डिविडेंड यील्ड फंड में निवेशकों ने अधिक दिलचस्पी नहीं दिखाई है। यही कारण है कि जनवरी 2025 में इन फंडों में महज 214 करोड़ रुपये का निवेश हुआ जो शेयर बाजार केंद्रित फंडों में सबसे कम निवेश है। सबसे पुरानी श्रेणी होने के बावजूद डिविडेंड यील्ड फंड की कुल प्रबंधनाधीन परिसंपत्तियां (एयूएम) 31 जनवरी, 2025 तक महज 31,049 करोड़ रुपये की थीं। मगर ये फंड शेयर बाजार में उतार-चढ़ाव के मौजूदा दौर के लिहाज से बिल्कुल उपयुक्त हैं क्योंकि इन फंडों में निवेशकों के पोर्टफोलियो में स्थिरता प्रदान करने की क्षमता होती है।
बड़ौदा बीएनपी पारिबा म्युचुअल फंड के वरिष्ठ फंड मैनेजर (इक्विटी) शिव चनानी ने कहा, ‘डिविडेंड यील्ड फंड निवेशकों को दमदार ट्रैक रिकॉर्ड और पर्याप्त नकदी प्रवाह वाली कंपनियों में निवेश करने का अवसर प्रदान करता है। ये दोनों पैमाने लंबी अवधि में चक्रवृद्धि रिटर्न देने के लिहाज से कंपनियों के लिए आवश्यक गुण हैं।’
डिविडेंड यील्ड फंड मुख्य रूप से लाभांश यील्ड देने वाले शेयरों में निवेश करते हैं। प्रति शेयर लाभांश को शेयर के मूल्य से विभाजित करके लाभांश यील्ड की गणना की जाती है और वह मूल्यांकन के एक मानदंड के रूप में काम करती है। उदाहरण के लिए, अगर 100 रुपये मूल्य वाला कोई शेयर 2 रुपये प्रति शेयर का लाभांश देता है तो यील्ड 2 फीसदी होगी।
इन फंडों का अधिकतर निवेश उन क्षेत्रों के शेयरों में होता है जहां अपेक्षाकृत अधिक स्थिरता दिखती है। यूटीआई म्युचुअल फंड के फंड मैनेजर (इक्विटी) अमित प्रेमचंदानी ने कहा, ‘लगातार उच्च लाभांश का भुगतान करने वाली और स्थिर वृद्धि दर्ज करने वाली कंपनियां स्थिर क्षेत्र से संबंधित होती हैं। उदाहरण के लिए, रोजमर्रा के इस्तेमाल की वस्तुएं (एफएमसीजी) और सूचना प्रौद्योगिकी (आईटी) से संबंधित कंपनियां। इन कंपनियों को उच्च भुगतान अनुपात, पूंजी निवेश पर दमदार रिटर्न और स्थिर नकदी प्रवाह के लिए जाना जाता है।’
उच्च लाभांश यील्ड वाले शेयर आम तौर पर बाजार में उतार-चढ़ाव से निपटने के लिए बेहतर स्थिति में होते हैं।
लाभांश यील्ड एक राहत के रूप में कार्य करती है और वह शेयरों को अधिक गिरने से रोकती है। प्रेमचंदानी ने कहा, ‘वैचारिक तौर पर उच्च लाभांश यील्ड दबाव अथवा बाजार में उथल-पुथल के समय में गिरावट से सुरक्षा प्रदान करती है, क्योंकि कुल रिटर्न का कुछ हिस्सा यील्ड से प्राप्त होता है। मगर लाभांश का भुगतान न करने वाली कंपनियों में ऐसा नहीं होता है।’ शिव चनानी ने कहा, ‘ डिविडेंड यील्ड फंड उन कंपनियों में निवेश करते हैं जो दमदार मुनाफे के साथ मुक्त नकदी प्रवाह सुनिश्चित करती हैं। इसलिए इन कंपनियों में समग्र बाजार के मुकाबले कम उतार-चढ़ाव दिखता है।’ वॉलेट वेल्थ के संस्थापक और मुख्य कार्याधिकारी एस. श्रीधरन ने कहा कि इन कंपनियों में गिरावट से काफी हद तक सुरक्षा मिलती है क्योंकि इनका बहीखाता दमदार होता है।
निवेशकों को शेयरों से मिलने वाले लाभांश पर उनके स्लैब दर के अनुसार कर लगाया जाता है। अगर निवेशक डिविडेंड यील्ड फंड के जरिये से निवेश करते हैं तो केवल यूनिट की बिक्री पर ही कर लगता है। अगर फंड को एक साल से अधिक समय तक रखा जाए तो लॉन्ग टर्म कैपिटल गेन्स टैक्स लगेगा और कर की दर भी महज 12.5 फीसदी होगी।
डिविडेंड यील्ड फंड उच्च लाभांश यील्ड वाले शेयरों में निवेश करते हैं और इसलिए इन्हें शानदार वृद्धि के अवसरों को खोना पड़ सकता है। उच्च वृद्धि के दौर से गुजरने वाली कंपनियां आम तौर पर लाभांश भुगतान करने के बजाय निवेश को प्राथमिकता देती हैं। ऐसे में शेयरधारकों को शेयर की बढ़ती कीमतों का फायदा मिलता है।
चनानी ने कहा, ‘ये फंड उच्च वृद्धि वाली कंपनियों में भी निवेश करने में असमर्थ होते हैं जो शायद किसी समय भले ही घाटे में दिख रही हों लेकिन लंबी अवधि में उनमें काफी संभावनाएं हो सकती हैं।’ श्रीधरन ने आगाह किया कि ये फंड अक्सर किसी एक क्षेत्र पर ही ध्यान केंद्रित करने लगते हैं।
डिविडेंड यील्ड फंड उन निवेशकों के लिए बेहतर विकल्प हो सकता है जो मामूली उतार-चढ़ाव के साथ शेयर बाजार में निवेश करना चाहते हैं। प्रेमचंदानी ने कहा, ‘लंबी अवधि के लिहाज से पोर्टफोलियो में उतार-चढ़ाव के जोखिम को कम करते हुए शेयर बाजार में निवेश का फायदा उठाने की चाहत रखने वाले निवेशकों को इस फंड को अपने मुख्य पोर्टफोलियो का हिस्सा बनाना चाहिए।’
श्रीधरन ने सुझाव दिया कि पोर्टफोलियो का 30 फीसदी तक इन फंडों में कम से कम 5 साल के लिए निवेश करना बेहतर रहेगा।