सर्वोच्च न्यायालय ने हाल ही में ‘दंत मंजन लाल’ को लेकर उसकी निर्माता मैसर्स बैद्यनाथ आयुर्वेदिक भवन लिमिटेड द्वारा दायर की गई अपील को ठुकरा दिया।
न्यायालय ने कंपनी के इस तर्क को खारिज कर दिया कि यह उत्पाद सेंट्रल एक्साइज टैरिफ ऐक्ट के मुताबिक एक औषधि है, कॉस्मेटिकटॉयलेट्री प्रीपरेशन टूथ पाउडर नहीं। इस उत्पाद के वर्गीकरण को लेकर उत्पाद शुल्क न्यायाधिकरणों में मतांतर पैदा हो गया था।
बैद्यनाथ ने विभिन्न आधारों पर कई कारण बताओ नोटिस का भी प्रतिकार किया था। इन आधारों में उसने कहा था कि यह उत्पाद एक आयुर्वेदिक दवा है, इसका निर्माण ड्रग लाइसेंस के तहत किया गया है, इसमें शामिल सभी तत्त्वों का आयुर्वेद सिस्टम ऑफ मेडिसिन की आधिकारिक पुस्तक में जिक्र किया गया है, और यह उत्पाद व्यापार एवं बोलचाल की आम भाषा में एक आयुर्वेदिक दवा है। इस आधार पर बैद्यनाथ ने दावा किया था कि वह उत्पाद शुल्क में लाभ की हकदार है।
अधिक मुआवजे का मामला
सर्वोच्च न्यायालय ने ‘रानी गुप्ता बनाम यूनाइटेड इंडिया इंश्योरेंस कंपनी लिमिटेड’ मामले में फैसला दिया था कि मोटर एक्सीडेंट क्लेम्स ट्रिब्यूनल वाहन दुर्घटना में मारे गए व्यक्ति के परिजनों के लिए ‘मोटर व्हीकल्स ऐक्ट’ की दूसरी अनुसूची में निर्धारित रकम से अधिक मुआवजा दिए जाने का निर्णय ले सकते हैं।
इस शेडयूल यानी अनुसूची में 3000 से 40,000 रुपये सालाना की आमदनी वाले व्यक्तियों (मृतक की उम्र के आधार पर) के लिए मुआवजा राशि के भुगतान का प्रावधान है। संसद का विचार था कि उन लोगों के कानूनी प्रतिनिधियों, जिनकी सालाना आय 3000 रुपये प्रति महीने है, के लिए दिए जाने वाले मुआवजे की रकम कम से कम 50,000 रुपये होनी चाहिए।
मौजूदा मामले में, कारोबारी की सालाना आमदनी 2 लाख रुपये है। उसे न्यायाधिकरण द्वारा 17.4 लाख रुपये के मुआवजा का निर्णय लिया गया था, जिसे दिल्ली उच्च न्यायालय ने घटा कर 12.5 लाख रुपये कर दिया था। सर्वोच्च न्यायालय ने कारोबारी (46 वर्ष) की उम्र को ध्यान में रखते हुए कहा कि वह 10 वर्ष और कमा सकता था और इसलिए यह मुआवजा उचित था।
अस्वीकृत चेक के लिए सजा
सर्वोच्च न्यायालय ने फैसला दिया कि किसी व्यक्ति को एक ही लेन-देन में अस्वीकृत किए गए कई चेक के लिए अलग-अलग सजा नहीं सुनाई जा सकती। ‘स्टेट ऑफ पंजाब बनाम मदन लाल’ मामले में आरोपी व्यक्ति द्वारा तीन चेक जारी किए गए थे जिन्हें अस्वीकृत कर दिया गया था।
सत्र न्यायालय ने नेगोशिएबल इंस्ट्रूमेंट्स ऐक्ट की धारा 138 के तहत मदन लाल को दोषी ठहरा दिया और उसे जेल की सजा सुना दी। सभी चेक के लिए सजा साथ-साथ यानी समानांतर सजा सुनाई गई थी अलग-अलग नहीं। उधर पंजाब ऐंड हरियाणा हाई कोर्ट ने भी इस सजा को बरकरार रखा।
लेकिन राज्य सरकार ने सर्वोच्च न्यायालय में एक अपील दायर कर यह तर्क पेश किया कि आरोपी को प्रत्येक चेक के लिए सजा भी अलग-अलग सुनाई जानी चाहिए न कि साथ-साथ। सर्वोच्च न्यायालय ने राज्य सरकार की इस अपील को खारिज कर दिया।
बोर्ड के सर्कुलर
सर्वोच्च न्यायालय ने जोर देकर कहा है कि सीमा शुल्क और उत्पाद शुल्क बोर्डों द्वारा जारी सर्कुलर और निर्देश अधिकारियों पर निस्संदेह ही बाध्यकारी हैं, लेकिन जब सर्वोच्च न्यायालय या उच्च न्यायालय किसी विवादित मुद्दे पर राय देते हैं तो न्यायालयों का दृष्टिकोण सर्कुलरों से ऊपर होगा।
न्यायालय ने यह दृष्टिकोण नए मामले ‘कमिश्नर ऑफ सेंट्रल एक्साइज बनाम हिंदुस्तान स्पाइनिंग ऐंड वीविंग मिल्स लिमिटेड’ में दोहराया है। अधिकारियों ने पूर्व के फैसलों में स्पष्टीकरण मांगा था। इसलिए सर्वोच्च न्यायालय ने दोबारा इस पर जोर दिया है कि सर्कुलर सिर्फ अधिकारियों द्वारा कानून की समझ का प्रतिनिधित्व करते हैं।
यह बताना न्यायालय का काम है कि अधिकारियों के लिए कानून क्या कहता है और क्या नहीं। बोर्ड के सर्कुलर इस अदालत द्वारा निर्धारित किए गए कानून पर प्रभावी नहीं हो सकते।
