जिन ब्रोकरेज कंपनियों ने अपने ग्राहकों से छोटी और मझोली कंपनियों के शेयरों के एवज में मार्जिन मनी जारी किया था, उन्हें शेयर बाजार की गिरावट को देखते हुए अब डर लग रहा है।
यही वजह है कि वे इन शेयरों को बेचने में रुचि दिखा रहे हैं, वहीं अपने ग्राहकों को भी कह रहे हैं कि चालू वित्त वर्ष के अंत तक यानी 31 मार्च तक डेरिवेटिवस पोजिशन खत्म करें।
सूत्रों के मुताबिक, गैर बैंकिंग वित्तीय कंपनियां, जो ब्रोकरेज के काम से जुड़ी हैं, उन्होंने अपने ग्राहकों के लिए बैंकों से कर्ज लेकर धन मुहैया कराया है। इसके एवज में ग्राहकों ने छोटी और मझोली शेयरों को उनके पास जमा किया था। हालांकि अब इन ब्रोकरेज कंपनियों को इसका भय सता रहा है कि ऑडिट होने पर उनसे यह पूछा जा सकता है कि उन्होंने जोखिम वाले छोटी और मझोली कंपनियों के शेयरों को जमानत के तौर पर क्यों रखा।
दरअसल, चालू वित्त वर्ष के खत्म होने से पहले-पहले सभी ब्रोकरेज कंपनियां अपने खातों को दुरुस्त करने में लगी हुई हैं, ताकि ऑडिट के दौरान उन पर उंगली न उठे। यही नहीं, अब वे केवल बड़ी कंपनियों के शेयरों पर ही मार्जिन मनी उपलब्ध करा रहे हैं।
उधर, बंबई स्टॉक एक्सचेंज (बीएसई) में सूचीबद्ध छोटी और मझोली कंपनियों के शेयरों में सोमवार को जबरदस्त गिरावट देखी गई। मझोले शेयरों में 2.66 फीसदी और छोटे शेयरों में 3.77 फीसदी की गिरावट दर्ज की गई, जबकि सूचकांक में एक फीसदी की बढ़त देखी गई। गौरतलब है कि जनवरी के बाद से इसमें लगातार गिरावट देखी जा रही है।
छोटी कंपनियों के शेयरों में 52 फीसदी, जबकि मझोली शेयरों में 45 फीसदी की गिरावट देखी गई, जबकि सेंसेक्स में 26 फीसदी की गिरावट ही दर्ज की गई।गौरतलब है कि मार्जिन फंडिंग उस लोन को कहते हैं, जिस पर निवेशक को वायदा या विकल्प के बाजार में कारोबार के लिए अनुमति दी जाती है। इसमें करार के मुताबिक, 30 से 50 फीसदी राशि निवेशक को देनी होती है, जबकि शेष राशि ब्रोकरेज कंपनियां मुहैया कराती हैं।
ऐसे में गैर बैंकिंग वित्तीय ब्रोकरेज कंपनियों की ओर से 18 से 25 फीसदी की दर पर निवेशकों को लोन दिया जाता है, जबकि ब्रोकरेज कंपनियां इस रकम को बैंकों से कर्ज के रूप में कम ब्याज पर लेती हैं।ज्यादातर ब्रोकरेज कंपनियां मार्जिन फंड के रूप में शेयरों को अपने पास रखती हैं। हालांकि जनवरी के बाद बाजार में आई गिरावट के बाद से ब्रोकरेज कंपनियों को खतरा महसूस होने लगा है।
हालांकि इससे पहले निवेशकों को शेयर की वास्तविक कीमत से कहीं अधिक रकम देनी पड़ रही थी। ऐसे में निवेशक छोटी और मझोली कंपनियों के शेयरों को रेहन के रूप में रखने लगे। एक साल पहले कुछ छोटी और मझोली कंपनियों के शेयरों को मार्जिन फंड के रूप में खूब रखा जाता था। और बाजार में आई गिरावट से पहले यह रकम 10,000 करोड़ रुपये के करीब थी।
इन बड़ी कंपनियों में मोतीलाल ओसवाल सिक्योरिटीज, कोटक सिक्योरिटीज, इंडियाबुल्स, रेलिगेयर और इडलवायस सिक्योरिटीज प्रमुख हैं। हालांकि यह स्पष्ट नहीं है कि सभी कंपनियां छोटे और मझोले शेयरों के एवज में फंड मुहैया कराए हैं।