जेएम बख्शी पोर्ट्स ऐंड लॉजिस्टिक्स के प्रवर्तक परिवार में विवाद की वजह से कंपनी का 2,500 करोड़ रुपये का प्रस्तावित आईपीओ अधर में लटक गया है।
इस घटनाक्रम से अवगत सूत्रों का कहना है कि कंपनी ने पिछले साल आरंभिक सार्वजनिक निर्गम (आईपीओ) लाने के लिए अपना डीआरएचपी पेश किया था।
लेकिन इसे लेकर अस्पष्टता बनी हुई है कि वह बाजार नियामक के समक्ष अपनी सूचीबद्धता योजना को कब तक पेश करने में सक्षम हो पाएगी। कंपनी को इस संबंध में भेजे गए सवालों का जवाब नहीं मिला है।
जेएम बख्शी ग्रुप के प्रवर्तक वीर कोटक ने हाल में जर्मन शिपिंग कंपनी हापांग-ल्यॉड द्वारा जेएम बख्शी पोर्ट्स ऐंड लॉजिस्टिक्स में हिस्सेदारी खरीदने के लिए बंबई उच्च न्यायालय से हस्तक्षेप की मांग की।
न्यायालय की वेबसाइट पर उपलब्ध जानकारी के अनुसार, वीर कोटक ने फर्म, अपने पिता कृष्णा कोटक, भाई घ्रुव कोटक, एचएल टर्मिनल होल्डिंग (हापांग-लॉयड की सहायक इकाई) और दो कंपनी निदेशकों – रॉल्फ एरिक हैबेन जैनसेन और धीरज भाटिया को प्रतिवादियों के तौर पर पेश किया है।
एक पिछली रिपोर्ट में सूत्रों के हवाले से कहा गया कि सिंगापुर स्थित वीर कोटक ने आरोप लगाया है कि हापांग ल्यॉड के साथ सौदा उनकी बगैर अनुमति के शुरू किया गया, जिससे उनके अधिकारों के उल्लंघन को बढ़ावा मिला।
सुनवाई के दौरान, बंबई उच्च न्यायालय के न्यायमूर्ति श्रीराम मोडक ने प्रतिवादियों को अपने जवाब पेश करने की अनुमति दी और मामले को 8 नवंबर तक स्थगित कर दिया।
निवेश बैंकरों और कॉरपोरेट वकीलों ने चेतावनी दी है कि किसी तरह के गैर-सुलझे मुद्दों (खासकर कंपनी की इक्विटी से जुड़े हुए) से आईपीओ योजना पटरी से उतर सकती है, क्योंकि संभावित निवेशक दूरी बना सकते हैं। करीब 100 वर्ष पुराना समूह जेएम बख्शी भारत में प्रख्यात मैरीटाइम एवं लॉजिस्टिक फर्म है।
प्रवर्तक कृष्णा कोटक परिवार का जेएम बख्शी पोर्ट्स ऐंड लॉजिस्टिक्स (पूर्व में इंटरनैशनल कारगो टर्मिनल्स ऐंड इन्फ्रास्ट्रक्चर नाम से चर्चित) में करीब 60 प्रतिशत हिस्सा है।
जनवरी में, हापांग लॉयड की एक पूर्ण स्वामित्व वाली सहायक कंपनी ने जेएम बख्शी पोर्ट्स ऐंड लॉजिस्टिक्स की 35 प्रतिशत हिस्सेदारी निजी इक्विटी दिग्गज बेन कैपिटल से खरीदने के लिए समझौता किया था। फर्म ने अतिरिक्त शेयर खरीदने के लिए कंपनी और उसके प्रवर्तक- कोटक परिवार के साथ भी समझौता किया है।
जेएम बक्सी पोर्ट्स ऐंड लॉजिस्टिक्स के आईपीओ से हासिल होने वाली रकम का इस्तेमाल कर्ज चुकाने, व्यवसाय का विस्तार करने और संभावित अधिग्रहणों पर किए जाने की योजना थी।