GQG Partners EM Equity Fund: जीक्यूजी पार्टनर्स इमर्जिंग मार्केट्स (ईएम) इक्विटी फंड भारतीय बाजारों में निवेश करने की संभावना तलाश रहे अमेरिकी निवेशकों के बीच सक्रिय रुप से प्रबंधित बेहद लोकप्रिय फंडों में से एक के तौर पर उभरा है। इस फंड की प्रबंधन अधीन परिसंपत्तियां (एयूएम) 20 लाख करोड़ डॉलर पर पहुंच गई हैं।
हालांकि अमेरिका में सूचीबद्ध निवेश फंड पूरी तरह से भारत-समर्पित नहीं है लेकिन इसके आवंटन में भारतीय इक्विटी का योगदान एक तिहाई से अधिक है। यह अब तक का सबसे अधिक है। इसके बाद 20.4 प्रतिशत के साथ ब्राजील का स्थान है।
पिछले एक साल के दौरान भारतीय बाजारों के दमदार प्रतिफल को देखते हुए अमेरिका में निवेशकों ने ऐसे फंडों में पैसा लगाने पर जोर दिया है जो भारतीय इक्विटी में प्रत्यक्ष या अप्रत्यक्ष निवेश का विकल्प मुहैया कराते हैं। मार्च 2024 में समाप्त एक वर्ष की अवधि के दौरान एमएससीआई इंडिया इंडेक्स करीब 40 प्रतिशत बढ़ा और उसका प्रदर्शन एसऐंडपी 500 इंडेक्स से अच्छा रहा। एसऐंडपी 500 इंडेक्स में करीब 30 प्रतिशत की तेजी आई जबकि एमएससीआई वर्ल्ड इडेक्स में 25 प्रतिशत की बढ़ोतरी हुई।
राजीव जैन द्वारा प्रबंधित जीक्यूजी पार्टनर्स ईएम इक्विटी फंड ने 28 प्रतिशत का प्रतिफल दिया है। यह फंड इस समय भारत में भारी निवेश के साथ ऐक्टिव श्रेणी में सबसे बड़े फंडों में से एक है। अमेरिका में सूचीबद्ध भारत-समर्पित फंड हैं वैनगार्ड एफटीएसई इमर्जिंग मार्केट्स फंड और आईशेयर्स एमएससीआई इंडिया एक्सचेंज ट्रेडेड फंड। मॉर्निंगस्टार के आंकड़ों के अनुसार अमेरिका में सूचीबद्ध भारत-केंद्रित ईटीएफ ने पिछले 12 महीनों में 3 अरब डॉलर से ज्यादा का निवेश आकर्षित किया।
बाजार के जानकारों का मानना है कि मजबूत निवेश फैसले और शेयर आवंटन की वजह से जीक्यूजी के ईएम फंड ने अपने प्रतिस्पर्धियों को पीछे छोड़ दिया है। फंड का भारत में आवंटन एमएससीआई ईएम इंडेक्स की तुलना में दोगुना है जबकि चीन में यह मामूली है। पिछले एक साल में चीन का इंडेक्स 17 फीसदी गिरा है।
इस साल के शुरू में मीडिया के साथ बातचीत में जीक्यूजी के पोर्टफोलियो प्रबंधक ब्रायन केर्समांक ने बताया था कि कैसे जीक्यूजी की ईएम रणनीति के लिए भारत से अधिक महत्वपूर्ण कोई देश नहीं है।
परिसंपत्ति प्रबंधक ने पिछले साल अपनी वेबसाइट पर प्रकाशित एक रिपोर्ट में कहा था, ‘हमें विकसित दुनिया में क्रियान्वित ताजा नीतियों से निराशा हुई है। जैसे अमेरिका और यूरोप दोनों में प्रोत्साहन समाप्त करना, चीन में नियामकीय सख्ती और फ्रांस में राष्ट्रीयकरण। इसके विपरीत हमें भरोसा है कि भारत का नजरिया इनसे काफी अलग बना रहेगा।’