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Share Market performance: नरेंद्र मोदी के दूसरे कार्यकाल ने मनमोहन सिंह के कार्यकाल को छोड़ा पीछे

अगर हम पहला कार्यकाल देखें, तो सिंह के कार्यकाल में बाजार में 2.7 गुना की वृद्धि हुई, जो मोदी के पहले कार्यकाल में 55 प्रतिशत की वृद्धि से कहीं ज्यादा है।

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सुन्दर सेतुरामन   
Last Updated- June 03, 2024 | 6:09 PM IST

नरेंद्र मोदी की अगुआई वाली NDA सरकार के दूसरे कार्यकाल में बाजार का प्रदर्शन UPA के दूसरे कार्यकाल से बेहतर रहा है। लेकिन अलग कुल मिलाकर, 10 साल की अवधि में देखा जाए तो मनमोहन सिंह के कार्यकाल में बाजार का प्रदर्शन नरेंद्र मोदी से बेहतर रहा है।

हालांकि, अगर अलग-अलग कार्यकालों की तुलना करें, तो नरेंद्र मोदी के दूसरे कार्यकाल में बेंचमार्क सेंसेक्स में 87 प्रतिशत की वृद्धि हुई, जो कि मनमोहन सिंह के दूसरे कार्यकाल में 80 प्रतिशत की वृद्धि से थोड़ा ज्यादा है। लेकिन, अगर हम पहला कार्यकाल देखें, तो सिंह के कार्यकाल में बाजार में 2.7 गुना की वृद्धि हुई, जो मोदी के पहले कार्यकाल में 55 प्रतिशत की वृद्धि से कहीं ज्यादा है।

इसके परिणामस्वरूप, सन 2004 से 2014 तक UPA के शासन के 10 सालों के दौरान सेंसेक्स ने 5 गुना रिटर्न दिया और पिछले 10 सालों के दौरान NDA के शासन में 3 गुना रिटर्न दिया। दोनों सरकारों को 2008 में वैश्विक वित्तीय संकट और 2020 में कोविड-19 महामारी जैसे प्रमुख आर्थिक और बाजार झटकों का सामना करना पड़ा।

पिछले 10 सालों में अर्थव्यवस्था को सुधारने के लिए लिए गए कुछ बड़े फैसलों की वजह से थोड़ी उथल-पुथल भी देखने को मिली, लेकिन इन फैसलों से भारतीय अर्थव्यवस्था को आधुनिक बनाने में मदद मिली।

इन फैसलों में कुछ प्रमुख थे – नवंबर 2016 में नोटबंदी, जुलाई 2017 में वस्तु एवं सेवा कर (GST) लागू करना, मई 2016 में दिवाला और शासी संहिता का कानून बनना और सितंबर 2019 में कंपनी टैक्स में कटौती।

भले ही महामारी और कुछ बड़े फैसलों के बाद शेयर बाजार में अचानक गिरावट आई, लेकिन चीजें जल्दी पटरी पर लौट आईं। इससे लोगों के लिए अपनी बचत को शेयर बाजार में लगाना आसान हो गया। अब लोग सीधे निवेश या म्यूचुअल फंड के जरिए ज्यादा पैसा शेयर बाजार में लगा रहे हैं। इससे भारत को विदेशी निवेशकों के पैसों पर उतना निर्भर नहीं रहना पड़ रहा है।

अल्फानीति फिनटेक के सह-संस्थापक यू आर भट ने कहा, “पहले सिर्फ विदेशी निवेशक ही बाजार को प्रभावित करते थे, लेकिन पिछले कुछ सालों में घरेलू निवेशक भी अहम भूमिका निभाने लगे हैं। मनमोहन सिंह के प्रधानमंत्री बनने के दौरान अर्थव्यवस्था अच्छी स्थिति में थी, इसलिए उनके लिए आगे बढ़ना ज्यादा मुश्किल नहीं था।

वहीं दूसरी तरफ, मोदी को उस वक्त अर्थव्यवस्था संभालनी पड़ी थी जब भारत ‘फ्रैजाइल फाइव’ में शामिल था। लेकिन उनकी खूबी यह है कि उन्होंने उन बड़े सुधारों को भी आगे बढ़ाया जिनसे उनके पूर्ववर्ती नेता दूर ही रहते थे, जैसे जीएसटी या बुनियादी ढांचे में भारी निवेश।”

अल्फानीति फिनटेक के सह-संस्थापक यू आर भट्ट का कहना है कि घरेलू निवेशकों की बढ़ती दिलचस्पी और बड़े नीतिगत बदलावों का असर भारतीय बाजार को भविष्य में बेहतर रिटर्न देने में मदद करेगा।

First Published : June 3, 2024 | 6:09 PM IST