सूचीबद्ध कंपनियों के लिए इक्विटी पूंजी जुटाने का एक साधन फॉलो ऑन पब्लिक ऑफर (एफपीओ) अपनी लोकप्रियता खो चुका है। घरेलू बाजार में पिछला सफल एफपीओ 2014 में इंजीनियर्स इंडिया का आया था। पिछले 10 साल में सार्वजनिक क्षेत्र की इस कंपनी के अलावा केवल तीन अन्य कंपनियां सफलतापूर्वक एफपीओ ला पाई हैं। एफपीओ की प्रक्रिया आरंभिक सार्वजनिक निर्गम (आईपीओ) से काफी मिलती-जुलती है।
सूचीबद्घ कंपनियों के पूंजी जुटाने के लिए एफपीओ से दूर रहने की कई वजह हैं। इनमें मंजूरी की लंबी प्रक्रिया, द्वितीयक बाजार में अस्थिरता आने पर निर्गम के पूरी तरह सब्सक्राइब न होने का जोखिम आदि शामिल हैं। इसके बजाय सूचीबद्ध कंपनियां पूंजी जुुटाने के लिए क्वालिफाइड इंस्टीट््यूशनल प्लेसमेंट (क्यूआईपी) को तरजीह दे रही हैं क्योंकि इसमें कम समय लगता है।
हालांकि एफपीओ का यह सूखा जल्द खत्म हो सकता है। येस बैंक अगले सप्ताह 15,000 करोड़ रुपये का भारी-भरकम एफपीओ लाने की योजना बना रहा है। ऐसे में सवाल उठता है कि येस बैंक ने क्यूआईपी या राइट इश्यू के बजाय एफपीओ को क्यों चुना? निवेश बैंकरों का कहना है कि बैंक की मुश्किलों को मद्देनजर रखते हुए उसके पास बहुत कम विकल्प थे। हालांकि उसका बोर्ड कई रास्तों से धन जुटाने को मंजूरी दे चुका है। उन्होंने कहा कि शेयरों की कीमत में अधिक कमी, जटिल शेयरधारिता और वर्तमान बाजार दर से काफी अधिक छूट पर शेयर जारी करने की बाध्यता का मतलब है कि बैंक के लिए धन जुटाने के ज्यादातर दरवाजे बंद हैं।
येस बैंक के शेयर गुरुवार को 26.7 रुपये पर बंद हुए। इस हिसाब से बैंक का मूल्य 33,500 करोड़ रुपये है। 15,000 करोड़ रुपये की इक्विटी पूंजी जुटाने का मतलब होगा कि उसके वर्तमान इक्विटी आधार में भारी कमजोरी आएगी। कुछ रिपोर्ट में कहा गया है कि निवेशकों को लुभाने के लिए मौजूदा बाजार दर से आधे पर शेयर जारी किए जाएंगे।
