शेयर बाजार में आई तेज गिरावट ने एसेट मैंनेजमेंट कंपनियों की जोखिम लेने की क्षमता भी घटा दी है। इनमें से बहुत सारी कंपनियां भारी कैश या फिर कैश जैसे निवेश (बैंक के शार्ट टर्म डिपॉजिट) पर बैठे हैं।
क्रिसिल की एक रिपोर्ट के मुताबिक कुछ इक्विटी ऑरिएंटेड फंड ऐसे भी हैं जो करीब 40 फीसदी कैश पर बैठे हुए हैं। जहां तक संख्या की बात है तो देश की सबसे बड़ा फंड हाउस रिलायंस म्युचुअल फंड अपने तीन फंडों में औसतन 33 फीसदी कैश पर हैं, रिलायंस इक्विटी (39.13), रिलायंस नेचुरल रिसोर्सेज (32.30) और रिलायंस डाइवर्सिफाइड पावर (30.13)।
रिलायंस म्युचुअल फंड के मुख्य कार्यकारी अधिकारी विक्रम गुगनानी ने अपने इस कदम का बचाव करते हुए कहा कि करेक्शन की संभावनाओं को देखते हुए हमने यह कदम उठाया और हमारे पास दिसम्बर से अब तक पोर्टफोलियो के रूप में 20 प्रतिशत से ज्यादा का कैश है। उन्होंने आगे कहा कि 6,000-8,000 करोड़ रुपये का निवेश करने में समय तो लगता ही है। इसी तरह डीबीएस चोला और यूटीआई म्युचुअल फंड केपास भी उनके फंडों में 25 प्रतिशत से ज्यादा का कैश है।
यूटीआई म्युचुअल फंड के मुख्य कार्यकारी अधिकारी अनूप भास्कर का कहना है कि हमने अपने कैश के स्तर में 25 प्रतिशत (सामान्य से 7-8 प्रतिशत ज्यादा) से ज्यादा की बढ़ोतरी कर दी है और अगर निवेशक अपने कदम पीछे खींचते हैं तो उस स्थिति में यह हमारे लिए काफी मददगार होगा। एसबीआई म्युचुअल फंड के मुख्य निवेश अधिकारी संजय सिन्हा ने कहा कि नकद राशि में बढ़ोतरी शेयर बाजार में संभावनाओं की कमी को देखते हुए किया गया है और यह कैश निवेशकों की कमी की स्थिति में तरलता भी प्रदान करेगी।
म्युचुअल फंड विश्लेषकों का कहना है कि जब कभी भी शेयर बाजार में तेजी के बाद गिरावट आती है और फिर करेक्शन होता है तब ऐसी स्थिति में निवेशक अपने घाटे की पूर्ति के लिए मौजूदा फंडों से किनारा कर लेते हैं। टाटा म्युचुअल फंड के मुख्य कार्यकारी अधिकारी वेद प्रकाश चतुर्वेदी कहते हैं कि नकद राशि में बढ़ोतरी का मुख्य कारण ताजा निवेश है और हमें उस समय में भी नकद राशि की जरूरत पड़ती है जब हम वायदा और ऑप्शन बाजार में पोजीशन लेते हैं।