केंद्रीय उत्पाद शुल्क बोर्ड (सीबीईसी) ने एक सर्कुलर संख्या 62008 जारी किया जिसमें उस प्रक्रिया का जिक्र है जिसके तहत किसी सामान के आयात के समय लगने वाले 4 प्रतिशत अतिरिक्त आयात शुल्क (जो सैड के नाम से जाना जाता है) के रिफंड का दावा कैसे किया जाए।
सीमा शुल्क कटौती नोटिफिकेशन संख्या 1022007 दिनांक अक्टूबर 2007 इस बात की अनुमति देता है कि अगर एक इनवॉयस पर किसी सामान को फिर से बेचने पर बिक्री कर या वैट का भुगतान कर दिया गया हो तो उस पर किसी प्रकार का सेनवैट नहीं लगेगा।
सर्कुलर में यह बात कही गई है कि अगर अतिरिक्त शुल्क के रुप में देय 4 प्रतिशत को कोई वापस लेना चाहता हो तो इसके लिए संबध्द रिफंड आयुक्तालय के केंद्रीकृत रिफंड सेक्शन के समक्ष दावे के लिए आवेदन किया जाना चाहिए। जो सामान बेचे नहीं गए हैं, उस पर इस तरह के रिफंड का कोई प्रावधान नहीं है।
किसी खास बिल की इन्क्वायरी के लिए अगर जरूरी हो तो साल के अंत तक एक दावा किया जा सकता है। अगर बिक्री कर या वैट को मासिक स्तर पर किसी खास सामान को खरीदने के लिए चुकाया गया है तो संबद्ध आयुक्त से मिलकर इसे मासिक आधार पर रिफंड करने के लिए दावा किया जा सकता है। इससे सबसे ज्यादा सुविधा यह होगी कि दावा करने वाले किसी आयातक को मासिक स्तर पर अपने पूरे वार्षिक रिफंड की रकम मिल जाएगी।
सीबीईसी ने स्पष्ट किया है कि अगर केंद्रीय बिक्री कर चुकाकर किसी सामान को बेचा गया है तो वह रिफंड के दायरे में आता है। इसके लिए अधिकृत ऑडिटर या चार्टर्ड एकाउंटेंट के उस सर्टिफिकेट की जरूरत होगी जो कंपनी कानून के तहत बिक्री कर या वैट , सामान के आयात करते समय, का ब्यौरा देता हो। इस प्रति को कर या शुल्क की मूल प्रति के साथ आयुक्त कार्यालय में जमा करना होता है।
सर्कुलर कहता है कि अनजस्ट इनरिचमेंट ही रिफंड का दावा करने का मूल सिद्धांत है। इसके तहत आयातक को अपनी वार्षिक वित्तीय रिपोर्ट की प्रति सौंपनी होगी जो अधिकृत ऑडिटर या चार्टर्ड एकाउंटेंट द्वारा हस्ताक्षरित हो।
इस सर्कुलर में इस बात का स्पष्ट विवरण मिल जाता है कि कैसे इस 4 प्रतिशत के अतिरिक्त शुल्क के बोझ से बचा जा सके। इसमें यह भी कहा गया है कि केवल उसी आयातक को रिफंड का लाभ मिल सकता है जिसने सीवीडी का भुगतान किया हो और इस रिफंड की सारी शर्तों को पूरा करता हो। वैसे इस अतिरिक्त शुल्क का भुगतान डीईपीबी स्क्रिप के द्वारा किया जाता है।
यह सर्कुलर महत्वपूर्ण है लेकिन यह नहीं कहा जा सकता कि यह पूर्ण रुप से उपयुक्त है या नहीं । मिसाल के तौर पर क्या होगा जब डीईबीपी रिक्रेडिट से पहले ही खत्म हो जाए? ऐसी स्थिति में क्या किया जाए यह महत्वपूर्ण है। अगर इसके तहत सीए सर्टिफिकेट या शर्तों को भी पूरा कर लिया जाए तो भी इस रिफंड का भुगतान संभव नहीं है। इसलिए इसमें और सुधार प्रक्रिया की जरूरत है।