अगस्त में यात्री वाहनों (पीवी) की थोक बिक्री में लगातार दूसरे महीने गिरावट आने से विश्लेषकों ने ऑटोमोटिव एन्सिलियरी कंपनियों के लिए अल्पावधि परिदृश्य चुनौतीपूर्ण रहने का अनुमान जताया है। जियोजित फाइनैंशियल सर्विसेज में वरिष्ठ शोध विश्लेषक साजी जॉन का मानना है कि कुछ सेगमेंट में कमजोर घरेलू मांग के साथ साथ आपूर्ति श्रृंखला से जुड़ी समस्याओं के कारण मध्यावधि में ऑटो एन्सिलियरी शेयरों की चाल सुस्त रह सकती है।
उनका कहना है, ‘इस क्षेत्र के लिए ऊंचे मूल्यांकन की वजह से अल्पावधि बाजार धारणा सतर्क है। ऊंचे पीवी और वाणिज्यिक वाहनों के मेल-जोल वाली कंपनियों के लिए अल्पावधि चुनौतियां हैं।’
दलाल पथ पर प्रमुख ऑटो सहायक कंपनियों का प्रदर्शन वित्त वर्ष 2025 में अभी तक मिला-जुला रहा है। एसीई इक्विटी के आंकड़ों से पता चलता है कि 3 सितंबर तक एएसके ऑटोमोटिव, बॉश, क्राफ्ट्समैन ऑटोमेशन, गैब्रियल इंडिया, जेबीएम ऑटो, मिंडा कॉरपोरेशन, यूनो मिंडा, सोना बीएलडब्ल्यू प्रेसीजन फोर्जिंग्स और वैरोक इंजीनियरिंग में 0.69 प्रतिशत से लेकर 71.17 प्रतिशत के बीच तेजी आई। इसके विपरीत जमना ऑटो इंडस्ट्रीज का शेयर इस दौरान 4.46 प्रतिशत गिरावट का शिकार हुआ। तुलना करें तो निफ्टी-50 और निफ्टी ऑटो सूचकांकों में 13.23 प्रतिशत और 21.55 प्रतिशत की तेजी आई।
बढ़ती लागत, सुस्त मांग
पीवी की घरेलू बिक्री अगस्त में सालाना आधार पर 2.3 प्रतिशत घटकर करीब 3,55,000 वाहन रह गई। इससे पहले जुलाई में इसमें सालाना आधार पर 2.5 प्रतिशत की कमजोरी आई थी। स्वतंत्र बाजार विश्लेषक अंबरीश बालिगा का मानना है कि अगर त्योहारी सीजन के दौरान वाहन बिक्री नहीं सुधरती है तो मूल उपकरण निर्माताओं की उत्पादन योजनाओं में भारी कटौती का एन्सिलियरी कंपनियों पर काफी असर पड़ सकता है।
हालांकि उन्हें इस क्षेत्र में मंदी के संकेत नहीं दिख रहे हैं, क्योंकि ऑटो सहायक कंपनियां आधुनिक उत्पादन शिड्यूल पर अमल कर रही हैं और सही रास्ते पर लगती हैं। लागत की बात करें तो प्राकृतिक रबर (टायरों का मुख्य घटक) की कीमत 15 साल में सबसे ऊपर है। रबर की कीमत 247 रुपये प्रति किलोग्राम के आसपास है। वित्त वर्ष 2025 के शुरू में रबर कीमतें 182 रुपये प्रति किलोग्राम पर थीं। इसी तरह एल्युमीनियम कीमतें भी चढ़कर 2,440 डॉलर प्रति टन पर पहुंच गई हैं जो अगस्त के शुरूमें 2,200 डॉलर पर थीं।
विश्लेषकों का मानना है कि ऑटो सहायक कंपनियों की इनपुट लागत में उतार-चढ़ाव पर नजर रखने की जरूरत होगी।