रिलायंस इंडस्ट्रीज (आरआईएल) ने पिछले छह हफ्तों के दौरान 1 लाख करोड़ रुपये से अधिक रकम जुटाई है। कंपनी अपने दूरसंचार कारोबार में हिस्सेदारी बिक्री और राइट्स निर्गम की पहली खेप से ही इतनी भारी भरकम रकम जुटाने में कामयाब हो गई है। इनमें दो दिन पहले जियो प्लेटफॉम्र्स में उसकी 1.85 फीसदी हिस्सेदारी मुबाडाला इन्वेस्टमेंट कंपनी को बेचने पर मिले 9,094 करोड़ रुपये भी शामिल हैं। कोई भी कंपनी अकेले कभी इतनी अधिक रकम नहीं जुटा पाई है। इतना ही नहीं किसी एक साल में आरंभिक सार्वजनिक निर्गमों (आईपीओ) या विनिवेश के जरिये भी कभी इतनी रकम नहीं जुटी है।
भारत की सबसे मूल्यवान कंपनी रिलायंस इंडस्ट्रीज अपनी डिजिटल सेवा सहयोगी कंपनी जियो में अपनी करीब 19 फीसदी हिस्सेदारी छह जानी-मानी विदेशी कंपनियों को बेच चुकी हैं। इनमें फेसबुक, सिल्वर लेक, विस्टा इक्विटी पार्टनर्स, जनरल अटलांटिक, केकेआर और अबू धाबी सरकार की मुबाडाला इन्वेस्टमेंट कंपनी भी शामिल हैं। इन कंपनियों से आरआईल को 87,650 करोड़ रुपये मिले हैं और 13,281 करोड़ रुपये उसे राइट्स निर्गम की पहली खेप से हासिल हुए हैं।
मुकेश अंबानी के नेतृत्व वाली कंपनी का मकसद हिस्सेदारी बिक्री से मिली रकम के जरिये कर्ज का बोझ कम करना है। कंपनी ने जितनी रकम जुटाई है, उतनी किसी एक साल में आए सभी आईपीओ भी मिलकर नहीं कमा पाए हैं। इतना ही नहीं सरकार ने विनिवेश कार्यक्रम के तहत किसी वित्त वर्ष में जो सबसे अधिक रकम कमाई है, यह उससे बहुत अधिक है। वित्त वर्ष 2017-18 आईपीओ के लिहाज से बेहतर रहा था, जिसमें 81,553 रुपये जुटाए गए थे। इसी तरह सरकार ने वित्त वर्ष 2018-19 में सार्वजनिक क्षेत्र की कंपनियों में हिस्सेदारी बेचकर 62,883 करोड़ रुपये जुटाए थे।
अंबानी की रकम जुटाने की मुहिम यही खत्म होती नहीं दिख रही है। कई और सौदे पूरे होने वाले हैं। इनमें तेल से रसायन बनाने के कारोबार में हिस्सेदारी सऊदी अरामको को 15 अरब डॉलर (1.1 लाख करोड़ रुपये) में बेचने का सौदा भी है। इसके अलावा ईंधन की खुदरा बिक्री कारोबार में बीपी को हिस्सेदारी बेचकर 7,000 करोड़ रुपये और अगले कैलेंडर वर्ष में राइट्स निर्गम की दो खेप से मिलने वाले 40,000 करोड़ रुपये भी शामिल हैं।
आरआईएल पर मार्च 2020 के अंत तक 1.6 लाख करोड़ रुपये कर्ज था। कंपनी 2020 के अंत तक समूचा कर्ज खत्म करना चाहती है।