हालांकि ज्यादातर निवेशक वर्ष 2008 को याद भी नहीं करना चाहेंगे, लेकिन इसके बावजूद इस साल ने भविष्य के लिए कुछ बेहतर सपनों के बीज बोए हैं।
वर्ष 2009 में निवेशकों या फिर बाजार में कारोबार कर रहे लोगों को उन बदलावों या चीजों से फायदा हो सकता है जिसकी अपेक्षा वे नहीं कर रहे हैं।
नीचे नौ महत्वपूर्ण बातों का जिक्र किया जा रहा है जो नए साल में बाजार और लोगों की कारोबारी जिंदगी में कुछ परिवर्तन ला सकते हैं। क्या होंगे बदलाव, बता रहे हैं राजेश भयानी
म्युचुअल फंडों का आनलाइन कारोबार
भारतीय प्रतिभूति एवं विनिमय बोर्ड (सेबी) के अध्यक्ष सी बी भावे को क्रेडिट डिपॉजिटरी प्रणाली सफलतापूर्वक शुरू करवाने का श्रेय दिया जाता है।
वर्ष 2009 में निवशक उनसे उम्मीद करेंगे कि वह एमएफ के यूनिटों को डीमेट रुप में लागू कर पाने में सफल होंगे और उनका कारोबार एक्सचेंज के जरिए हो सकेगा या फिर आनलाइन निवेश किया जा सकेगा जिसमें प्राप्ति और ऑनलाइन भुगतान का विकल्प भी साथ होगा। इस नई प्रणाली से समय और खर्च दोनों की बचत होगी।
ओटीसी पर ऑनलाइन
नई तकनीकों के विकास के साथ ही ज्यादा से ज्यादा उत्पाद बाजार में आ रहे हैं और कारोबार और ज्यादा पारदर्शी और स्क्रीन आधारित हो गया है।
इसी तरह के नए प्रयोगों की श्रेणी में ब्याज दरों में वायदा कारोबार शुरू करने की योजना भी शुमार है। बाजार में मुद्रा के वायदा कारोबार की सफलतापूर्वक शुरुआत के बाद नियामक अपना ध्यान ओटीसी बाजार उत्पादों पर ध्यान केंद्रित कर रहा है और इन्हें भी स्क्रीन पर उतारने की बात की जा रही है।
सूचकांकों का निर्यात
अगर स्टॉक एक्सचेंज का विकास देश में तेजी से हो रहा है तो उनके बेंचमार्क सूचकांकों ने विदेश में भी अपने लिए जगह ढूंढ ली है। इसका एक उदाहरण निफ्टी का सिंगापुर में हो रहा वायदा कारोबार है।
वर्ष 2009 में इसी तरह की और प्रगति देखने को मिल सकती है जब भारतीय शेयर बाजारों पर आधारित उत्पादों का विदेशों में भी कारोबार देखने मिलेगा।
कौन सा क्षेत्र आगे
पिछले कुछ समय में जब भी बाजार में तेजी देखने को मिली है तो इसकी शुरुआत तेजी से उभरते क्षेत्रों से हुई है जो परंपरागत क्षेत्रों की अपेक्षा ज्यादा प्रीमियम दे रहे हैं। वर्ष 2009 में इस तरह की शुरुआत बीमा क्षेत्र के शेयरों से हो सकती है।
नए इंस्ट्रूमेंट
परंपरागत स्रोतों से धन जुटाने में संकट के समय काफी परेशानी होती है। भारतीय मॉडल के एफसीसीबी का आगाज अब हो चुका है।
मौजूदा समय में कम से कम छह कंपनियां गैर-परिवर्तनीय डिबेंचर के साथ वारंट के सम्मिश्रण की शुरुआत करने की संभावना पर विचार कर रही हैं। यह पहली तिमाही में संभव हो सकता है।
आईडीआर
भारतीय कंपनियों में विदेश से पैसा जुटाने केलिए वैश्विक डिपॉजिटरी रिसिप्ट और अमेरिकी डिपॉजिटरी रिसिप्ट काफी लोकप्रिय हो चुकी हैं। विदेशी कंपनियों को भारत में आईडीआर जारी कर पूंजी जुटाने की अनुमति मिल चुकी है।
वर्ष 2009 में विदेशी बैंक, खास तौर पर स्टैंडर्ड चार्टर्ड बैंक के आईडीआर के साथ बाजार में कदम रखने की संभावना है। इसका मकसद पूंजी जुटाने से ज्यादा लोगों में जानकारी को बढ़ावा देना है।
कितने करते हैं निवेश
इस बात को जानने के कुछ बेहतर प्रयास किए जा रहे हैं कि कितने भारतीय इक्विटी बाजार में निवेश करते हैं और इस बात को भी जानने की कोशिश की जा रही है कि क्यों दूसरे निवेशक शेयरों में निवेश नहीं करते हैं।
यह बात साफ तौर पर कही जा सकती है कि सेबी इन कारणों को जानने केबाद ही इक्विटी कल्ट में और ज्यादा सुधार लाने की कोशिश करेगा।
ज्यादा शेयर बाजार
इन सर्वेक्षणों से न सिर्फ बाजार नियामक को मदद मिलेगी बल्कि बाजार में बिचौलिये से लेकर आम लोगों को शेयर बाजार में निवेश करने केलिए प्रेरित करने में मदद मिलेगी। अगर निवेश करने वाले लोगों की तादाद बढ़ती है तो निश्चित तौर पर कुछ और स्टॉक एक्सचेंज शुरु करने का विकल्प है।
एसएमई का एक्सचेंज
इन उद्योगों केलिए स्टॉक एक्सचेंज की शुरुआत पिछले कुछ वर्षों में महसूस की गई है। एसएमई को पूंजी और श्रम के समूचित इस्तेमाल करने केलिहाज से सक्षम नहीं माना जाता है। ये श्रम पर बहुत कम खर्च करते हैं जिससे उत्पादकता में भी कमी आती है।
एसएमई के लिए तीन इसी तरह की इकाइयां इस तरह के शेयर बाजारों की शुरुआत के लिए केलिए सेबी के निर्देश की प्रतीक्षा कर रही हैं जो वर्ष 2009 में एक वास्तविकता हो सकती है।