नाभिकीय आपूर्ति समूह द्वारा भारत पर लगा प्रतिबंध हटा लेने के बाद जिन सरकारी कंपनियों को तुरंत फायदा हुआ है,उनमें सरकारी बिजली कंपनी एनटीपीसी और उपकरण आपूर्ति करने वाली कंपनियां बीएचईएल और एलएंडटी सबसे आगे हैं।
निजी कंपनियों को अभी नाभिकीय ऊर्जा के क्षेत्र में इजाजत नहीं है लेकिन इसमें बदलाव हो सकता है। एनटीपीसी की साल 2017 तक दो गीगा वॉट नाभिकीय ऊर्जा जोड़ने की योजना है यद्यपि विश्लेषकों का मानना है कि इस प्रतिबंध के हट जाने के बाद इन लक्ष्यों को प्राप्त किया जा सकता है।
असल में कंपनी के पास पर्याप्त नगदी है तो वह इन लक्ष्यों को प्राप्त कर सकती है। इसी तरह भारतीय नाभिकीय ऊर्जा निगम (एनपीसीआई) जो देश में सभी नाभिकीय ऊर्जा संयंत्रों का परिचालन करती है, के संयंत्रों को लगातार नाभिकीय ईंधन की कमी का सामना करना पड़ा।
पिछले दो महीनों से ये संयंत्र ईंधन की कमी की वजह से अपनी क्षमता के 40 फीसदी पर ही चल रहे थे। यूरेनियम की आसान उपलब्धता से इनका उपयोग 90 से 95 फीसदी तक का इस्तेमाल किया जा सकेगा। अगर संयंत्रों की क्षमता बढ़ती है, तो इनके लिए उपकरणों की मांग भी बढ़नी चाहिए। उपकरणों की मांग उत्पादन, ट्रांसमिशन और वितरण में भी बढ़नी चाहिए।
नाभिकीय संयंत्रों के मौजूदा उपकरण आपूर्तिकर्ताओं में एलएंडटी और भेल को सबसे ज्यादा ऑर्डर मिलना चाहिए। भेल जिसका नाभिकीय तकनीक के लिए सीमेंस के साथ समझौता है, एपीसीआई को 500 मेगावॉट के उपकरणों की आपूर्ति करती है और उसकी योजना इसे 700 से 1500 मेगावॉट तक पहुंचाने की है।
एलएंडटी के पास नाभिकीय संयंत्रों के सिविल एवं इलेक्ट्रिकल कार्यों में विशेषज्ञता होने के साथ महत्वपूर्ण उपकरणों के निर्माण की क्षमता भी है जैसे मुख्य नाभिकीय ऊर्जा संयंत्र का शिरा बनाना। कंपनी ने हाल में ही जापान की कंपनी मित्सुबिशी के साथ सुपर क्रिटिकल ब्वायलर के लिए समझौता किया है जिसकी आपूर्ति कंपनी एनपीसीआई को करेगी।
ऐसी भी संभावना है कि नाभिकीय ऊर्जा कारोबार के अन्य क्षेत्रों में प्रवेश के लिए कंपनी मित्सुबिशी के साथ अपने संबंधों को और बढ़ाए। असल में भविष्य में कंपनी नाभिकीय ऊर्जा उपकरणों का निर्यात भी कर सकती है।
अन्य पूंजीगत माल बनाने वाली कंपनियां जैसे एबीबी जो पॉवर प्रोजेक्ट के लिए कंपोनेंट का निर्माण करती है और क्राम्पटन ग्रीव्स जिसने हाल ही में एनसीपीआई के नाभिकीय प्रोजेक्ट के लिए स्विचयार्ड बनाने का काम किया है, नए आर्डर मिलने से लाभांवित होगी।
भविष्य में देश में ज्यादा नाभिकीय ऊर्जा की आवक और संयंत्रों का आयात देखा जा सकेगा। इस माहौल में एल्सटॉम जैसी कंपनियों को सबसे ज्यादा फायदा मिलेगा जो नाभिकीय संयंत्रों और रोटर्स का निर्माण करने केसाथ स्टीम टर्बाइन मशीनों की आपूर्ति भी करती है। सरकार 2020 तक 52 गीगा वॉट नाभिकीय ऊर्जा उत्पादन का लक्ष्य लेकर चल रही है जबकि मौजूदा क्षमता 4,200 मेगावॉट है।
सुजलॉन-नियंत्रण में
पवन ऊर्जा क्षेत्र से जुड़ी सुजलॉन ने आरई पावर में मर्टिफर की 22.5 फीसदी हिस्सेदारी को खरीदने की गति तेज करके सही कदम उठाया है। इसके लिए कंपनी ने 27 करोड़ यूरो के खर्च का लक्ष्य रखा है।
हालांकि यह खरीद अगले साल की मई तक पूरी होगी लेकिन इसके लिए प्रक्रिया साल 2008 के अंत तक पूरी होनी चाहिए। इसके साथ आरई पावर में इस कंपनी की हिस्सेदारी 90 फीसदी के करीब हो जाएगी और इससे कंपनी जर्मनी के कानून के मुताबिक डोमिनेशन लॉ के लिए योग्य हो जाएगी।
दूसरे शब्दों में दिसंबर के अंत तक कंपनी आरई पावर की टेक्नोलॉजी का अधिग्रहण कर लेगी और उसका खुद में विलय कर लेगी। टेक्नोलॉजी तक पहुंच बनाना कंपनी के लिए कारोबार के लिहाज से बेहतर होगा और इससे कंपनी को अपने उत्पाद संरचना को ज्यादा आकर्षक बनाने में मदद मिलेगी। इससे कंपनी को उत्पादों की नकल और बेहतर विपणन करने में भी मदद मिलेगी।
पिछली कुछ तिमाहियों से सुजलॉन की ऑर्डरबुक उसतरह नहीं बढी है जैसे उसकी प्रतियोगी कंपनियों वेटास या नार्डेक्स की जिनके ऑर्डर की संख्या में 40 फीसदी की बढ़ोतरी देखी गई। कंपनी की समस्या उसके द्वारा ऑर्डर की गई ब्लेंडों के टूट जाने से है। इसी वजह से एडिशन मिशन एनर्जी ने कंपनी को दिए गए आधे ऑर्डर को रद्द कर दिया था।
इसके पहले सुजलॉन ने अपनी 1251 ब्लेड वापस ले ली थी और इससे कंपनी पर 120 करोड़ का बोझ पड़ा। हालांकि कंपनी की बेल्जियम स्थित कंपनी हानसेन और आरई पावर अच्छा प्रदर्शन कर रही हैं। कंपनी को वित्त्तीय वर्ष 2009 में 20,000 करोड़ का राजस्व प्राप्त होंने की संभावना है।
कंपनी को 1500 से 1700 करोड़ का शुध्द लाभ प्राप्त होना चाहिए। मौजूदा बाजार मूल्य 236 रुपए पर कंपनी के शेयर का कारोबार वित्तीय वर्ष 2009 में अनुमानित आय से 21 गुना के स्तर पर हो रहा है।