बार्कलेज बैंक पीएलसी के प्रेसिडेंट और इन्वेस्टमेंट बैंक मैनेजमेंट के प्रमुख स्टीफन डेनटन ने मुंबई में बार्कलेज के नए दफ्तर में देव चटर्जी और जेडन मैथ्यू पॉल से बातचीत में कहा कि भारत अपनी स्थिर सरकार, मजबूत कानूनी प्रणाली और तेज आर्थिक वृद्धि के कारण दुनिया भर के निवेशकों का ध्यान आकर्षित कर रहा है। व्यापार, बिक्री और पूंजी बाजार सहित वैश्विक बाजारों में तीन दशक से अधिक के अनुभव वाले डेनटन ने यह भी बताया कि वैश्विक स्तर पर भू राजनीतिक घटनाओं पर बाजार कैसी प्रतिक्रिया करते हैं। मुख्य अंशः
जब भी किसी केंद्रीय बैंक के गवर्नर बदलते हैं हमेशा ही बदलाव आता है। अहम बात यह है कि इसमें निरंतरता है। वित्त मंत्रालय से आने से मुझे लगता है कि मौद्रिक नीति के आसपास एक प्रोटोकॉल है, जो महत्त्वपूर्ण होगा। अगर आप अधिकांश केंद्रीय बैंकों को देखें तो पाएंगे कि गवर्नर नियुक्त करते वक्त यह सुनिश्चित किया जाता है कि उन्हें मौद्रिक और राजकोषीय नीति की समझ हो और शासन के उद्देश्यों के साथ उनका तालमेल हो। हालांकि जाहिर तौर पर उनके स्वतंत्र विचार होंगे।
मैं कहूंगा कि इस साल मैंने देखा है कि दुनिया भर में सरकारों को चुनने के लिए असाधारण संख्या में लोगों ने मतदान किया है। लोकतांत्रिक प्रक्रिया ने प्रभावी तरीके से काम किया है। स्पष्ट रूप से सबसे बड़ी चिंता 20 जनवरी को लेकर है क्योंकि उस दिन अमेरिका में नए राष्ट्रपति पद संभालेंगे। दी चीजों पर सबसे ज्यादा ध्यान दिया गया हैः पहली, अमेरिका में घरेलू वृद्धि और मौद्रिक नीति की दिशा और दूसरी, देश के आधार पर कई शुल्क लागू करना। हालांकि, यह अनुमान लगाना काफी मुश्किल है कि नव निर्वाचित राष्ट्रपति (डॉनल्ड ट्रंप) क्या करेंगे, लेकिन कुछ देशों में 60 फीसदी शुल्क लगेगा या नहीं इसके बारे में कई बार स्पष्ट संदेश दिए गए हैं। अगले साल की पहली छमाही में अमेरिका औऱ चीन के संबंध ही छाए रहेंगे। यूरोप के दो अहम देश फ्रांस और जर्मनी में भी राजनीतिक बदलाव के दौर से गुजर रहे हैं।
एशिया में शेयर सूचकांकों का प्रदर्शन जबरदस्त रहा है। विभिन्न सूचकांकों और उप सूचकांकों में भारत 13 से 15 फीसदी ऊपर है। इसलिए जोखिम वाली परिसंपत्तियों ने अपेक्षाकृत बेहतर प्रदर्शन किया है। भारत के लिए सबसे अहम यह है कि वह चुनौती वाली वृद्धि और मुद्रास्फीति के ऊंचाई पर होने के दौर में है। नए गवर्नर के लिए यही समझना जरूरी है। भारत में अगले साल से ब्याज दरों में नरमी आ सकती है?
पहली बात, भारत में पर्याप्त वृद्धि हुई है। इसका दो बातों से सीधा ताल्लुक है। पहली, भारत के पास जनसांख्यिकीय लाभ और पर्याप्त वृद्धि है तथा दूसरी, भारत की राजनीतिक प्रणाली अपेक्षाकृत शांत और सुसंगत है। बीते दो से तीन वर्षों में लोग चीन और चीन के उत्पादों को लेकर सतर्क हो गए हैं। चीन के विश्व के अन्य देशों के साथ संबंध हैं। भारत का जीडीपी दुनिया के शीर्ष पांच देशों में है। भारत में जीडीपी वृद्धि दर 5 से 7 फीसदी के बीच है और सरकार भी स्थिर है।
अगर कॉरपोरेट की आय वृद्धि का स्तर बरकरार रहता है तो अधिक मल्टीपल को समर्थन मिलेगा। नैस्डैक इस साल 32 फीसदी चढ़ा है और अमेरिका की सूचीबद्ध कंपनियों का बाजार पूंजीकरण उसके जीडीपी का ढाई गुना है। यह किसी भी अन्य देश के मुकाबले काफी अधिक है। मगर उनकी आय वृद्धि भी जारी है।
निवेश के मोर्चे पर भारत अन्य उभरते बाजारों से प्रतिस्पर्धा कर रहा है। भारत पहले से ही उभरती अर्थव्यवस्था है और 3 लाख करोड़ रुपये की अर्थव्यवस्था है। मुझे नहीं लगता है भारत निवेश के मोर्चे पर अमेरिका से प्रतिस्पर्धा कर रहा है।