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उभरते कलाकारों के हुनर का निखार

Published by
अनुष्का भारद्वाज
Last Updated- December 18, 2022 | 11:17 PM IST

जम्मू में प्रदर्शन करने वाले पॉज ट्राइब ओपन माइक की संस्थापक तन्वी महाजन इस सप्ताह के अंत तक एक और कार्यक्रम की मेजबानी करने के लिए तैयार हैं। वह पंजीकृत प्रतिभागियों की उपस्थिति सुनिश्चित करती हैं, और इसके साथ ही वह साउंड सिस्टम, लाइटिंग और स्टूडियो को सजाने का काम उतनी ही उत्सुकता से करती हैं, जैसे यह उनका पहला ओपन माइक शो हो।

संविधान का अनुच्छेद 370 रद्द होने के कारण जम्मू में इंटरनेट बंद हो गया, इसी बीच कोविड-19 महामारी की कई लहरें और कामकाजी महिलाओं के लिए नौकरी में कमी ने महाजन को भी उद्यमी बना दिया। वह खुद को ‘कहानीकार से उद्यमी’ कहती हैं।

पिछले कुछ वर्षों में ओपन माइक संस्कृति ने खुद को कलाकारों के लिए एक जाने-माने मंच के रूप में स्थापित किया है, जिसमें कॉलेज के ‘रॉकस्टार’, शायर और गृहस्थ महिलाएं शामिल हैं। ये लोग शौकिया तौर पर प्रदर्शन करते हैं। कोविड-19 के कारण ओपन माइक की लोकप्रियता में कुछ समय के लिए गिरावट आ गई थी, हालांकि अब वह भी खत्म हो गई है, और अब कलाकार और आयोजक दोनों चुनौती का सामना करने उतर आए हैं।

पे-ऐंड-परफॉर्म की अवधारणा कलाकारों को कलात्मक संतुष्टि और लोकप्रियता देती है और आयोजकों को एक ऐसी दुनिया में व्यावसायिक अवसर देती है जहां जुनून के बदले पैसा कमाया जा सकता है। पंजीकरण शुल्क आम तौर पर 250 रुपये और 500 रुपये के बीच होता है, जो वीडियो की गुणवत्ता, जगह की सुंदरता और आयोजकों द्वारा प्रदान की गई अन्य व्यवस्थाओं के आधार पर अलग-अलग हो सकता है।

पोएम ऐंड कहानियां के प्रीतम कुमार कहते हैं, ‘किसी भी अन्य व्यवसाय की तरह, हम मुनाफे का आनंद लेते हैं और घाटे को भी सहते हैं। ओपन माइक के आयोजन पर 20,000 रुपये से 25,000 रुपये तक का खर्च आता है, जिसमें संगीत उपकरण, किराया, प्रमोशन जैसी कई चीजें शामिल हैं।

कभी-कभी हमारा राजस्व 50,000 रुपये तक पहुंच जाता है और कभी कुछ समय हमें 20,000 रुपये पर भी समझौता करना पड़ता है। यह पूरी तरह से पंजीकरण की संख्या पर निर्भर करता है।’ कुमार ने 2017 में अपना ओपन माइक पोएम ऐंड कहानियां शुरू किया था और यह दिल्ली के कुछ शुरुआती सेटअप में से एक था।

पंजीकरण के अलावा, आयोजक यूट्यूब और अन्य सोशल मीडिया प्लेटफॉर्म के विज्ञापनों से कमाई करते हैं। पोएम ऐंड कहानियां दिल्ली, कानपुर, अहमदाबाद और लखनऊ सहित 22 से अधिक शहरों में ओपन माइक का आयोजन कर चुका है।

कलाकारों की रुचि के बारे में, ब्लैकवॉइस ओपन माइक के संस्थापक जतिन राजपूत कहते हैं कि उन्होंने अपने पहले ओपन माइक के लिए कलाकारों से न्यूनतम 250 रुपये का शुल्क तय किया था लेकिन, सकारात्मक प्रतिक्रिया को देखते हुए पंजीकरण राशि को बढ़ाकर 300 रुपये कर दिया। उसके बाद भी पंजीकरण में वृद्धि बनी रही।

कार्यक्रम आयोजक आमतौर पर हर ओपन माइक में 25-30 प्रतिभागियों की मेजबानी करते हैं। कार्यक्रम सामान्य तौर पर 40-50 लोगों की क्षमता वाले छोटे स्टूडियो में ही आयोजित किए जाते हैं, जिसमें कलाकार कुछ दर्शकों के सामने अपनी कला का प्रदर्शन कर पाते हैं।

आयोजकों का कहना है कि वे शुरू में दिल्ली, मुंबई, लखनऊ और कानपुर जैसे शहरों में नाम बनाने की कोशिश करते हैं, जहां लोग संस्कृति, कविता, संगीत आदि के आसपास अनौपचारिक रूप से होने वाले सामाजिक समारोहों के लिए अधिक खुले हैं। आयोजनों को बड़े पैमाने पर सोशल मीडिया के माध्यम से फैलाया जाता है। हालांकि, कविताओं वाले के लिए लाभ मार्जिन कम है।

गुरुग्राम में संचालित होने वाले ढीशुअम्म ओपन माइक के सह-संस्थापक शुभम शर्मा कहते हैं, ‘हम स्टैंड-अप कॉमेडी के लिए आसानी से टिकट वाले शो आयोजित कर सकते हैं, लेकिन कविता के लिए दर्शक अभी भी बहुत सीमित हैं।’ यही कारण है कि ओपन माइक काफी हद तक आय का एक द्वितीयक स्रोत बना हुआ है।

दिल्ली में कानून के छात्र राजपूत का कहना है कि वह ओपन माइक के माध्यम से जो पैसा कमाते हैं, उससे वह अपनी पढ़ाई पूरी करने के दौरान आने वाले खर्चों को आसानी से चुका पाते हैं। हालांकि, महाजन ओपन माइक को अपना प्राथमिक आय बनाने के लिए काम कर रही हैं।

सहयोग और प्रायोजन

लाइव शो की बढ़ती मांग के बीच, कई कैफे और सार्वजनिक स्थान जैसे मॉल और एम्फीथिएटर हर हफ्ते या महीने में एक बार ओपन माइक के सहयोग से शो का आयोजन करना शुरू कर दिए हैं। ढीशुअम्म के शर्मा ने कहा कि मॉल आदि के साथ सहयोग से उनके किराये और अन्य खर्चों के मामले में काफी बचत हो जाती है।

शर्मा कहते हैं, ‘जब प्रायोजक एक अच्छा सहयोग प्राप्त करने में सक्षम होते हैं, तो वह वास्तव में उन कलाकारों के लिए काम कर सकते हैं जिन्हें उनके प्रदर्शन के लिए भुगतान नहीं करना पड़ता है। बल्कि संभावना यह भी है कि कलाकारों को इसके बदले कुछ राशि मिल जाए।

ढीशुअम्म वीमेनोवेटर, आम आदमी पार्टी, यूवीकैन और शिखर धवन फाउंडेशन सहित कई पेशेवरों और राजनीतिक संगठनों के साथ मिलकार काम कर रहा है। इन आयोजनों की सोशल मीडिया द्वारा पहुंच सहयोग प्राप्त करने में महत्त्वपूर्ण भूमिका निभाती है।

पोएम ऐंड कहनियां के कुमार कहते हैं, ‘हमें बस अपने कार्यक्रम में और अपने सोशल मीडिया प्लेटफॉर्म पर उस ब्रांड को प्रमोट करना है जिसने शो प्रायोजित किया है।’ उनकी टीम को 53 कैफे हाउस और पटना की फ्रीडम कैफे इंडिया सहित कई कैफे से सहयोग प्राप्त है।

ऑगस्त हाउस कैफे (जयपुर), गुफ्तगू कैफे (गुरुग्राम), कैफे टेरेस (आंध्र प्रदेश), सैक्रेड अर्थ कैफे (हैदराबाद) उन कई आउटलेट में से हैं जो अक्सर ओपन माइक का आयोजन कराते हैं। अधिकांश आयोजकों के लिए स्टूडियो का किराया सबसे अधिक खर्च वाली सूची में एक है। इसके बाद उपकरण और प्रचार का नंबर आता है।

यही कारण है कि मुनाफा कमाने के लिए अधिकांश ओपन माइक उद्यमी स्थायी जगह खरीदना प्राथमिकता के तौर पर रखते हैं। प्रीतम कहते हैं, ‘हमारा मुख्यालय दिल्ली में है, लेकिन हमने कई शहरों में शो आयोजित किए हैं और कुछ और जगहों पर एक स्थायी जगह की तलाश कर रहे हैं।’

पॉज ने इस साल जुलाई में अपना स्थायी स्टूडियो स्थापित किया। भविष्य की संभावनाओं के बारे में, एक सहमति सभी आयोजकों ने तय की है और वह है कि मुनाफा कमाने के लिए तो पूरी तरह से विचार किया जाएगा लेकिन इनका उद्देश्य कला के साथ समझौता नहीं करना है। ओपन माइक वॉयस ऑफ वर्ड्स के संस्थापक हरेंद्र राठौर कहते हैं, चूंकि यह एक व्यवसाय है, इसलिए इसे चलाने के लिए मुनाफा महत्त्वपूर्ण है, लेकिन कला प्रदर्शन सिर्फ संतुष्टि की कीमत पर नहीं होगा, बल्कि यह प्राथमिकता रहेगी।

First Published : December 18, 2022 | 10:31 PM IST