Multifactor Strategy: भारत में ट्रेडिशनल इंडेक्स निवेश से हटकर अब निवेशकों का रुझान फैक्टर-बेस्ड और खास तौर पर मल्टीफैक्टर रणनीतियों की ओर बढ़ रहा है। बीते एक साल में मल्टीफैक्टर इंडेक्स फंड्स के एसेट्स अंडर मैनेजमेंट (AUM) में तीन गुना से ज्यादा की तेज़ी आई है। 31 मार्च 2025 तक इन फंड्स का कुल AUM ₹5,495 करोड़ तक पहुंच चुका है, जो मार्च 2024 में ₹1,751 करोड़ था। निवेशकों की इस दिलचस्पी के पीछे एक बड़ा कारण यह है कि मल्टीफैक्टर रणनीति में बाजार के उतार-चढ़ाव के बावजूद रिटर्न में स्थिरता और रिस्क में बैलेंस दिखाई देता है।
मोतीलाल ओसवाल एसेट मैनेजमेंट कंपनी के पैसिव फंड रिसर्च हेड चेतन कुकरेजा के मुताबिक, ट्रेडिशनल मार्केट-कैप आधारित इंडेक्स निवेश भले ही सस्ता हो, लेकिन वह उन गुणों को नज़रअंदाज़ करता है जो किसी स्टॉक के लंबे समय तक बेहतर प्रदर्शन की वजह होते हैं। ऐसे में फैक्टर आधारित और खासकर मल्टीफैक्टर रणनीति निवेशकों को एक ज्यादा विवेकपूर्ण, संतुलित और रिसर्च आधारित निवेश विकल्प देती है।
चेतन कुकरेजा बताते हैं कि फैक्टर-आधारित निवेश में सिर्फ कंपनी के साइज की बजाय उन विशेषताओं को देखा जाता है जो लंबे समय में रिटर्न को प्रभावित करते हैं। उदाहरण के तौर पर, कोई स्टॉक अगर सस्ते मूल्य पर उपलब्ध है तो वह वैल्यू फैक्टर में आता है, अगर कंपनी का मुनाफा लगातार स्थिर है और कर्ज कम है तो वह क्वालिटी फैक्टर में आती है। इसी तरह हाल ही में तेजी दिखाने वाले स्टॉक्स मोमेंटम और कम उतार-चढ़ाव वाले स्टॉक्स लो वोलैटिलिटी फैक्टर में गिने जाते हैं।
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एक ही फैक्टर पर आधारित निवेश रणनीति कभी-कभी असफल हो सकती है, क्योंकि बाजार हर समय एक जैसा नहीं रहता। इसी वजह से मल्टीफैक्टर स्ट्रैटेजी अपनाई जाती है, जिसमें एक से ज़्यादा फैक्टर को मिलाकर पोर्टफोलियो तैयार किया जाता है। चेतन कुकरेजा के मुताबिक, जब विभिन्न फैक्टर्स को मिलाया जाता है तो एक दूसरे की कमज़ोरियों की भरपाई हो जाती है और पोर्टफोलियो स्थिरता के साथ आगे बढ़ता है।
बीते एक साल में भारत में मल्टीफैक्टर इंडेक्स फंड्स की मांग ज़बरदस्त तरीके से बढ़ी है। 31 मार्च 2025 तक ऐसे फंड्स का कुल AUM ₹5,495 करोड़ पर पहुंच गया, जबकि मार्च 2024 में यह सिर्फ ₹1,751 करोड़ था। चेतन कुकरेजा के मुताबिक, यह 3 गुना से ज़्यादा ग्रोथ इस बात का संकेत है कि अब निवेशक ट्रेडिशनल स्ट्रैटेजी से हटकर ज्यादा विश्लेषणात्मक और संतुलित तरीके से निवेश करना चाहते हैं।
NSE द्वारा बनाया गया Nifty500 Multifactor MQVLv 50 Index, चार फैक्टर्स – मोमेंटम, क्वालिटी, वैल्यू और लो वोलैटिलिटी – पर आधारित है। हर फैक्टर को 25% वज़न देकर टॉप 50 स्टॉक्स का चयन किया जाता है। पिछले 5 सालों में इस इंडेक्स ने 27.46% का सालाना रिटर्न दिया है। वहीं, वैल्यू इंडेक्स ने 43.80%, मोमेंटम ने 29.55%, क्वालिटी ने 24.31% और लो वोलैटिलिटी ने 20.36% का रिटर्न दिया।
चेतन बताते हैं कि अप्रैल 2005 से अप्रैल 2025 तक के आंकड़ों में यह बात सामने आई है कि मार्केट 55% समय बुल फेज़, 17% बियर फेज़ और 28% रिकवरी फेज़ में रहा है। इन तीनों दौर में फैक्टर्स की परफॉर्मेंस अलग रही है। बुल फेज़ में मोमेंटम ने सबसे तेज़ी दिखाई, जबकि बियर फेज़ में क्वालिटी और लो वोलैटिलिटी ने गिरावट को थामने का काम किया। रिकवरी के वक्त वैल्यू और मल्टीफैक्टर इंडेक्स ने तेज़ी से वापसी की।
चेतन कुकरेजा बताते हैं कि सितंबर 2010 से अब तक 5-वर्षीय रोलिंग रिटर्न के 3,586 उदाहरणों में मल्टीफैक्टर स्ट्रैटेजी ने औसतन 19.04% रिटर्न दिया है और एक बार भी निगेटिव रिटर्न नहीं दिखाया। करीब 94% मामलों में रिटर्न 10% से ज़्यादा रहा और 43% मामलों में 20% से अधिक। इस दौरान वैल्यू में 11.5% मामलों में निगेटिव रिटर्न देखा गया जबकि मोमेंटम स्ट्रैटेजी में भले ही ज़्यादा रिटर्न मिले, लेकिन गिरावट का जोखिम ज़्यादा रहा।
चेतन का मानना है कि जब मार्केट लगातार बदलता है और कोई एक रणनीति हर समय नहीं चलती, तब मल्टीफैक्टर निवेश एक भरोसेमंद विकल्प बनता है। यह न सिर्फ रिटर्न को स्थिर रखता है, बल्कि निवेशक को यह भरोसा भी देता है कि उनका पैसा ऐसी रणनीति में लगा है जो हर परिस्थिति में खुद को ढाल सकती है।
मल्टीफैक्टर फंड्स का इस्तेमाल मुख्य निवेश रणनीति के तौर पर या मौजूदा पोर्टफोलियो में विविधता लाने के लिए किया जा सकता है। यह निवेशकों को एक साथ कई फैक्टर में एक्सपोजर देता है, वो भी कम लागत में और बिना किसी एक फैक्टर पर निर्भर हुए।
(डिस्क्लेमर: यह रिपोर्ट मोतीलाल ओसवाल एसेट मैनेजमेंट कंपनी के पैसिव फंड रिसर्च हेड चेतन कुकरेजा के विश्लेषण पर आधारित है। इसमें व्यक्त विचार उनकी निजी हैं।)