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विदेशी कंपनियों पर भी लग सकता है कर

Last Updated- December 07, 2022 | 11:00 AM IST

आयकर कानून 1961 में पर्मानेंट इस्टाब्लिशमेंट (पीई) यानी स्थायी प्रतिष्ठान की परिभाषा नहीं दी गई है।


लेकिन दोहरे कराधान मुक्त समझौते (डीटीएए) में पीई की परिभाषा कुछ इस तरह दी गई है- कारोबार का एक नियत स्थान, जहां किसी उपक्रम का व्यापार अंशत: या पूर्णत: निष्पादित किया जाता हो। इसमें मुख्यत: प्रबंधन का स्थान, शाखा, फैक्टरी, वर्कशॉप आदि को शामिल किया जाता है।

वैसे डीटीएए के तहत पीई की जो भी परिभाषा दी गई हो, लेकिन इसमें कौन-कौन चीजें शामिल होती है, यह एक वास्तविकता का मामला है। वैसे यह मसला समावेशिक भी है। इस प्रकार, किसी विशेष मामले में, उस मामले का तथ्य इस बात को निर्धारित करता है कि एसेसी (करदाता) द्वारा जो तय किया जा रहा है, वह पीई के अंतर्गत आता है या नहीं।

इस संबंध में महत्त्वपूर्ण बात है कि विदेशी उपक्रमों के व्यापारिक लाभ पर भारत में कर लगाया जाए, यह इस बात पर निर्भर करता है कि यहां पीई है या नहीं। अगर भारत में पीई के होने पर ही विदेशी कंपनियों पर कर लगाया जा सकता है और लाभ पीई से हुआ हो। यहां तक कि रॉयल्टी और तकनीकी सेवाओं के लिए विदेशी उपक्रमों द्वारा ली जाने वाली फीस पर भी कारोबारी मुनाफे के रूप में कर लगाया जा सकता है, अगर भारत में यह पीई से संबध्द हो।

कोई भी परियोजना कार्यालय, जिसमें निर्माण, इंस्टॉलेशन और असेम्बली का काम होता है, उसे पीई माना जाए या नहीं, इससे जुड़े कई निर्णय पहले भी सुनाए जा चुके हैं। क्या निरीक्षण गतिविधियां पीई के तहत आती हैं या नहीं , यह भी बहस का विषय है। इस संदर्भ में दो मुद्दों पर ज्यादा ध्यान देने की जरूरत है कि क्या निरीक्षण गतिविधियां अपने आप में पीई है। और दूसरा सवाल यह है कि  क्या किसी पीई के लिए यह जरूरी है कि व्यापार करने वाला स्थान खुद एसेसी का है।

इस संबंध में स्टील अथॉरिटी ऑफ इंडिया लिमिटेड (सेल)  बनाम एसीआईटी (301 आईटीआर 235) का मामला काफी प्रासंगिक है। इसमें कहा गया कि अगर कोई निर्धारक किसी प्रकार की निरीक्षण गतिविधियों के लिए इंस्टॉलेशन में छह महीने से ज्यादा का वक्त लेता है, तो इस तरह की निरीक्षण गतिविधियां को पीई माना जाएगा। यह उस मामले में भी लागू होगा जब इंस्टॉलेशन या असेम्बली प्रोजेक्ट का एसेसी से वास्ता न हो। इस मामले में बात यह थी कि सेल ने जर्मनी की कंपनी एक कंपनी से समझौता किया।

इसके बाद जर्मन कंपनी ने सेल की फैक्टरी साइट पर भारतीय ठेकेदारों द्वारा मशीनरी स्थापित करने के लिए तकनीकी निरीक्षण सेवाएं प्रदान कीं। कंपनी ने भारत में सेल की उस साइट पर छह महीने से ज्यादा अवधि तक इस तरह की सेवाएं प्रदान कीं। कंपनी ने इस बात का जिक्र किया कि भुगतान तकनीकी सेवा प्रदान करने की फीस के तौर पर किया गया इसलिए उसे कर में 10 प्रतिशत की दर से रियायत मिलनी चाहिए। हालांकि कर निर्धारक अधिकारी ने इस बात को महसूस किया कि ये सेवाएं छह महीने से ज्यादा के लिए उपलब्ध कराई गई हैं इसलिए यह पीई के दायरे में आता है।

इसके साथ निर्धारक ने इस बात को भी देखा कि भुगतान तकनीकी सेवाएं उपलब्ध कराने के लिए किया गया, जो एक प्रकार का व्यापारिक लाभ है। चूंकि कंपनी का भारत में पीई है, इसलिए जो भी लाभ होगा, वह पीई के अंतर्गत आएगा। माननीय आईटीएटी ने अपना निर्णय सुनाते हुए कहा कि हालांकि प्रोजेक्ट के इंस्टॉलेशन का एसेसी से कोई संबंध नहीं है, लेकिन यह वास्तविकता है कि उसने इंस्टॉलेशन के उद्देश्य से निरीक्षण सेवाएं छह महीने से ज्यादा अवधि के लिए उपलब्ध कराई है और इस तरह निरीक्षण का काम पीई के दायरे में आता है। इस प्रकार, इस मामले में डीटीएए  का अनुच्छेद 12 (5) लागू होता है और लाभ की गणना डीटीएए की धारा 7 के अंतर्गत की जाएगी।

First Published - July 13, 2008 | 11:51 PM IST

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