबूती मिली। इस दौरान सेबी को वैधानिक अधिकार दिए गए। साथ ही, पब्लिक इश्यू को मंजूरी देने का अधिकार वित्त मंत्रालय से हटाकर सेबी को सौंपा गया और कंट्रोलर ऑफ कैपिटल इश्यूज का दफ्तर खत्म कर दिया गया।

खुला बाजार: भारतीय शेयर बाजार और अर्थव्यवस्था में बदलाव

आर्थिक सुधारों के तहत म्यूचुअल फंड उद्योग में प्राइवेट सेक्टर को एंट्री की अनुमति दी गई और विदेशी पोर्टफोलियो निवेशकों (FPI) को भारतीय शेयर बाजार में निवेश की इजाजत मिली। सितंबर 2024 तक, म्यूचुअल फंड्स भारतीय कंपनियों के कुल बाज़ार पूंजीकरण का 9.5% और FPI 17.5% हिस्सेदारी रखते हैं।

नवंबर 2024 तक, भारत में म्यूचुअल फंड निवेशकों की संख्या 5.18 करोड़ तक पहुंच गई है। विदेशी पोर्टफोलियो निवेशकों के प्रवेश के बाद भारतीय बाजारों में पहली बार औपचारिक रूप से इक्विटी रिसर्च शुरू हुई।

FPI का भारतीय बाजार पर असर

फर्स्ट ग्लोबल की चेयरपर्सन और मैनेजिंग डायरेक्टर देविना मेहरा ने कहा, “FPI के आगमन से भारतीय बाजारों में प्रोफेशनलिज़्म आया। इसके पहले सिक्योरिटी रिसर्च जैसी चीजें नहीं थीं और न ही कंपनियों के पास निवेशकों से संबंधित विभाग होते थे।”

उन्होंने बताया कि आर्थिक सुधारों का एक बड़ा प्रभाव वेतन के स्तर पर दिखा। 1980 के दशक के अंत से 2000 तक, कई उद्योगों में वेतन का स्तर पूरी तरह बदल गया। आईटी और आईटी-सक्षम सेवाओं का क्षेत्र इस दौरान तेजी से बढ़ा। इससे अर्थव्यवस्था को न केवल रोजगार मिला बल्कि पेमेंट बैलेंस भी सुधरा।

शेयर बाजार में रिसर्च की बढ़ती भूमिका

अल्फानीति फिनटेक के डायरेक्टर और चीफ इन्वेस्टमेंट स्ट्रैटेजिस्ट यूआर भट्ट ने कहा कि इक्विटी रिसर्च बढ़ने से निवेशकों को ऐसे सस्ते शेयर पहचानने में मदद मिली, जिनमें आगे अच्छा प्रदर्शन करने की संभावना थी। आर्थिक सुधारों और बाजार के खुलेपन ने भारतीय शेयर बाजार और अर्थव्यवस्था को एक नई दिशा दी, जिससे निवेशकों और कंपनियों को बड़ा फायदा हुआ।

विदेशी पोर्टफोलियो निवेशकों (FPI) के आने से भारतीय शेयर बाजार ज्यादा संगठित और व्यवस्थित हो गया। इससे पहले ऑपरेटर बाजार को चलाते थे। अल्फानीति फिनटेक के डायरेक्टर यूआर भट्ट ने कहा, “FPI के आने से बाजार व्यवस्थित हुआ और अंतरराष्ट्रीय स्तर की ब्रोकिंग सेवाएं शुरू हुईं। इससे भारतीय शेयर बाजार में भरोसा बढ़ा।”

1970 के दशक में विदेशी मुद्रा विनियमन अधिनियम (FERA) के तहत बहुराष्ट्रीय कंपनियों को भारत में लिस्ट करने के प्रावधान के अलावा, इक्विटी संस्कृति को बढ़ावा देने के लिए कोई ठोस कदम नहीं उठाए गए थे।

डिमैट प्रोसेस से शेयर बाजार में पारदर्शिता

सितंबर 1995 में डिपॉजिटरी अध्यादेश लाया गया, जिससे नेशनल सिक्योरिटीज डिपॉजिटरी लिमिटेड (NSDL) की स्थापना और शेयरों के डिमैटेरियलाइजेशन की शुरुआत हुई। भट्ट ने बताया, “डिमैट ने डुप्लिकेट शेयरों की समस्या खत्म कर दी। पहले शेयर खरीदने के बाद भी निवेशकों को महीनों तक शेयर नहीं मिलते थे। डिमैट प्रक्रिया ने यह भरोसा दिया कि शेयर खरीदने पर निश्चित रूप से मिलेंगे।”

एनएसई ने पेशेवर ब्रोकिंग का रास्ता खोला

1994 में नेशनल स्टॉक एक्सचेंज (NSE) की शुरुआत ने ब्रोकिंग इंडस्ट्री को पेशेवर बनाया। फर्स्ट ग्लोबल की चेयरपर्सन देविना मेहरा ने कहा, “उस समय बीएसई एक तरह से ब्रोकर का क्लब था। ब्रोकर बनने के लिए किसी पेशेवर योग्यता की जरूरत नहीं थी। NSE के आने के बाद स्टॉक एक्सचेंज में कॉर्पोरेट सदस्यता शुरू हुई। पहले ब्रोकर सिर्फ मालिकाना या साझेदारी के आधार पर ही काम करते थे।”

मनमोहन सिंह के कार्यकाल में आर्थिक विकास

प्रधानमंत्री के रूप में मनमोहन सिंह के पहले कार्यकाल में आर्थिक विकास को गति मिली। पहले चार सालों में अर्थव्यवस्था 7.9% की औसत सालाना दर से बढ़ी। हालांकि, वैश्विक वित्तीय संकट के कारण यह दर घटकर 6.9% हो गई।

मनमोहन सिंह के प्रधानमंत्री कार्यकाल में देश के कर्ज के बोझ में बड़ी कमी आई। फर्स्ट ग्लोबल की चेयरपर्सन देविना मेहरा ने बताया कि 2003-04 में केंद्र और राज्यों का कुल कर्ज जीडीपी का 83.2% था, जो घटकर 2010-11 में 65.5% पर आ गया। 2013-14 तक, वैश्विक वित्तीय संकट और कच्चे तेल की ऊंची कीमतों के बावजूद यह आंकड़ा 67% रहा।

मेहरा ने कहा कि कर्ज में कमी के कारण सरकार के ब्याज भुगतान का खर्च घटा, जिससे मनरेगा और अन्य सामाजिक योजनाओं के लिए फंडिंग की गुंजाइश बनी।

अल्फानीति फिनटेक के यूआर भट्ट ने बताया कि इस दौरान शेयर बाजार मजबूत हुए, जिससे प्राइवेट सेक्टर को पूंजी जुटाने और अपनी क्षमता बढ़ाने में मदद मिली। उन्होंने कहा, “बड़े प्रोजेक्ट्स के लिए रिस्क कैपिटल से फंड जुटाने का चलन बढ़ा। उद्यमी बाजार से पूंजी जुटाने को लेकर ज्यादा आत्मविश्वास महसूस करने लगे, जिससे कोर सेक्टर्स में क्षमता विस्तार हुआ।”

भट्ट ने यह भी कहा कि सत्यम घोटाले को बिना किसी पूर्व अनुभव के भी अच्छे तरीके से संभाला गया, जो उस समय की एक बड़ी उपलब्धि थी।

मनमोहन सिंह का दूसरा कार्यकाल: धीमी वृद्धि और विवादों का दौर

मनमोहन सिंह का दूसरा प्रधानमंत्री कार्यकाल (2009-2014) उतना प्रभावशाली नहीं रहा। इस दौरान औसत वार्षिक आर्थिक वृद्धि दर 6.7% रही, लेकिन दो वर्षों में यह घटकर 5.2% और 5.5% तक पहुंच गई। भ्रष्टाचार के आरोपों और महंगाई ने इस कार्यकाल को प्रभावित किया। वित्त वर्ष 2010-11 में थोक मूल्य सूचकांक आधारित महंगाई 9.57% तक पहुंच गई, जबकि 2011-12 में यह करीब 9% रही।

अल्फानीति फिनटेक के यूआर भट्ट ने कहा, “दूसरे कार्यकाल तक बाजारों ने ‘इंडिया स्टोरी’ पर भरोसा कर लिया था, लेकिन बाद में उन्हें एहसास हुआ कि जिन पर वे भरोसा कर रहे थे, वे भी कमजोर साबित हुए। यह निराशाजनक था, और महंगाई ने जनता को चोट पहुंचाई।”

शेयर बाजार के विशेषज्ञ मनमोहन सिंह की विरासत को लेकर बंटे हुए हैं। हालांकि, यह स्वीकार किया जाता है कि उन्होंने आर्थिक सुधारों की दिशा में बड़े कदम उठाए, लेकिन दूसरे कार्यकाल में घोटालों और नीतिगत ठहराव ने निराशा पैदा की।

भट्ट ने कहा, “शायद उन्हें वित्त मंत्री के रूप में ज्यादा याद किया जाएगा, जब राजनीतिक माहौल संभाल लिया गया था, तब उन्होंने अच्छा काम किया।”

First Published : December 28, 2024 | 10:19 AM IST