Illustration: Ajay Mohanty
अमेरिका में मार्च के लिए अनुमान से ज्यादा उपभोक्ता कीमत मुद्रास्फीति (सीपीआई) से अमेरिकी फेडरल रिजर्व द्वारा जून में की जाने वाली ब्याज दर कटौती की उम्मीदें धूमिल पड़ गई हैं। अब विश्लेषकों का मानना है कि अगर कीमतें नियंत्रण में रहीं और तेल की कीमतों से मदद मिली तो अमेरिकी केंद्रीय बैंक सितंबर में दर कटौती शुरू कर सकता है।
विश्लेषकों का कहना है कि बाजारों में इस संभावना का आंशिक रूप से असर दिखा है। पूरे एशिया के इक्विटी बाजारों में गुरुवार को कमजोरी देखी गई। निक्केई 225, हैंग सेंग और सिंगापुर के बाजार 1 प्रतिशत तक नीचे आए। भारतीय बाजार गुरुवार को बंद रहे। विश्लेषकों का मानना है कि शुक्रवार को वे कारोबार के लिए खुलेंगे तो उनमें असर देखा जा सकता है, जिसके बाद सुधार आ सकता है।
अल्फानीति फिनटेक के सह-संस्थापक एवं निदेशक यू आर भट ने कहा, ‘कई एशियाई बाजारों में शुरुआती नकारात्मक प्रतिक्रिया के बाद गुरुवार के कारोबार में सुधार देखा गया। ऐसी ही स्थिति भारतीय बाजार में शुक्रवार को रह सकती है। भारतीय बाजार की चाल पर असर डालने के लिहाज से तेल कीमतें, भू-राजनीति, आम चुनाव जैसे कई कारक हैं। जहां तक दरों का सवाल है, तो बाजार में इनसे संबंधित बयानों का असर कुछ हद तक दिख चुका है।’
इस बीच, मार्च में अमेरिकी उपभोक्ता मुद्रास्फीति एक साल पहले के मुकाबले बढ़कर 3.5 प्रतिशत पर पहुंच गई। मासिक आधार पर यह वृद्धि 0.4 प्रतिशत थी जो मुख्य तौर पर पेट्रोल और अन्य लागत के कारण हुई।
राबोबैंक इंटरनैशनल में वरिष्ठ अमेरिकी रणनीतिकार फिलिप मरे ने कहा, ‘अमेरिका में दरें सितंबर तक ऐसे ही बनी रह सकती हैं। अगले साल के लिए हमारा मानना है कि ट्रंप नए राष्ट्रपति बनेंगे और यूनिवर्सल टैरिफ लगाएंगे जिससे 2025 में मुद्रास्फीति में इजाफा होगा। इससे फेड का दर कटौती चक्र वक्त से पहले ही रुक जाएगा।’
जहां तक दर में कटौती का सवाल है, विश्लेषकों को उम्मीद है कि वैश्विक केंद्रीय बैंक, खासकर एशिया में, दर कटौती के मामले में फेड का अनुसरण करेंगे। मॉर्गन स्टॅनली के विश्लेषकों के अनुसार, फेड द्वारा दर कटौती का असर दिख रहा है और डॉलर अभी भी मजबूत हो रहा है जबकि एशियाई मुद्राएं कमजोर स्थिति में हैं।
उनका मानना है कि केंद्रीय बैंक इस पर सतर्कता बरत सकते हैं कि मुद्रा के और अधिक अवमूल्यन की संभावना से भी मुद्रास्फीति में कुछ उछाल आ सकती है जिससे यह जोखिम पैदा हो सकता है कि मुद्रास्फीति लंबे समय तक लक्ष्य के भीतर नहीं रहेगी।
मॉर्गन स्टैनली में एशियाई मामलों के मुख्य अर्थशास्त्री चेतन आह्या ने लिखा है, ‘हमारा मानना है कि एशियाई केंद्रीय बैंक नीतिगत नरमी का कदम उठाने से पहले फेड की कटौती का इंतजार करेंगे। अगर आपूर्ति या भूराजनीतिक समस्याओं की वजह से तेल कीमतें अगले तीन चार महीनों में बढ़कर 110-120 डॉलर प्रति बैरल पर पहुंचती हैं तो इससे मुद्रास्फीति परिदृश्य के लिए चिंता पैदा होगी।’
भारत में अल्पावधि में बाजार की दिशा मार्च 2024 के कंपनी नतीजों के सत्र और लोक सभा चुनावों के परिणाम और संपूर्ण बाजार मूल्यांकन पर निर्भर करेगी। विश्लेषकों के अनुसार भारत में आय वृद्धि नरमी का संकेत दे रही है।
वित्त वर्ष 2025 की चौथी तिमाही में प्रति शेयर आय (ईपीएस) वृद्धि 5-10 प्रतिशत के साथ नरम रहने का अनुमान है जो अप्रैल और दिसंबर 2023 के बीच 25 प्रतिशत थी। निवेश रणनीति के तौर पर विश्लेषकों ने निवेशकों को शेयरों के चयन और आय संभावना तथा उचित मूल्यांकन पर खास ध्यान देने का सुझाव दिया है।