डॉलर के मुकाबले रुपये में आई एक फीसदी की गिरावट से आईटी कंपनियों को ऑपरेटिंग मार्जिन को 0.25 फीसदी से 0.30 फीसदी (बेसिस प्वांइट) तक बढ़ाने में मदद की है।
गत गुरुवार को रुपये को अपने दो साल के डॉलर के मुकाबले सबसे कम स्तर (45.53 रुपये) पर पहुंचने से आईटी कंपनियों को जश्न मनाने की वजह मिल गई है। जुलाई के 43.33 रुपये के स्तर से पिछले एक महीने के भीतर रुपये में आठ फीसदी की गिरावट दर्ज हुई है जबकि जुलाई के मुकाबले इसमें पांच फीसदी की गिरावट दर्ज हुई है।
लिहाजा यही स्तर अगर वित्तीय वर्ष 09 के अंत तक जारी रहता है तो फिर आईटी कंपनियों के कमाई विकास की रफ्तार औसतन 17 से 18 फीसदी हो सकती है। याद रहे कि अमेरिकी मंदी के कारण मजबूत रुपये ने इन कंपनियों के लिए परेशानी खरी कर दी थी क्योंकि अमेरिका इन कंपनियों के लिए सबसे बड़े बाजार के रूप में जाना जाता है।
खासकर, सब-प्राइम संकट के चलते फाइनेंशियल स्पेस की तंगी का साफ मतलब कारोबार में कमी होना था। इसकी झलक हमें टीसीएस में दिखी जब इसे तंगी के कारण कईयों को नौकरी से बाहर निकालना पडा। जून 2008 तिमाही में इन कंपनियों के वॉल्युम तकरीबन खामोश हो चले थे और कम से कम इस साल के अंत तक तो ऐसा संभावित था कि इस ट्रेंड में कोई बदलाव न आए।
लेकिन अब गिरते रुपये भाव सभी कंपनियों के विकास में मददगार होगा और इंफोसिस एवं सत्यम जैसी कंपनियों से उम्मीद की जा रही है कि वे मार्क-टू-मार्केट हेज अकाउंटिंग नीति अपनाए। इंफोसिस तो अपने फॉरेक्स एक्सपोजर के एक छोटे हिस्से को हेज करता प्रतीत हो रहा है। अगर टीसीएस एवं विप्रो भी यह नीति अपनाएं तो उनको भी उतना ही फायदा शायद न हो।
बीएसई आईटी सूचकांक ने भी बाजार को पछाड़ा है जबकि जनवरी 2008 में इसमें महज 11 फीसदी की गिरावट दर्ज हुई वहीं सेंसेक्स में 30 फीसदी की गिरावट दर्ज की गई थी। इंफोसिस के शेयर 1749 रुपये के भाव पर सबसे आकर्षक लग रहे हैं क्योंकि वित्तीय वर्ष 09 के अनुमानित कमाई के मुकाबले इसके शेयर 17 गुना पर कारोबार कर रहे हैं।
टीसीएस की बात करें तो इनके शेयर संगत वर्ष की अनुमानित कमाई से 14 गुना पर कारोबार कर रहे हैं और इसके शेयरों के वित्तीय सेवा स्पेस के प्रति ज्यादा एक्सपोजर होने के कारण सस्ते हैं। जबकि जून तिमाही में कमजोर प्रदर्शन के चलते सत्यम ने अपने कीमत कमाई का गुणक 13 गुना रखा है जबकि विप्रो के शेयर 15 गुना पर कारोबार कर रहे हैं।
रिलायंस इंड.-सुधार की ओर
रिलायंस इंडस्ट्रीज के शेयर गुरुवार के कारोबार सत्र में 1997.60 रुपये पर बंद हुए। ऐसा पिछले साल में महज चौथी दफा है जब इनके शेयर 2,000 रुपये से कम के स्तर पर बंद हुए हैं।
लेकिन बाजार यहां इस बात से परेशान है कि आने वाली तिमाहियों में भारत की इस दूसरी सबसे बड़ी रिफाइनरी कंपनी का कुल रिफाइनिंग मार्जिन यानी जीएमआरएस उम्मीद से कम रहे। याद रहे कि जून तिमाही के दौरान आरआईएल ने 15.7 डॉलर प्रति बैरल का जीआरएमएस दिया था जबकि बढ़ती तेल कीमतों के लिहाज से इससे बेहतर की उम्मीद थी।
रिफाइनिंग कंपनी के कुल राजस्व में 55 फीसदी की भागीदारी करता है। वित्तीय वर्ष 2008 में कंपनी को इस काम से कुल 1.37 लाख करोड़ रुपये का राजस्व मिला था। इसके अलावा उद्योगों पर नजर रखने वालों के मुताबिक केजीडी 6 बेसिन के नवंबर या फिर इसके बाद शुरू होने के कारण यहां से उत्पादन कार्य में थोड़ी देरी दर्ज की जा सकती है।
इतना ही नही बल्कि विश्लेषकों का मानना है कि एशियाई एवं मध्य पूर्व देशों से मांग में कमी और रिफाइनिंग क्षमता में कमी का तकाजा है कि वित्तीय वर्ष 2008 के स्तर से रिफाइनिंग मार्जिन में कमी आ सकती है। इसके अलावा वित्तीय वर्ष 2010 तक जीआरएमएस के 15 डॉलर प्रति बैरल से 12 डॉलर प्रति बैरल आ जाने की उम्मीद है।
अगस्त में डीजल मार्जिन की कमी के कारण सिंगापुर रिफाइनिंग मार्जिन में भी कमी दर्ज की गई है। हालांकि नए रिफाइनरियों के संरचना में जटिल होने के कारण मझोले डिस्टीलेट्स मसलन डीजल एवं किरोसिन की मांग की पूर्ति हो सकना संभावित है। हालांकि डीजल के लिए मार्जिन गैसोलिन के मुकाबले ज्यादा ही रह सकता है।
फिर भी हालिया हफ्तों में आरआईएल पेट्रोकेमिकल्स के कारोबार के अपने मार्जिन के बेहतर होने के कारण बढ़िया कारोबार करने की उम्मीद है। इस कारोबार ने कंपनी को 40 फीसदी से ज्यादा का राजस्व दिलवाया था।
इसके अलावा यह भी संभावना बन रही है कि कंपनी को विंडफॉल टैक्स बाद में या फिर न देना पडे। लिहाजा कंपनी को उम्मीद है कि वित्तीय वर्ष 2009 में कुल 1.9 लाख रुपये का राजस्व मिले और कुल शुद्ध मुनाफा 19,000 करोड़ रुपये का हो।