भारत और कनाडा के बीच ताजा राजनयिक विवाद का असर उत्तरी अमेरिकी देश में उच्च शिक्षा हासिल करने का ख्वाब देखने वाले छात्रों पर पड़ सकता है। करियर सलाहकार कहते हैं कि पढ़ाई के लिए कनाडा जाने वालों की संख्या हाल के दिनों में बहुत तेजी से घटी है।
कॉलेज में दाखिले से संबंधित सेवाएं देने वाली कंपनी कॉलेजीफाई के संस्थापक और सीईओ आदर्श खंडेलवाल कहते हैं, ‘कनाडा जाने के लिए पिछले साल तक हमें वार्षिक स्तर पर 400 से 500 आवेदन मिलते थे, लेकिन इस वर्ष यह संख्या 70 पर सिमट गई है। ये भी कुछ बड़े विश्वविद्यालयों के लिए ही हैं। मध्यम स्तर के कॉलेजों में पढ़ने जाने की तैयारी कर रहे छात्रों ने अपनी योजना बदल दी है।’
खंडेलवाल कहते हैं कि स्नातक स्तर की शिक्षा के मामले में अभिभावकों का फैसला काफी महत्त्वपूर्ण होता है। इसलिए ताजा विवाद ने उन्हें सोचने के लिए मजबूर कर दिया है।
उन्होंने यह भी कहा कि रहने-खाने का खर्च बढ़ने और वहां बेहतर अवसरों की कमी हो जाने के कारण भी लोग अपने फैसले बदल रहे हैं। दिल्ली स्थित सेंटर फॉर करियर डेवलपमेंट में करियर काउंसलर जतिन चावला भी इससे सहमत दिखाई दिए।
उन्होंने कहा, ‘कनाडा में पिछले कुछ सालों में हालात तेजी से बदलें हैं और छात्र अब फिनलैंड, नीदरलैंड और जापान जैसे विकल्पों पर विचार करने लगे हैं, क्योंकि इन देशों में करियर को लेकर फायदे और स्थिरता जैसे मुद्दे भरोसा जगाते हैं।’
ऑनलाइन यात्रा कंपनी पिकयोरट्रेल के सह संस्थापक हरि गणपति कहते हैं, ‘भारत और कनाडा के बीच हालिया घटनाओं के बाद निश्चित रूप से लोग दूसरे विकल्पों के बारे में विचार करने लगे हैं। वे अपनी छुट्टियां तनाव मुक्त माहौल में गुजारना चाहते हैं। इस समय लोग ऑस्ट्रेलिया और दूसरे उत्तरी देशों में जाना पसंद कर रहे हैं।’
इसी साल सितंबर में कनाडा की सरकार ने 2025 के लिए अंतरराष्ट्रीय स्टडी परमिट की संख्या में कमी करने का ऐलान किया था। इसमें अंतरराष्ट्रीय स्टडी परमिट में 2024 के लक्ष्य 4,85,000 से घटाकर 2025 के लिए 4,37,000 करने की बात कही गई थी।
भारत से बड़ी संख्या में छात्र कनाडा पढ़ने जाते हैं। विदेश मंत्रालय के आंकड़ों से पता चलता है कि 2021 में 2,16,360 छात्र कनाडा गए थे, जबकि 2022 में यह संख्या बढ़कर 3,18,380 और 2023 में 4,27,085 हो गई।