गोल्डमैन सैक्स के पूर्व कार्यकारी निदेशक 34 वर्षीय सिध्दार्थ पुंशी को गोल्डमैन सैक्स छोड़े हुए करीब चार महीने हो गए हैं। इसके बाद उन्होंने निवेश बैंक और संस्थागत प्रतिभूति फर्म जेफ्ररीज इंटरनेशनल को प्रबंध निदेशक एवं कंट्री हेड के रुप में ज्वाइन किया।
सुनील जैन और सिध्दार्थ ज़राबी को दिए गए हालिया साक्षात्कार में पुंशी ने कहा कि कठोर तरलता का माहौल और चुनौतीपूर्ण वैश्विक वातावरण के बावजूद भारतीय कंपनियों द्वारा विलय एवं अधिग्रहण के सौदे जारी रहेंगे।
मौजूदा जोखिम भरे माहौल और पूंजी अनुपलब्धता के बीच विलय और अधिग्रहण सौदों की क्या हालत है?
भारतीय संदर्भ में यह कह सकते हैं कि पिछले 15 से 18 महीनों के दौरान हमने जो बडे विलय एवं अधिग्रहण सौदे देखे, वे अब कम देखने को मिलेंगे। हालांकि छोटी और मंझोली कंपनियों के सौदे जारी रहेंगे। वित्तीय बाजार के चुनौती से गुजरने की वजह से कुछ बैंकर ही बड़े सौदे कर पाने में कामयाब हो जाएंगे। हम यह कह सकते हैं कि 25 से 50 करोड़ डॉलर के सौदे बड़े सौदों की अपेक्षा ज्यादा होंगे।
मूल्यांकन वैश्विक रूप से कम है तो क्या ऐसे में भारतीय कंपनियां सौदों के लिए तैयार हैं?
यह स्पष्ट है कि भारतीय कंपनियों के पास विलय और अधिग्रहण के लिए ज्यादा गुंजाइश है और वे इसके लिए चारों ओर देख रही हैं। सिर्फ इन्फफोसिस ने हाल में एक्सॉन को खरीदने का निर्णय लिया। यूरोपीय सूचना-तकनीकी बाजार अभी सुधार के दौर से गुजर रहा है और हम दूसरी यूरोपीय कंपनी को भी उनकी बिक्री के लिए सलाह दे रहे हैं।
हम भारतीय कंपनियों को भी सलाह दे रहे हैं जो कि खरीदने वाली कंपनियों में से प्रमुख हैं। दो महीने पहले जर्मनी की मझोली कंपनी बाजार में थी। ऐसी चार कंपनियां पहले प्रतियोगिता में थीं जो अंतिम चरण में बाहर हो गईं। इनमें से दो रणनीतिक खरीदार कंपनियां थीं और ये कंपनियां भारतीय थीं। जबकि दूसरी कंपनियां प्राइवेट इक्विटी कंपनियां हैं।
भारतीय कंपनियों को विदेशों में अधिग्रहण के लिए कौन उत्साहित कर रहा है?
ज्यादातर भारतीय कंपनियों को अब यह पता चल गया है कि कीमत इस समय काफी अच्छी है और वे मौके का फायदा उठाना चाह रही हैं। आकर्षक बात तो यह है कि हमारे विदेशी ग्राहक भी कोई भारतीय ही हैं। भारतीय कंपनियां मीडिया परिसंपत्तियां भी खरीदने की सोच रही हैं। इंग्लैंड में न्यूजपेपर कंपनियों की कीमतें पिछले छह महीनों के दौरान आधी से ज्यादा कम हो गई हैं।
घरेलू कंपनियों में विदेशी कंपनियों के हित क्या हैं?
हमारे विदेशी ग्राहक भारत में अपनी गतिविधियां चाहते हैं। जिन सेक्टरों में हम ज्यादा गतिविधियां देखेंगे वो हैं जहाजरानी, लॉजिस्टिक, फार्मा,तेल और गैस और मीडिया। मीडिया और जनरल एंटरटेनमेंट में ज्यादा गतिविधियां देखेंगे।
टेलीकॉम सेक्टर (वाईमैक्स और केबल) में ज्यादा गतिविधियां देखी जा सकेंगी। परंपरागत टेलीकॉम कंपनियां और नए लाइसेंस भी एजेंडे में होंगे। हालांकि विदेशी कंपनियां भारतीय कंपनियों के अधिक निशाने पर होंगी न कि भारतीय कंपनियां।
क्या भारतीय कंपनियां पूंजी जुटा सकती हैं?
भारत वैश्विक वित्तीय संकट से जुड़ा हुआ नहीं है। निवेशक भारत की अर्थव्यवस्था की मजबूती पर भरोसा जता रहे हैं। वित्तीय वर्ष 2008 में एफसीसीबी बाजार में वॉल्यूम में गिरावट दर्ज की गई तो हमारा मानना है कि वित्तीय वर्ष 2009 में फाइनेन्सिंग का काम जोर पकडेग़ा।