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शेयर वर्गीकरण के नियम बदलेंगे! जानिए क्या-क्या बदलेगा?

लार्जकैप में और शेयर शामिल हो सकते हैं, फंड मैनेजरों को ज्यादा लचीला रुख अपनाने में मिलेगी ​मदद

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अभिषेक कुमार   
Last Updated- February 05, 2024 | 10:00 PM IST

सक्रियता से प्रबंधित म्युचुअल फंड अभी शेयरों के वर्गीकरण वाले जिस ढांचे का इस्तेमाल कर रहे हैं सेबी उसकी समीक्षा कर रहा है ताकि जूदा व संभावित निवेशकों को निवेश का तरीका ज्यादा स्पष्ट नजर आए।

सूत्रों ने कहा कि लार्ज व मिडकैप शेयरों में 25 से 50 शेयरों का विस्तार हो सकता है। उद्योग की कंपनियों की तरफ से यह चिंता रखे जाने के बाद यह कदम उठाया गया है कि कोविड महामारी के बाद देसी बाजारों में काफी तेजी के बाद मौजूदा सीमा अब ठीक नहीं रह गई है।

अभी बाजार पूंजीकरण के लिहाज से 100 अग्रणी शेयरों को लार्जकैप माना जाता है और अगले 150 शेयर मिडकैप में शामिल होते हैं। बाकी सूचीबद्ध शेयर स्मॉलकैप में होते हैं। म्युचुअल फंड अब सेबी के साथ लार्जकैप बास्केट को अग्रणी 125 या 150 शेयरों तक करने के लिए बातचीत कर रहे हैं जबकि अगली 200 कंपनियों को मिडकैप में शामिल करने को कह रहे हैं। सूत्रों ने यह जानकारी दी।

फंड अधिकारियों के मुताबिक, लार्ज व मिडकैप में विस्तार का अभी ज्यादा मतलब बनेगा क्योंकि साल 2017 में फ्रेमवर्क आने के बाद से स्मॉलकैप में लि​क्विडिटी काफी सुधरी है। तब से स्मॉलकैप में शामिल बड़ी कंपनियों का एमकैप कई गुना बढ़ा है।

एसोसिएशन ऑफ म्युचुअल फंड्स इन इंडिया की तरफ से पिछले महीने घोषित शेयर पुनर्वर्गीकरण के मुताबिक, 22,000 करोड़ रुपये से कम एमकैप वाली फर्में स्मॉलकैप की पात्र होती हैं। दिसंबर 2017 में यह आंकड़ा महज 8,500 करोड़ रुपये था। इसी तरह मिडकैप बास्केट के लिए ऊपरी सीमा 29,000 करोड़ रुपये से बढ़कर 67,000 करोड़ रुपये हो गई है।

फंड मैनेजरों के मुताबिक, वर्गीकरण में बदलाव से ऐक्टिव फंड मैनेजर अपना पोर्टफोलियो बनाने में और लचीला रुख अख्तियार कर पाएंगे। हाल के वर्षों में ज्यादातर ऐक्टिव फंड मैनेजर अपने-अपने बेंचमार्क को मात देने में नाकाम रहे हैं।

एक वरिष्ठ फंड मैनेजर ने कहा, इसकी एक वजह छोटा यूनिवर्स रही है। ऐसे मामले में फंड मैनेजरों के पास अपने पोर्टफोलियो में ऐक्टिव वेट जोड़ने की खातिर सीमित गुंजाइश होती है। ऐक्टिव वेट किसी पोर्टफोलियो का प्रतिशत होता है, जो बेंचमार्क से अलग होता है।

कुछ का कहना है कि ढांचे में बदलाव से मिड व स्मॉलकैप फंड मैनेजरों के लिए अल्पावधि का मसला खड़ा हो सकता है। उन्होंने कहा, चूंकि उनके यूनिवर्स से सबसे बड़ी 25 कंपनियां बाहर हो जाएंगी, ऐसे में ज्यादातर फंड मैनेजरों को काफी ज्यादा पुनर्संतुलन करना होगा।

एम्फी की मौजूदा सूची के मुताबिक, सबसे ज्यादा असर मिडकैप में देखने को मिलेगा। यह मानते हुए कि लार्ज व मिडकैप यूनिवर्स का विस्तार 25 शेयरों का होगा, ऐसे में लार्जकैप के लिए ऊपरी सीमा 67,000 करोड़ रुपये से घटकर 51,000 करोड़ रुपये पर आ जाएगी। इसी तरह स्मॉलकैप का मामला 22,000 करोड़ रुपये से घटकर 20,000 करोड़ रुपये रह जाएगा। अगर यूनिवर्स का विस्तार 50 शेयरों तक होता है तो कटऑफ में और ज्यादा कमी होगी।

बाजार के प्रतिभागियों ने कहा, ‘यहां तक कि लार्जकैप व मिडकैप के लिए 51,000 व 20,000 करोड़ रुपये का कटऑफ भी काफी ऊंचा है और इस यूनिवर्स में और विस्तार की गुंजाइश है।’

रिपोर्ट के मुताबिक, भारत में स्मॉलकैप अब वैश्विक मानकों से ज्यादा बड़ी हो गई है। दिसंबर में आईसीआईसीआई सिक्योरिटीज ने एक रिपोर्ट में कहा था कि भारत में कई स्मॉलकैप शेयर अब वैश्विक आकार 2,500 से 16,000 करोड़ रुपये से भी काफी बड़े हैं।

First Published : February 5, 2024 | 10:00 PM IST