Year Ender 2025: म्युचुअल फंड उद्योग ने 2025 में फंड लॉन्च की रफ्तार तो बनाए रखी, लेकिन इक्विटी बाजारों में उतार-चढ़ाव के चलते निवेशकों की नई योजनाओं में रुचि कम होने से मांग में गिरावट आई। साल 2025 में नवंबर तक, म्युचुअल फंड उद्योग ने 222 नए फंड ऑफर (NFOs) के जरिए 63,631 करोड़ रुपये जुटाए, जो 2024 में 239 NFOs से जुटाए गए करीब 1.2 लाख करोड़ की तुलना में काफी कम है।
यह गिरावट मुख्य रूप से एक्टिव इक्विटी NFOs से जुटाई गई राशि में तेज कमी के कारण आई है। नवंबर तक 2025 में इक्विटी सेगमेंट में 51 नए लॉन्च से 29,148 करोड़ रुपये जुटाए गए, जबकि पिछले साल 69 इक्विटी NFOs ने 91,000 करोड़ रुपये से ज्यादा की रकम जुटाई थी।
एक्सपर्ट्स के मुताबिक, एनएफओ (NFO) के जरिए जुटाई गई रकम काफी हद तक इक्विटी बाजार के सेंटीमेंट से जुड़ी होती है। खासकर डेट फंड्स पर टैक्स नियमों में बदलाव के बाद, सबसे ज्यादा फंड जुटाने वाले एनएफओ आमतौर पर इक्विटी सेगमेंट से ही आए हैं। इसी वजह से एनएफओ कलेक्शन में एक्टिव इक्विटी स्कीम्स की हिस्सेदारी हाल के वर्षों में बढ़ी है।
कुल एनएफओ कलेक्शन में इनकी हिस्सेदारी 2021 और 2022 में करीब 50 फीसदी थी, जो इसके बाद लगातार दो वर्षों तक बढ़ी। 2024 में यह हिस्सेदारी 77 फीसदी तक पहुंच गई। हालांकि, इस साल यह हिस्सेदारी फिर से 50 फीसदी से नीचे आ गई है, क्योंकि हाइब्रिड और पैसिव स्कीम्स में निवेशकों की दिलचस्पी ज्यादा देखने को मिली है।
रुपी विद रुषभ इन्वेस्टमेंट सर्विसेज के फाउंडर रुषभ देसाई ने कहा, “इस साल का NFOs लाइन-अप 2024 की तुलना में अलग है। आमतौर पर ज्यादा रकम जुटाने वाली एक्टिव इक्विटी स्कीम्स की संख्या इस बार अपेक्षाकृत कम रही है। आम तौर पर बुल मार्केट के दौर में, जब निवेशकों की जोखिम लेने की क्षमता ज्यादा होती है, तब लॉन्च और कलेक्शन दोनों ही ज्यादा रहते हैं।”
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वहीं, पूर्व म्युचुअल फंड एक्जीक्यूटिव और सेंस एंड सिम्प्लिसिटी के फाउंडर व सीईओ सुनील सुब्रमण्यम ने कहा कि गिरावट का एक कारण बड़े एसेट मैनेजमेंट कंपनियों (AMCs) की ओर से अपेक्षाकृत कम लॉन्च भी है।
उन्होंने कहा, “2024 में, एचडीएफसी (HDFC) और स्टेट बैंक ऑफ इंडिया (SBI) जैसे बड़े एएमसी के कुछ एनएफओ ने ही बड़ी मात्रा में पैसा जुटा लिया था। इस साल नए एएमसी ज्यादा एक्टिव भूमिका में रहे हैं।”
सुब्रमण्यम ने आगे कहा, “इसके अलावा, फंड हाउसों द्वारा थीमैटिक विंडो का इस्तेमाल करते हुए इनोवेशन, मल्टी-फैक्टर और एक्टिव मोमेंटम जैसी ‘स्लाइस्ड एंड डाइस्ड’ पेशकशों को इस साल निवेशकों की व्यापक स्वीकार्यता नहीं मिल पाई।”
उन्होंने यह भी कहा कि अन्य कारक भी इसमें भूमिका निभा रहे हैं। खासतौर पर हाई-रिस्क थीमैटिक स्ट्रैटेजीज में फंड लॉन्च की बढ़ती संख्या को देखते हुए, 2025 की शुरुआत में सेबी (Sebi) ने नियामकीय सख्ती बढ़ाई, जिसका भी असर देखने को मिला है।
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1 अप्रैल से सेबी ने दो अहम कदम लागू किए हैं। इसके तहत अब डिस्ट्रिब्यूटर्स को निवेशकों का पैसा मौजूदा स्कीमों से एनएफओ (NFOs) में शिफ्ट कर ज्यादा कमीशन कमाने की अनुमति नहीं होगी।
इसके अलावा, एसेट मैनेजमेंट कंपनियों (AMCs) के लिए यह अनिवार्य कर दिया गया है कि वे एनएफओ के जरिए जुटाई गई राशि को एक तय समय-सीमा के भीतर निवेश करें, ताकि फंड लॉन्च बाजार की स्थिति और घोषित एसेट एलोकेशन स्ट्रैटेजी के अनुरूप हों।