एआईजी को अमेरिकी सरकार से 85 अरब डॉलर का ऑक्सीजन मिलने के बावजूद एशियाई बाजारों की सांस अभी अटकी हुई है।
एशियाई बाजार किसी भी तरह से नहीं चाहते कि इस बवंडर की चपेट में वह भी आ जाएं। वॉल स्ट्रीट में मची हलचल को देखते हुए मुद्रा बाजार में नकदी की स्थिति ठीक ठाक बनाए रखने के लिए जापान, ऑस्ट्रेलिया और भारत ने मुद्रा बाजार में 33 अरब डॉलर झोंक दिए हैं ताकि इस तूफान का असर उन पर न पड़े।
हालांकि एशिया के अधिकांश बाजार लीमन के दिवालिया होने की याचिका दायर करने और एआईजी के खस्ताहाल होने से अमेरिका के वित्तीय बाजार में उत्पन्न संकट से बच गया है। लेकिन यहां की केंद्रीय बैंक बाजार में संभावित असर के मद्देनजर तरलता की तंगी से अपने बाजार को बचाने में जुटी हैं।
भारतीय रिजर्व बैंक (आरबीआई) रुपये को स्थिर बनाए रखने के लिए सक्रिय है। मंगलवार को रुपये की कीमत में डॉलर के मुकाबले पिछले एक दशक में हुई सबसे बड़ी गिरावट के बाद वह मुद्रा बाजार से लगातार खरीदकर वहां देशी मुद्रा की उपलब्धतता पर अंकुश लगाना चाहता है। केंद्रीय बैंक बैंकों के लिए नगदी जुटाने को आसान बनाना चाहताहै। बुधवार को उसने बैंकिंग सिस्टम में 1.01 अरब डॉलर झोंके हैं।
ऑस्ट्रेलिया के केंद्रीय बैंक ने लगातार तीसरे दिन बाजार में अतिरिक्त नगदी उपलब्ध कराई। उसने बुधवार को 4.285 अरब ऑस्ट्रेलियाई डॉलर बाजार में लगाए। यह बाजार के आकलन से दोगुना है। उधर, बैंक ऑफ जापान ने दो चरणों में बाजार में 3000 अरब येन बाजार में लगाए। उसने यह कदम ब्याज दरों में हुई 0.7 फीसदी की बढ़ोतरी के बाद उठाया जो केंद्रीय बैंक के लक्ष्य से 20 बेसिस प्वाइंट अधिक हो गया था।
बैंक ऑफ जापान ने फेडरल रिजर्व की ही तरह अपनी प्रमुख दरों को यथावत रखा है। ज्ञातव्य है कि फेडरल रिजर्व ने एआईजी को बचाने के लिए 85 अरब डॉलर का ब्रिज लोन स्वीकृत किया है। उसके इस कदम से निवेशक निराश हैं जो बाजार में फंड लगाने के साथ ब्याज दरों में कटौती की उम्मीद कर रहे थे।
बैंक ऑफ कोरिया के गवर्नर ली सेओंग तेई ने बताया कि क्रेडिट का संकट पिछले साल उस समय गहराया था जब अमेरिका के मॉर्गेज डिफॉल्टर बढ़ने का असर दुनिया की अर्थव्यवस्था पर पड़ा। अब उन्हें मध्यम अवधि में बांड बाजार से विदेशी फंड बाहर निकलने की आशंका है।