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सेकंडरी बाजार में अस्बा से ब्रोकरों की बढ़ सकती है चिंता

Published by
खुशबू तिवारी
Last Updated- December 15, 2022 | 11:58 PM IST

सेकंडरी बाजार के सौदें के लिए नई भुगतान व्यवस्था पर जल्द अमल होने की संभावना है जिससे ब्रोकरों की समस्या बढ़ सकती है। सेकंडरी बाजार के लिए ऐप्लीकेशन सपोर्टेड बाई ब्लॉक्ड अमाउंट (एस्बा) प्रणाली पेश करने के प्रस्ताव पर चर्चा तेज हो गई है और भारतीय रिजर्व बैंक (आरबीआई) ने यूनिफाइड पेमेंट्स इंटरफेस (यूपीआई) में जरूरी बदलाव को मंजूरी दे दी है।

7 दिसंबर को आरबीआई ने यूपीआई के लिए ‘सिंगल-ब्लॉक मल्टीपल डेबिट्स’ पेश करने की घोषणा की, जिससे कि छोटे निवेशकों के लिए सेकंडरी बाजार में अस्बा मॉडल की राह सुगम बनाई जा सके। उद्योग के जानकारों का मानना है कि यूपीआई प्रणाली में कार्यक्षमता बढ़ाने से सेकंडरी बाजार में अस्बा क्रियान्वयन की समय-सीमा आगे बढ़ाए जाने की संभावना है।

मौजूदा समय में, अस्बा का इस्तेमाल मुख्य तौर पर आरंभिक सार्वजनिक पेशकश (आईपीओ) भुगतान के लिए किया जाता है और करीब 50 प्रतिशत रिटेल आवेदनों में इस भुगतान व्यवस्था का इस्तेमाल होता है। ब्रोकर ग्राहकों के अतिरिक्त पैसे पर हासिल होने वाले ब्याज से राजस्व में 15-20 प्रतिशत गिरावट की आशंका जता रहे हैं।

समान उदाहरण तब देखा गया था, जब आईपीओ के लिए पहली बार अस्बा की पेशकश की गई थी। सेकंडरी बाजार में अस्बा से ब्रोकरों के पास फ्लोट (ग्राहकों की जमा राशि) में कमी आने और उनकी परिचालन लागत बढ़ने की आशंका है। फ्लोट वह पूंजी है जो ग्राहक अपने सौदों के लिए लेनदेन आसान बनाने के लिए ब्रोकरों के पास रखते हैं। कई पुराने ब्रोकर और डिस्काउंट ब्रोकर अपने पास जमा इस राशि ब्याज कमाते हैं।

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एक ब्रोकिंग फर्म के सदस्य ने कहा, ‘पिछली तिमाही के एकमुश्त निपटान से करीब 30,000 करोड़ रुपये की निकासी का पता चलता है। यह करीब 2.5 प्रतिशत का मार्जिन और ब्याज बरकरार रखे जाने के बाद का आंकड़ा था। नई व्यवस्था के तहत, ब्रोकर मार्जिन का भी प्रबंधन नहीं कर सकते, क्योंकि यह ग्राहकों के खातों में जमा हो सकती है या क्लियरिंग कॉरपोरेशनों को स्थानांतरित की जा सकती है। व्यवस्था से बाहर होने वाली यह पूरी फ्लोट राशि करीब 1 लाख करोड़ रुपये के आसपास हो सकती है।’

हालांकि उद्योग के कारोबारियों का मानना है कि सेकंडरी बाजार में अस्बा सिर्फ चरणबद्ध तरीके से पेश किया जा सकता है, क्योंकि यह आईपीओ के लिए लागू किए जाने की तुलना में ज्यादा जटिल होगा।

सैमको के समूह मुख्य कार्याधिकारी जिमीत मोदी का कहना है, ‘सबसे बड़ा सवाल जोखिम दूर करने से जुड़ा है। ब्रोकर दिन के कारोबार और डेरिवेटिव बाजार में अचानक आने वाले उतार-चढ़ाव में मार्जिन मुहैया कराते हैं, क्योंकि एक्सचेंज पूंजी के 90 प्रतिशत की ही अनुमति देते हैं।’ उद्योग के जानकारों का कहना है कि अस्बा की पेशकश शुरू में सिर्फ कैश सेगमेंट में की जा सकती है।

First Published : December 15, 2022 | 6:52 PM IST