बाजार नियामक सेबी के पूर्णकालिक सदस्य अनंत नारायण ने कहा है कि ऑल्टरनेटिव इन्वेस्टमेंट फंडों (एआईएफ) की प्रतिबद्धता बढ़कर 10.84 लाख करोड़ रुपये पर पहुंच गई है लेकिन इसमें और वास्तविक निवेश के आंकड़ों में फर्क है।
उन्होंने कहा कि ऐसे फंडों का वास्तविक निवेश अभी तक (साल 2012 से) कुल प्रतिबद्धताओं का सिर्फ 60-65 फीसदी ही नजर आ रहा है। ऐसे में हमें इसका कारण तलाशना चाहिए और यह भी कि क्या हम आंकड़ों का सही विश्लेषण कर रहे हैं।
उन्होंने कहा कि ऐसे वास्तविक निवेश का सिर्फ 7 फीसदी ही स्टार्टअप में गया है। दिसंबर 2023 तक एआईएफ उद्योग के पास 1.40 लाख से ज्यादा निवेशक थे और निवेश 4 लाख करोड़ रुपये तक था। सेबी के अधिकारी ने उन मूल्यांकन पर भी चिंता जताई जहां नियामक ने पाया कि वे लंबी अवधि तक वैसे ही बने हुए हैं।
इंडियन प्राइवेट इक्विटी ऐंड वेंचर कैपिटल एसोसिएशन के कॉन्क्लेव में नारायण ने उद्योग के अधिकारियों को संबोधित करते हुए कहा कि हमने मूल्यांकन में भी उस समय काफी गिरावट देखी है जब फंड अपनी परिपक्वता के करीब होता है। उन्होंने कहा कि नियामक की योजना एआईएफ आवेदनों को मंजूरी देने की अवधि घटाकर एक महीना करने की है। अभी कोई भी आवेदन लंबित नहीं है जबकि दिसंबर 2022 में 55 से ज्यादा आवेदन लंबित थे।
एआईएफ के रास्ते बैंकों व एनबीएफसी की तरफ से पुराने कर्ज के निपटान के लिए नया कर्ज देने से बचने की दरकार है ताकि यह एनपीए न बन पाए। इसे दोहराते हुए सेबी के अधिकारी ने कहा कि मानकों के लिए बने फोरम ने मसौदा तैयार कर लिया है, जिसमें यह ब्योरा है कि एआईएफ फंड मैनेजरों और फंडों को क्या करना चाहिए और क्या नहीं। आचार संहिता के साथ सेबी इसे और बेहतर तरीके से पारिभाषित करने के लिए काम कर रहा है।