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26 साल पुराने मामले को छह महीने में निपटाने का आदेश

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बीएस संवाददाता
Last Updated- December 07, 2022 | 11:46 PM IST

सर्वोच्च न्यायालय ने दिल्ली उच्च न्यायालय से कहा है कि वह बैंक ऑफ इंडिया, डायचे बैंक एशिया और मेहता ब्रदर्स से जुड़े 26 वर्ष पुराने मामले को जल्द से जल्द और हो सके तो 6 महीने के अंदर निपटाए।


बैंक ऑफ इंडिया ने 91,58,480 रुपये की वसूली के लिए फर्म और जर्मन बैंक के खिलाफ मुकद्दमा दायर किया था। इसका आरोप है कि फर्म के अनुरोध पर उसने सिंगापुर की मैसर्स बेनट्रेक्स ऐंड कंपनी के पक्ष में एक अचल ऋण पत्र यानी लेटर ऑफ क्रेडिट जारी किया था।

लाभार्थी कंपनी ने इसे जर्मन बैंक को दे दिया। बातचीत के बाद भारतीय बैंक की न्यू यार्क शाखा ने इसका भुगतान कर दिया। बाद में भारतीय बैंक ने जर्मन बैंक से दस्तावेज प्राप्त कर लिए जिनमें कथित तौर पर कई विसंगतियां थीं और यूनिफॉर्म कस्टम्स ऐंड प्रैक्टिस ऑफ डॉक्यूमेंटरी क्रेडिट्स 1974 का उल्लंघन किया गया था। इसके बाद लंबे समय तक चलने वाले मुकद्दमे की शुरुआत हुई।

दिल्ली उच्च न्यायालय की एकल खंडपीठ ने जर्मन बैंक के उसका पक्ष सुनने के अनुरोध को स्वीकार कर लिया लेकिन एक खंडपीठ ने इसे निरस्त कर दिया। सर्वोच्च न्यायालय ने एकल न्यायाधीश के आदेश को बहाल कर दिया है और उच्च न्यायालय से 26साल से चल रहे इस मामले को जल्द से जल्द निपटाने का फैसला दिया है।

मध्यस्थता

सर्वोच्च न्यायालय ने शक्ति भोग फूड लिमिटेड की एक अपील को खारिज कर दिया है। इस अपील में शक्ति भोग और कोला शिपिंग लिमिटेड के बीच विवाद में लंदन में इंगलिश आर्बिट्रेशन ऐक्ट 1996 के तहत मध्यस्थता कार्यवाही को चुनौती दी गई थी।

भारतीय फर्म खाद्य पदार्थों के निर्यात से जुड़ी हुई है। इस मामले में उसे काकीनाडा बंदरगाह से नाइजर के लिए सोरघम का निर्यात किया जाना था। समझौते के मुताबिक माल को 9 दिन के अंदर लाद दिया जाना था। अलबत्ता नाइजर से मिला निर्यात ऑर्डर विवाद में फंस गया और इसलिए सामान की लदाई पूरी नहीं हो सकी। यह विवाद लंबा खिंच गया।

शिपर यानी जहाजी माल भेजने वाले ने मध्यस्थता से विवाद का निपटान चाहा लेकिन इसे निर्यातक ने ठुकरा दिया। काकीनाडा के जिला न्यायाधीश ने मध्यस्थता आवेदन को मंजूर कर लिया और आंध्र प्रदेश उच्च न्यायालय ने भी इसका अनुमोदन किया। सर्वोच्च न्यायालय ने भी मध्यस्थता कार्यवाही को हरी झंडी दे दी है।

भविष्य निधि कोष

सर्वोच्च न्यायालय ने यह दोहराया है कि किसी भी होल्डिंग कंपनी को उसकी सहयोगी कंपनी पर भविष्य निधि कोष की देय राशि की वसूली के लिए जिम्मेदार नहीं ठहराया जा सकता। उड़ीसा उच्च न्यायालय ने एबीएस स्पाइनिंग उड़ीसा लिमिटेड की उस याचिका को स्वीकार कर लिया था जिसमें भविष्य निधि कोष की देय राशि के भुगतान की भविष्य निधि कोष आयुक्त की मांग को चुनौती दी गई थी।

आयुक्त ने सर्वोच्च न्यायालय में अपील की जिसे यह कहते हुए खारिज कर दिया गया, ‘होल्डिंग कंपनी के सापेक्ष सहयोगी कंपनी का स्वतंत्र अस्तित्व है और इसलिए होल्डिंग कंपनी अपनी सहयोगी कंपनी की बकाया भविष्य निधि की देय राशि चुकाने के लिए जिम्मेदार नहीं है।’

बीमा

राष्ट्रीय उपभोक्ता आयोग के फैसलों के खिलाफ दायर नेशनल इंश्योरेंस कंपनी की अपीलों के संदर्भ में सर्वोच्च न्यायालय ने यह स्पष्ट कर दिया है कि यदि बीमाकर्ता कंपनी यह साबित करने में सफल रहती है कि ड्राइविंग लाइसेंस फर्जी है तो वह भुक्तभोगी या उसके आश्रितों को मुआवजा देने की जिम्मेदारी से मुक्ति पा सकती है। इस कानून में यह छूट सिर्फ तीसरे पक्ष के मामलों में ही लागू होगी।

First Published : October 13, 2008 | 2:40 AM IST