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क्या सोने की चमक पर भी छा रही है मंदी की स्याही?

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बीएस संवाददाता
Last Updated- December 11, 2022 | 12:16 AM IST

अमेरिकी प्रेस में आई कुछ रिपोर्टों के मुताबिक मंदी घटने के आसार नहीं दिखने और सोने की कीमतें आसमान छूने से ज्यादा लोग अब अपने पुराने और टूटे फूटे सोने के गहने बेच रहे हैं।
घरेलू बाजार में भी कई निवेशकों ने इस बात की जानकारी ली है कि उन्हे इस मौके पर गोल्ड एक्सचेंज ट्रेडेड फंडों में निवेश करना चाहिए या नहीं। इस तरह की पूछताछ पर कोई आश्चर्य भी नहीं होना चाहिए क्योकि तब जब सोना 900 डॉलर प्रति औंस के भाव पर बिक रहा हो (छह साल पहले यह 325 डॉलर प्रति औंस के भाव पर था)।
यह यह बताना भी जरूरी है कि फरवरी में यह एक हजार डॉलर प्रति औंस के भाव से ऊपर पहुंच गया था। लेकिन इसका मतलब यह नहीं है कि  निवेशक सोने के भावों पर बारीकी से ट्रैक कर रहे हैं। यह गोल्ड ईटीएफ और गोल्ड स्टॉक फंड की वजह से ही उनमें इतनी जागरूकता देखी जा रही है।
अप्रैल 2, 2009 को गोल्ड ईटीएफ ने साल भर में 27.01 फीसदी की रिटर्न दिया है जबकि डाइवर्सिफाइड इक्विटी फंडों की कैटगरी का रिटर्न -36.76 फीसदी रहा है। इस समय गोल्ड ईटीएफ सबसे ऊपर हैं, एक माह के प्रदर्शन को छोड़ तीन माह, छह माह और एक साल का रिटर्न में यह सबसे आगे हैं।
लिहाजा अगर हम इसे ट्रैक नहीं भी कर रहे हैं तो भी केवल इसके प्रदर्शन को देख कर ही संकेत मिल सकते हैं। एक माह के रिटर्न में आगे नहीं रहने की सबसे बड़ी वजह रही सोने की कीमतों में आया 7.16 फीसदी का करेक्शन (20 मार्च 2009 से 6 अप्रैल 2009)। लेकिन इसके बावजूद सोने के प्रति ऐसा आकर्षण पहले कभी नहीं रहा जैसा कि इस उतार चढ़ाव भरे बाजार में है।
अहम यह नहीं है कि इस समय सोने में निवेश करना चाहिए या नहीं बल्कि ऐसा करने के पीछे का तर्क अहम है। पारंपरिक रूप से सोने में निवेश हमेशा से ही सुरक्षित माना जाता रहा है, हर बुरे वक्त में लोग इस ओर भागते हैं। लेकिन यह समझदारी अब उस तरह से नहीं काम करती, खासकर बाजार में गोल्ड ईटीएफ आने से, अब यह निवेश फिजिकल न होकर कागज पर ही होने वाला निवेश हो गया है जिसकी कीमत सोने की डिमांड और इसकी सप्लाई पर आधारित है।
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मार्च 2009 में नैस्डैक दुबई ने क्षेत्र की पहली शरिया आधारित ट्रेडेबल सेक्योरिटी बाजार में उतारी जो सोने से जुड़ी थी। इसका नाम था दुबई गोल्ड, नैस्डैक दुबई की लिस्ट में यह पहला ईटीएफ है।
इस बीच रिपोर्टों के मुताबिक साल के पहले छह हफ्तों में, सोने के खरीदारों ने 200 टन से ज्यादा सोने की खरीदारी एसपीडीआर गोल्ड शेयर के जरिए की, यह दुनिया का सबसे बड़ी सोने पर आधारित ईटीएफ बन गया जिसमें एक हजार टन से ज्यादा सोना है।
गोल्ड ईटीएफ ने इसमें निवेश की मांग भी बढ़ाई है क्योकि इसमें निवेश करना बहुत ही आसान भी है। इसकी वजह से सोना भी अब वित्तीय बाजार में उतना ही वोलाटाइल हो गया है जितना कि कोई और वित्तीय असेट क्योकि निवेशक की रुचि में भी उतार चढ़ाव आता रहता है।
इसके अलावा सोना गिरते हुए शेयर बाजार में एक अच्छे हेज के रूप में भी नहीं का कर पाता। याद करिए जब अक्टूबर 2008 में वैश्विक मंदी चरम पर थी, सोने की कीमते भी उस दौर के न्यूनतम पर आ गई थीं। 
सोने के अंतरराष्ट्रीय भाव मार्च 2008 में अपने उच्चतम स्तर पर थे और तब से अक्टूबर आखिरी तक यह 25 फीसदी गिर गए।सोना अब फिजिकल रूप में रखने की चीज नहीं रह गई है बल्कि अब यह कागज में रखने योग्य संपत्ति बन गई है जिसकी कीमत में उतार चढ़ाव आता है।
इसमें कोई शक नहीं कि सोना की कीमत डॉलर के खिलाफ और दुनिया भर में मौद्रिक मंदी के दौरान भी हेज करने के लिए बनी रहती है लेकिन बहुत बाजार के जानकारों को नहीं लगता है कि यह फिलहाल ओवरवैल्यूड है।
हम बेशक एक गोल्ड बबल में हो सकते हैं जो स्टॉक, तेल और रियालिटी के बबल जैसा ही हो सकता है। और आज सोने के प्रति झुकाव वैसा ही हो सकता है जैसा कि 2007 में स्टॉक या रियालिटी के प्रति हो। लेकिन किसी भी सतर्क जानकार के लिए बाजार में कई आशावादी लोग हैं जो सोने को और ऊंचाई पर देखे जाने की भविष्यवाणी कर रहे हैं।
अमेरिका की स्विस अमेरिका ट्रेडिंग कार्पोरेशन ने मार्च में एक लेख प्रकाशित किया जिसमें 70 अर्थशास्त्री थे जिन्होने औसत आधार पर सोने में जबरदस्त उछाल के संकेत दिए और कहा कि यह 2000 डॉलर प्रति औंस तक जा सकता है।
इसके लिए तर्क अलग अलग थे, और सबसे आम तर्क यह था कि भविष्य की महंगाई में यह अच्छ हेज के रूप में काम कर सकता है। और चूंकि इसकी तरलता अंतरराष्ट्रीय है, इससे इसका महत्व और बढ़ जाता है।
लेकिन अमेरिका एक डीलर का कहना था कि अगर कोई यह कहे कि उसे मालूम है कि सोना खरीदने के लिए यह अच्छा समय है या नहीं तो वहां से खसक लीजिए क्योकि अगर उसे इसका जवाब सचमुच मालूम होता तो वह अपनी रोजी रोटी के लिए वहां यह काम नहीं कर रहा होता।

First Published : April 13, 2009 | 12:33 PM IST