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संवत 2079 की समाप्ति बहुमूल्य धातुओं के निवेशकों के लिए कामयाबी के साथ हो रही है, जहां पिछले एक साल में सोने व चांदी में 20 फीसदी की उछाल दर्ज हुई। इसकी वजह भूराजनीतिक तनाव में बढ़ोतरी और अहम मुद्राओं के मुकाबले रुपये में आई कमजोरी है। हालांकि औद्योगिक जिंसों मसलन कच्चे तेल और आम धातुओं जैसे तांबा, एल्युमीनियम व जस्ते के लिए यह सुस्ती वाला साल रहा।
औद्योगिक धातुओं में जस्ते की कीमतें लगातार घटती रही। संवत 2078 में जस्ते की कीमतें लंदन मेटल एक्सचेंज में 11.3 फीसदी नीचे थी और यह रुख संवत 2079 में भी जारी रहा। पिछले 12 महीने में जस्ते की कीमतें 13.3 फीसदी घटी हैं। इसी तरह सीसे की कीमतें संवत 2079 में 13 फीसदी कम हुईं। हालांकि तांबा और एल्युमीनियम को कुछ सहारा मिला, जो इससे पिछले साल 20 फीसदी से ज्यादा टूटा था।
पिछले साल यूक्रेन-रूस का युद्ध और अब अमेरिका व अन्य विकसित व उभरती अर्थव्यवस्थाओं में बढ़ती ब्याज दरों ने मंदी का डर बढ़ाया है, जिससे औद्योगिक धातुओं की मांग घटी है, साथ ही अल्पावधि से मध्यम अवधि में मांग कमजोर रही है।
मेटल इंटेलिजेंस सेंटर के संस्थापक व सीईओ संदीप डागा ने कहा, आम धातुओं ने साल की शुरुआत चीन से मांग में मजबूत रिकवरी (खास तौर से उसके प्रॉपर्टी मार्केट से) की उम्मीद में की थी, जब देश ने दिसंबर 2022 में जीरो कोविड पॉलिसी में ढील दी थी। हालांकि प्रोत्साहन से इच्छित नतीजे नहीं मिले। इसके अतिरिक्त पश्चिम में विनिर्माण क्षेत्र कमजोर हुआ और वैश्विक पीएमआई लगातार 14वें महीने फिसला।
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उन्होंने दिलचस्प आंकड़े दिए। एलएमई इंडेक्स अपने जनवरी 2023 के सर्वोच्च स्तर से 17 फीसदी नीचे है। तेजडि़या-मंदडि़या अनुपात साल की शुरुआत के 1.64 फीसदी से घटकर अभी 1.04 फीसदी रह गया है। उनके मुताबिक, तांबे की कीमतें घटी जब चीन में तांबे का उत्पादन इस साल 17 फीसदी की उम्मीद से ज्यादा बढ़ा। यह ग्रीन एनर्जी की बढ़ती मांग को पूरा करने के लिए था,जो प्रॉपर्टी सेक्टर में नरमी की भरपाई से ज्यादा था।
ऊर्जा के मोर्चे पर संवत 2078 तेजी वाला साल था क्योंकि रूस व यूक्रेन के बीच युद्ध ने ट्रेड रूट व आपूर्ति के समीकरण में बदलाव किया, जिससे पिछले साल ब्रेंट क्रूड की कीमतें 12.5 फीसदी उछल गई। हालांकि पश्चिमी यूरोप में मंदी का डर, बढ़ती ब्याज दरें और यूरोप में औद्योगिक उत्पादन में कमजोरी ने बढ़त को समाप्त कर दिया और ब्रेंट की कीमतें संवत 2079 में उतनी ही घट गई।
एचडीएफसी सिक्योरिटीज के राष्ट्रीय प्रमुख (कमोडिटी व करेंसी) अनुज गुप्ता ने कहा, एनर्जी बास्केट में काफी मजबूत उतारचढ़ाव देखने को मिला। सऊदी अरब की स्वैच्छिक उत्पादन कटौती और अन्य ओपेक देशों की तरफ से उत्पादन घटाने की योजना को गैर-ओपेक देशों के उत्पादन ने संतुलित किया। पश्चिमी केंद्रीय बैंकों की तरफ से आक्रामक मौद्रिक नीति से मांग के परिदृश्य को झटका लगा। इसके अतिरिक्त चीन से मांग भी सुस्त बनी रही।
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अनुज ने कहा, पिछले संवत में कच्चेतेल के बाजार में अनिश्चितता के बावजूद हमारा मानना है कि आने वाले समय में आपूर्ति से ज्यादा मांग रहने का अनुमान है, जिसकी वजह ओपेक व उसके सहयोगी की तरफ से हो रही सक्रिय कोशिश है, जिसकी वजह से वैश्विक तेल आपूर्ति में फिर अवरोध पैदा होगा। गिरावट में यह खरीदारी वाला सौदा है।
उन्होंने ट्रेडरों को सलाह दी है, कच्चा तेल करीब 6,100-6,200 पर खरीदें और 7,300-8,000 तक बढ़त के मकसद के साथ इसे गिरावट में यानी 5,550-5,600 के दायरे में और जोड़ें। साथ ही 5,300 पर स्टॉप लॉस रखें।
सोने-चांदी के लिए अच्छा वर्ष
समाप्त होने जा रहा संवत सोना-चांदी के निवेशकों के लिए काफी अच्छा रहा है और सोने-चांदी की कीमतों में 20 फीसदी से ज्यादा की उछाल आई है। पिछले साल के दीवाली सीजन के दौरान सोने-चांदी में निवेश करने वालों ने अपने निवेश की वैल्यू में इस संवत में क्रमश: 21 फीसदी व 26 फीसदी की बढ़ोतरी देखी है।
हालांकि लंदन मुख्यालय वाली बहुमूल्य धातु शोध फर्म मेटल फोकस के प्रिंसिपल कंसल्टेंट चिराग सेठ ने कहा, सोने ने पिछले एक साल में विभिन्न घटनाक्रम पर उसी तरह से प्रतिक्रिया जताई है, जैसा कि सोने को करना चाहिए। हालांकि संवत 2079 में अच्छे रिटर्न के बावजूद हम यह नहीं कह सकते कि कीमती धातुएं तेजी की राह पर है।
पिछला दशक सोने व चांदी के खरीदारों के लिए मिला जुला रहा है और उनमें से ज्यादातर अक्षय तृतीया व धनतेरस के मौके पर कीमती धातुएं खरीदते हैं। पिछले 10 संवत में से छह मौकों पर सोने ने सकारात्मक रिटर्न दिया है जबकि चांदी ने पांच मौकों पर सकारात्मक रिटर्न प्रदान किया है।
पिछले 12 महीने में सोने की कीमतें अंतरराष्ट्रीय बाजार में 2050 डॉलर ट्राय औंस से लेकर 1,629 डॉलर के निचले स्तर के दायरे में रही है। पीली धातु में हालांकि अक्टूबर के बाद से तेजी रही है, जिसकी वजह इजरायल-फिलिस्तीन युद्ध है और मौजूदा समय में यह करीब 1,950 डॉलर प्रति औंस है, जो एक साल पहले 1,820 डॉलर प्रति औंस पर था।
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भारत में सोने ने इस साल मई में 61,000 रुपये प्रति 10 ग्राम के उच्चस्तर को छुआ था, वहीं चांदी जुलई में 77,280 रुपये प्रति किलोग्राम के उच्चस्तर पर पहुंची थी। कीमतों के उच्चस्तर पर पहुंचने से पहले इसमें कमजोरी देखी गई थी और सोना 49,862 रुपये प्रति 10 ग्राम के निचले स्तर पर आया था, वहीं चांदी ने 55,555 रुपये प्रति किलोग्राम के निचले स्तर को देखा था। अब सोना 60,000 रुपये प्रति 10 ग्राम से ऊपर है, वहीं चांदी 70,000 रुपये प्रति किलोग्राम से ऊपर कारोबार कर रहा है।
पिछले साल कई असामान्य घटनाक्रम देखने को मिले। रूस-यूक्रेन युद्ध के बाद अमेरिकी फेडरल रिजर्व की तरफ से ब्याज दरों में रिकॉर्ड बढ़ोतरी, उच्च महंगाई और वैश्विक केंद्रीय बैंकों के अप्रत्याशित कदम देखने को मिले और अब पश्चिम एशिया का घटनाक्रम उतारचढ़ाव के बीच सोने की कीमतें ऊंची रखे हुए है। जब भी बाजार देखता है कि भूराजनीतिक तनाव उसकी आशंका के मुताबिक नहीं बढ़ रहा है, हम सोने की कीमतें संतुलित हो जाती हैं, जैसा कि अभी हम देख रहे हैं।
अंतरराष्ट्रीय बाजार में सोना दो बार 2,000 डॉलर प्रति औंस के पार जा चुका है और वहां से 200-400 डॉलर गिरकर फिर से चढ़ा है। चिराग सेठ ने कहा, इस साल सोने-चांदी की कीमतों में उतारचढ़ाव बना रहेगा और हमें इसके साथ जीना होगा।