इक्विटी बाजार को लगातार लग रहे झटकों के बीच म्युचुअल फंड हाउसों ने तेजी से फिक्स्ड मेच्योरिटी प्लान लांच कर रहे हैं ताकि निवेशकों को निवेश के लिए प्रोत्साहित किया जा सके।
कठोर तरलता के हालातों के बीच उनका रिटर्न धीरे-धीरे बढ़ रहा है। एक साल पहले सितबंर 2007 में तीन महीनें की एफएमपी की प्रतीकात्मक दर आठ से 8.3 फीसदी के करीब थी (म्युचुअल फंड रिटर्न का केवल संकेत दे सकते हैं गारंटी नहीं)और 12 महीनों के लिए उनका रिटर्न 9 से 9.50 फीसदी के करीब था।
इस महीनें लांच की गई छोटी एवं लंबी अवधि की एफएमपी 11 फीसदी का रिटर्न ऑफर कर रही हैं।
उदाहरण के लिए एसबीआई म्युचुअल फंड जिसने इस हफ्ते 500 करोड़ रुपए जुटाए, अपने 370 दिनों के प्लान के लिए 11 फीसदी का रिटर्न ऑफर कर रही है।
इसके साथ ही वह अपने 90 दिनों के लिए प्लान के लिए भी 11 फीसदी का रिटर्न ऑफर कर रही है। इससे दोनों प्लान फिक्स्ड डिपॉजिट से ज्यादा आकर्षक हो गए हैं।
आईसीआईसीआई बैंक और स्टेट बैंक ऑफ इंडिया अपने तीन महीनें से छह महीनें तक के डिपॉजिट के लिए 6.25 फीसदी से सात फीसदी का रिटर्न ऑफर कर रहे हैं। हालांकि एफएमपी में निवेश करने की दौड़ के बीच यह बात जरूर ध्यान में रखनी चाहिए कि यह फिक्स्ड डिपॉजिट से ज्यादा जोखिम भरा प्लान है क्योंकि ये कंपनियों के डिबेंचर और बांड में निवेश करते हैं।
और यदि कंपनियां डिफॉल्ट पर होती हैं तो म्युचुअल फंडों के लिए प्रतीकात्मक रिटर्न दे पाना मुश्किल हो जाता है। दरों में हालिया हुई बढ़ोतरी की मुख्य वजह यह है कि बैंक और कंपनियां दोनों पूंजी जुटाने के लिए ज्यादा दर देने केलिए तैयार हैं।
जेएम फाइनेंशियल के मुख्य निवेश अधिकारी मोहित वर्मा का कहना है कि दरों में इस बढोतरी की सिर्फ एक वजह कठोर तरलता की हालत है।
बीएनपी परिबास में फिक्स्ड इनकम के प्रमुख राजकुमार के ने कहा कि आरबीआई द्वारा महंगाई को नियंत्रित करने के लिए रेपो रेट और सीआरआर में की गई बढ़ोतरी की वजह से तरलता की हालत कठोर हो गई है।
इसके साथ ही अमेरिकी वित्त्तीय संकट की वजह से भी विदेशी संस्थागत निवेशक भी रुपए में आई तेज गिरावट की वजह से अपना इक्विटी निवेश बेच रहे हैं। इन वजहों से लगातार पूंजी निकल रही है। इन वजहों ने बैंकों और कंपनियों को ऊंची दरों पर उधारी लेने के लिए मजबूर किया है।
कर देयता केआधार पर भी एफएमपी फिक्सड डिपॉजिट से बेहतर हैं। एफएमपी से करों की कटौती सीधे डिविडेंड टैक्स मेथेड से की जाती है। मीर एसेट के फिक्स्ड इनकम के प्रमुख मूर्ती नागराज का कहना है कि यदि कोई खुदरा निवेशक डिविडेंड ऑप्शन का चुनाव करता है तो उन्हें दस फीसदी के हिसाब से करों का भुगतान करना पडेग़ा।
लंबी अवधि में एफएमपी में इनडेक्सन का फायदा भी मिलता है। यदि एफएमपी एक साल में ही मेच्योर हो जाती है तो निवेशक को 10 फीसदी कर का भुगतान बिना इंडेक्सन के करना पड़ता है और इनडेक्सन के साथ बीस फीसदी का।
यदि एफएमपी एक साल से ज्यादा की है तो निवेशक को दोहरे इंडेक्सन का फायदा मिलता है। जबकि एफडी में निवेशक को ऊंचा कर भुगतान करना पडता है।