विविध

Interview: मौसम की सटीक जानकारी के लिए प्रौद्योगिकी विकास पर जोर

भारतीय मौसम विभाग (IMD) अपनी 150वीं वर्षगांठ मना रहा है। IMD के DG मृत्युंजय महापात्र ने संगठन के भविष्य की रणनीतियों पर संजीव मुखर्जी से विस्तृत बातचीत की।

Published by
संजीब मुखर्जी   
Last Updated- January 12, 2025 | 11:14 PM IST

किसी भी संगठन के लिए 150 साल का सफर पूरा करना बहुत महत्त्वपूर्ण पड़ाव होता है। अगले 100 से 150 वर्षों में मौसम विभाग को आप कहां खड़ा देख रहे हैं। इसके विकास के लिए आपने क्या खाका खींचा है?

जब हम अगले 100 या 150 साल के बारे में सोचते हैं तो भविष्य की रणनीति तैयार करने के लिए भूतकाल का आकलन करना बहुत आवश्यक होता है। चक्रवाती तूफानों, बाढ़ और सूखे आदि के बारे में जानकारी देने और समय रहते उनसे निपटने के उपाय बताने के उद्देश्य से मौसम विभाग की स्थापना की गई थी। पूर्वी तट पर बड़ी तबाही बचाने वाले दो बड़े चक्रवाती तूफानों के बाद सन 1864 में यह संगठन अस्तित्व में आया था। इसने 1865 में ओडिशा, पश्चिम बंगाल, बांग्लादेश और म्यांमार समेत पांच तटों पर सामान्य निगरानी प्रणाली के आधार पर सुबह साढ़े 9 बजे पहली बंदरगाह चेतावनी जारी की थी। उस समय इन पांच निगरानी तंत्र के अलावा सैटेलाइट, मॉडल अथवा रडार जैसी कोई अन्य पूर्वानुमान प्रणाली मौजूद नहीं थी। शाम को 4 बजे एक बयान तैयार किया गया और उसे कोलकाता में बंदरगाह मास्टर, सरकार और प्रेस के साथ साझा किया गया। इस तरह भारत में यह मौसम पूर्वानुमान की एक शुरुआत थी। दस वर्ष बाद 1875 में मौसम विभाग की आधिकारिक तौर पर स्थापना की गई और 1886 में यहां से पहला मॉनसून पूर्वानुमान जारी किया गया।

यह पूर्वानुमान हिमालयी बर्फ और मॉनसून की बारिश के आपसी संबंध के आकलन पर आधारित था। उसके बाद तूफानों और मॉनसून के सभी पूर्वानुमान वैज्ञानिक सिद्धांतों एवं नवाचार के आधार पर जारी किए जाने लगे। इस यात्रा में हमने आज बहुत अधिक प्रगति कर ली है। चक्रवाती तूफानों के मामले में हम 23 किलोमीटर के दायरे में तट से टकराने का ही नहीं, पांच दिन तक का सटीक पूर्वानुमान बता सकते हैं। इसमें संभावित तूफान की दिशा, हवा की तीव्रता, तूफानी लहरों की ऊंचाई और बारिश की मात्रा सब कुछ विस्तार से होता है। आज इन पूर्वानुमानों को कृषि, बुनियादी ढांचा तंत्र, रियल एस्टेट, आपदा प्रबंधन विभागों के साथ साझा किया जाता है। पिछले 150 के सफर को देखते हुए हम आगे मौसम विभाग के विकास की कल्पना कर सकते हैं। यदि विज्ञान और प्रौद्योगिकी में मौजूदा गति से निवेश के साथ आगे बढ़ते रहे तो वह दिन दूर नहीं जब हम 5 के बजाय 10 या 15 दिन का लगभग शून्य गलती के साथ यानी पूरी तरह सटीक पूर्वानुमान उपलब्ध करा सकते हैं। हम हर घर में, हर सदस्य को मौसम की सही जानकारी देने की क्षमता हासिल कर सकते हैं। अगले 50 वर्षों में मौसम प्रबंधन प्रौद्योगिकी में काफी विकास होगा, जिससे वर्षा, कोहरा और अन्य मौसमी गतिविधियों का प्रबंधन आसानी से किया जा सकेगा। वर्ष 2047 में जब हम आजादी की 100वीं वर्षगांठ मना रहे होंगे तो तब तक मौसम प्रबंधन रणनीतियों पर काफी जोर दिया जाने लगेगा। आगामी दशकों में जलवायु लक्ष्यों को देखते हुए मौसम पूर्वानुमान और मॉडल प्रणाली का आधुनिकीकरण बहुत ही आवश्यक है। इसमें एआई भी महत्त्वपूर्ण भूमिका निभाएगा।

जलवायु परिवर्तन के प्रभावों के मद्दनेजर विपरीत मौसमी घटनाओं के पूर्वानुमान की चुनौती कितनी बड़ी है?

जलवायु परिवर्तन से विपरीत मौसमी स्थितियों के पूर्वानुमान में काफी कठिनाई होती है। उदाहरण के लिए शहर या एक क्षेत्र के एक हिस्से में तो भारी वर्षा हो सकती है और दूसरे हिस्से हिस्से में एक बूंद भी न पड़े। जलवायु परिवर्तन के कारण उभरने वाली इस तरह की स्थानीय मौसमी गतिविधियों के बारे में सटीक पूर्वानुमान देने के लिए हमें अपने निगरानी केंद्रों, मॉडल और संचार प्रणाली में बहुत अधिक सुधार की जरूरत है। यद्यपि हम दीर्घावधि योजना पर चर्चा करते हैं, लेकिन अगले 10 से 25 वर्षों के लिए तयशुदा वास्तविक कार्ययोजना पर अधिक जोर है। पृथ्वी विज्ञान मंत्रालय विजन 2047 पर काम कर रहा है, जिसका उद्देश्य पूर्वानुमान को सटीक बनाना है। लेकिन, तब तक हम पूर्वानुमान क्षमता के प्रत्येक स्तर पर सुधार की उम्मीद कर रहे हैं। लेकिन, जलवायु परिवर्तन की चुनौतियों से निपटना मौसम विभाग के लिए प्रमुख चिंता का विषय है।

आने वाले वर्षों में मौसम विभाग की राह में और क्या-क्या चुनौतियां खड़ी हैं?

सबसे बड़ी चुनौती तो जलवायु परिवर्तन ही है। लेकिन, विपरीत मौसमी गतिविधियां भी काफी अनिश्चितता का माहौल बना देती हैं। उदाहरण के लिए, बढ़ता तापमान ग्लेशियरों के पिघलने का कारण बन रहा है और इसके अभी जारी रहने की संभावना है। जैसे-जैसे जलवायु परिवर्तन का खतरा गहराएगा, समुद्री तल का तापमान बढ़ने और इससे समुद्र में जलस्तर वृद्धि के अलावा वर्षा के पैटर्न में परिवर्तन जैसी तमाम खराब मौसमी गतिविधियां उतनी ही अधिक देखने को मिलेंगीं। संक्षेप में यह कि हमें इन सभी चीजों को ध्यान में रखकर आगे बढ़ना होगा।

सूखे से संबंधित मौसम विभाग के पूर्वानुमान पर कुछ उलझन की स्थिति दिखती है। कई लोगों का कहना है कि विभाग सूखा शब्द का इस्तेमाल करने के बजाय ‘बहुत कम बारिश’ कहकर अपना पूर्वानुमान देता है। क्या सूखे की स्थिति बताने के लिए यह सतर्कतापूर्ण फैसला है? इस बदलाव के पीछे क्या तर्क है?

सूखे का आकलन करते समय कई बातों का ध्यान रखना पड़ता है। उदाहरण के लिए ऐसे क्षेत्र में जहां पहले से ही पानी का संकट है और जलाशय भी भरे नहीं हैं, वहां सिंचाई व्यवस्था बुरी तरह प्रभावित हो सकती है और इससे कृषि संबंधी सूखा पड़ सकता है। इसके अलावा सामाजिक-आर्थिक सूखे की भी अवधारणा है। ऐसे में
व्यक्तिगत स्तर पर सूखे से निपटने की क्षमता अलग-अलग होती है। कुछ लोगों की वित्तीय स्थिति मजबूत होती है, लेकिन कुछ आर्थिक रूप से इतने कमजोर होते हैं कि वे सूखे के हालात को झेल नहीं पाते। लेकिन मौसम विभाग का प्राथमिक जोर वर्षा और पूर्वानुमान संबंधी आंकड़े देना है। यह विभाग इन सामाजिक-आर्थिक स्थितियों और कृषि प्रभावों को अपने पूर्वानुमान में शामिल नहीं कर सकता है। इसके लिए दूसरे विभाग और मंत्रालय हैं।

मौसम विभाग की 150वीं वर्ष के मनाने के लिए क्या योजना है?

मौसम विभाग की 150वीं वर्षगांठ 15 जनवरी, 2024 को शुरू हुई थी और यह 15 जनवरी, 2025 तक चलेगी। इस महत्त्वपूर्ण अवसर को मनाने के लिए हमने ‘हर घर मौसम’ जैसे कई कार्यक्रम शुरू किए हैं। इसका उद्देश्य हर व्यक्ति तक मौसम की सटीक और समय पर जानकारी उपलब्ध कराना है।

First Published : January 12, 2025 | 11:14 PM IST