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शेयर बाजार की चमक पर पड़ रहा असर, Jefferies ने कहा- जिम्मेदार तेल और महंगाई दर

FPI ने मार्च 2023 के निचले स्तर से 16.5 अरब डॉलर की खरीदारी के बाद पिछले 8 दिनों में सेकंडरी बाजार में 0.5 अरब डॉलर से ज्यादा की बिकवाली की है

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पुनीत वाधवा   
Last Updated- August 09, 2023 | 10:01 PM IST

जेफरीज के विश्लेषकों का मानना है कि कच्चे तेल की बढ़ती कीमतों, चीन के बाजारों की लोकप्रियता, घरेलू तौर पर मुद्रास्फीति की चिंताओं का अल्पावधि में भारतीय इक्विटी बाजारों की आगामी राह पर प्रभाव पड़ सकता है। उनका कहना है कि बाजार मजबूत होने से पहले अल्पावधि में सीमित दायरे में बने रह सकते हैं।

जेफरीज के प्रबंध निदेशक महेश नंदुरकर ने अभिनव सिन्हा ओर निषांत पोद्दार के साथ मिलकर तैयार की गई रिपोर्ट में लिखा है, ‘कच्चे तेल में तेजी, चीन की बढ़ती लोकप्रियता, भारत में सीपीआई बढ़ने और प्रतिफल चढ़ने से भारतीय इक्विटी के लिए गोल्डीलॉक पोजीशन पर खतरा पैदा हो रहा है। विदेशी पोर्टफोलियो निवेशक (एफपीआई) शुद्ध बिकवाल बन गए हैं और भारत ने पिछले महीने के दौरान एमएससीआई ईएम के मुकाबले 3.2 प्रतिशत अंक तक कमजोर प्रदर्शन किया।’

इस बीच, एफपीआई ने मार्च 2023 के निचले स्तर से 16.5 अरब डॉलर की खरीदारी के बाद पिछले 8 दिनों में सेकंडरी बाजार में 0.5 अरब डॉलर से ज्यादा की बिकवाली की है।

जेफरीज की रिपोर्ट में कहा गया है कि मार्च 2023 के निचले स्तर से आई तेजी के बाद निफ्टी 19 गुना एक वषीर्य पीई पर कारोबार कर रहा है, जो एक स्टैंडर्ड डिविएशन से थोड़ा दूर है, लेकिन मार्च के निचले स्तरों से 12 प्रतिशत तक ऊपर और 10 वर्षीय पीई औसत से 11 प्रतिशत ऊपर है।

तेल एवं मुद्रास्फीति

बाजार के लिए दबाव का अन्य कारण खाद्य कीमतों (खासकर टमाटर) में तेजी की पृष्ठभूमि में महंगाई बढ़ना है। 1 जून और 5 अगस्त के बीच, टमाटर की खुदरा कीमतें 444 प्रतिशत तक चढ़ी हैं। भले ही सीपीआई में उसका भारांक सिर्फ 0.6 प्रतिशत है, लेकिन मुख्य मुद्रास्फीति में इससे 120 आधार अंक का इजाफा होने की आशंका है।

कच्चे तेल की कीमतें 86 डॉलर प्रति बैरल के निशान के पार पहुंच गईं, जो पिछले एक महीने में करीब 18 प्रतिशत तक की तेजी है। विश्लेषकों का मानना है कि इससे भी धारणा प्रभावित हो सकती है।

इक्विनॉमिक्स रिसर्च के प्रबंध निदेशक (MD) जी चोकालिंगम का कहना है कि वैश्विक इक्विटी बाजारों पर कच्चे तेल की बढ़ती कीमतों का असर तब तक नहीं पड़ेगा, जब तक कि ये 100 डॉलर प्रति बैरल के आंकड़े तक नहीं पहुंच जातीं। वहीं दूसरी तरफ, घरेलू तौर पर खाद्य कीमतें और मॉनसून की चाल ऐसे कारक हैं जिन पर नजर बनाए रखने की जरूरत होगी।

उनका कहना है कि घरेलू इक्विटी बाजारों के लिए मध्यावधि से दीर्घावधि परिदृश्य आकर्षक बना हुआ है। लेकिन अल्पावधि (4-5 महीने) में कुछ गिरावट देखी जा सकती है।

First Published : August 9, 2023 | 10:01 PM IST