facebookmetapixel
Market Outlook: महंगाई डेटा और ग्लोबल ट्रेंड्स तय करेंगे इस हफ्ते शेयर बाजार की चालFPI ने सितंबर के पहले हफ्ते में निकाले ₹12,257 करोड़, डॉलर और टैरिफ का असरMCap: रिलायंस और बाजाज फाइनेंस के शेयर चमके, 7 बड़ी कंपनियों की मार्केट वैल्यू में ₹1 लाख करोड़ का इजाफालाल सागर केबल कटने से दुनिया भर में इंटरनेट स्पीड हुई स्लो, माइक्रोसॉफ्ट समेत कई कंपनियों पर असरIPO Alert: PhysicsWallah जल्द लाएगा ₹3,820 करोड़ का आईपीओ, SEBI के पास दाखिल हुआ DRHPShare Market: जीएसटी राहत और चीन से गर्मजोशी ने बढ़ाई निवेशकों की उम्मीदेंWeather Update: बिहार-यूपी में बाढ़ का कहर जारी, दिल्ली को मिली थोड़ी राहत; जानें कैसा रहेगा आज मौसमपांच साल में 479% का रिटर्न देने वाली नवरत्न कंपनी ने 10.50% डिविडेंड देने का किया ऐलान, रिकॉर्ड डेट फिक्सStock Split: 1 शेयर बंट जाएगा 10 टुकड़ों में! इस स्मॉलकैप कंपनी ने किया स्टॉक स्प्लिट का ऐलान, रिकॉर्ड डेट जल्दसीतारमण ने सभी राज्यों के वित्त मंत्रियों को लिखा पत्र, कहा: GST 2.0 से ग्राहकों और व्यापारियों को मिलेगा बड़ा फायदा

पूंजीगत लाभ पर कर से छिड़ा विवाद

Last Updated- December 07, 2022 | 12:04 AM IST

एटी ऐंड टी की एक अमेरिकी शाखा की ओर से कमाए गए कैपिटल गेन्स यानी पूंजीगत लाभ पर कर लगाने के भारतीय राजस्व के हाल के फैसले ने नए विवाद खड़े कर दिए हैं।


विदेशी होल्डिंग कंपनी के शेयरों की बिक्री से मिलने वाले कैपिटल गेन्स पर टैक्स लगाए जाने से नयी बहस छिड़ गई है। इस कंपनी की मूल संपत्ति में किसी भारतीय कंपनी के अंडरलाइंग शेयर भी शामिल होते हैं। हांलाकि, इसी तरह के मामलों में वोडाफोन और जीई को राहत मिली हुई है।

इनसे जुड़े मामलों की सुनवाई बंबई और दिल्ली उच्च न्यायालय में चल रही थी जिस पर फिलहाल रोक लगी हुई है। इन दोनों ही मामलों में अब तक कर चुकाने का कोई आदेश जारी नहीं किया गया है। ऐसे में एटी ऐंड टी के मामले में एक कदम आगे बढ़कर आदेश निर्णय लिया गया है।

क्या है मामला

आइडिया सेल्युलर (एक भारतीय कंपनी) में भारतीय समूह कंपनियां टाटा और बिड़ला और मॉरिशस की सहयोगी कंपनी एटी ऐंड टी यू एस की हिस्सेदारी थी। बाद में एटी ऐंड टी ने आइडिया सेल्युलर से अपने कदम वापस ले लिये। उसने आइडिया में अपने शेयर को टाटा को बेच दिया।

कर अधिकारियों का मानना था कि एटी ऐंड टी यूएस को इस लेन देन के एवज में शेयरों का भुगतान करना होगा। चूंकि इस मॉरिशस की इकाई की कुल संपत्ति एक भारतीय कंपनी आइडिया सेल्युलर में हिस्सेदारी से जुड़ी हुई है। ऐसे में जो कमाई हुई है वह भारत में आर्थिक एवं प्रांतीय बंधनों से युक्त है और इस वजह से कैपिटल संपत्ति के आधार पर कर चुकाना होगा।

भारत और अमेरिका के बीच हुई कर संधि के अनुसार कैपिटल गेन्स पर लगने वाला कर उसी देश के कर कानूनों के हिसाब से लगता है जहां यह कमाई की गई है। सब्सटेंस और फॉर्म पर आधारित कर संरचना पर कई सारे अदालती आदेश आ चुके हैं जिनमें आपस में मतभेद है।

भारतीय अदालतों ने दो यूरोपीय अदालतों के फैसलों फिशर्स एक्जीक्यूटर्स और वेस्टमिनिस्टर्स पर ध्यान दिया है। इनका मूलभूत सारांश यह है कि हर कारोबार को पूरी छूट है कि वह अपने मसलों को इस तरीके से व्यवस्थित करें कि ताकि वह सरकार की ओर से कर में छूट का अधिकतम लाभ उठा सकें।

यूरोपीय अदालतों के विचारों को तब तक भारतीय अदालतों में सामान्य मान्यता दी जाती थी, जब तक उच्चतम न्यायालय ने मैकडॉवेल मामले में रेखा खींच कर यह स्पष्ट नहीं कर दिया कि कर दाताओं को अधिकतम कितनी छूट मिल सकती है। 1980 के मध्य में अदालतों का यह मानना था कि योजना बनाकर कर बचाना तब तक सही है जब तक वह कानून के दायरे में हो और उसे सही दिखाने के लिए कोई धोखाधड़ी नहीं की गई हो।

कई अदालतों ने इस मान्यता का अनुसरण किया और मैकडॉवेल का सिद्धांत कर दाताओं के लिए ‘बाइबिल’ की तरह था। कर दाता अपने अपने तरीके से कर बचाने में जुटे हुए था। नतीजा यह था कि हर कोई अपने मन मुताबिक इस पर काम कर रहा था। वर्ष 2004 में सुप्रीम कोर्ट ने आजादी बचाओ मामले में मॉरिशस कर संधि के इस्तेमाल पर फैसला सुनाया। इस फैसले से कर चुकाने वालों को अपने कर से संबंधित मामलों को व्यवस्थित करने की और छूट मिल गई।

कर बचाएं, छिपाएं नहीं

टैक्स प्लानिंग को मान्यता इस आधार पर दी जाती है कि वह कर को बचाने की तकनीक है या फिर कर को छुपाने की। टैक्स प्रोफेशनल्स का कहना है, ‘अगर कर लगाना अनैतिक नहीं है तो कर बचाना कैसे हो सकता है।’ जब तक आप कर को बचाने के लिए कानूनी तरीकों का इस्तेमल करते हैं तब तक यह आपकी चतुराई का हिस्सा है। यह कोई अपराध नहीं है। पर जब आप कर को बचाने के लिए आय को छुपाने लगते हैं तो यह अपराध की श्रेणी में आती है।

कैसा उदाहरण पेश करेगी एटी ऐंड टी?

कंपनी का कहना है कि विनिवेश ढांचा किसी प्रकार की धोखाधड़ी नहीं है बल्कि कानून के दायरे में रहकर कर बचाने की तकनीक है। कर की चोरी पर रोक लगाने के लिए यूं तो सरकार को पहले ये ही संधि और घरेलू कानून में व्यवस्थाएं करनी चाहिए, पर सवाल यह उठता है कि अगर कोई विधायी ढांचा तैयार नहीं किया गया हो तो इस पर रोक लगाना इतना आसान होगा। जवाब सीधा है- नहीं।

भारत और मॉरिशस के बीच कर संधि लंबे समय से चली आ रही है और भारत में निवेश को बढ़ावा देने के लिए इसमें ऐसी व्यवस्थाएं हैं, जो साथ ही कर बचाने में भी सहायता करती हैं।

अगर अब सरकार को ऐसा लगता है कि कर बचाने के ये तरीके अब उतने उपयोगी नहीं रह गए हैं तो उन्हें संधि में बदलाव लाकर व्यवस्थित किया जा सकता है। एटी ऐंड टी के मामले में यह सवाल महत्वपूर्ण है कि क्या कर प्रशासन ऐसे किसी मामले में कर की मांग कर सकता है या फिर कदम उठा सकता है जो अदालत में लंबित हो।

First Published - May 19, 2008 | 3:55 AM IST

संबंधित पोस्ट