भारतीय ऋण शोधन अक्षमता एवं दिवालिया बोर्ड (आईबीबीआई) ने एक वैधानिक व्यवस्था का प्रस्ताव रखा है, जिसमें कोई कंपनी स्वैच्छिक परिसमापन की प्रक्रिया शुरू करने के बाद किसी भी समय इससे बाहर निकल सकती है।
किसी ऋणग्रस्त कंपनी की कॉरपोरेट ऋण शोधन अक्षमता समाधान और परिसमापन प्रक्रिया से इतर स्वैच्छिक परिसमापन की निगरानी ऋणदाताओं की समिति या हितधारकों की विमर्श समिति नहीं करती है। ऐसे नियम नहीं होने से इस बात की चिंताएं थीं कि कुछ लोग प्रक्रिया का दुरुपयोग कर सकते हैं और न्यायिक प्राधिकरण को सूचित किए बिना ही अपनी परिसमापन प्रक्रिया बंद कर सकते हैं।
आईबीबीआई ने कहा, ‘प्रस्तावित संशोधन नए नियम शामिल कर प्रक्रिया से बाहर निकलने का एक व्यवस्थित खाका मुहैया कराता है। इससे पर्याप्त नियंत्रण एवं संतुलन सुनिश्चित होता है ताकि प्रक्रिया का दुरुपयोग न किया जाए।’ इन नियमों में प्रस्ताव है कि एक ‘कॉरपोरेट व्यक्ति’ को स्वैच्छिक परिसमापन प्रक्रिया से बाहर निकलने के लिए न्यायिक संस्था से मंजूरी हासिल करने की इजाजत दी जाएगी।
परिसमापन को रोकने की प्रक्रिया इसे शुरू करने की प्रक्रिया के समान होगी। इसके लिए विशेष प्रस्ताव से मंजूरी लेनी होगी और सदस्यों एवं साझेदारों से पारित करना होगा। इसके अलावा अगर कंपनी की कोई परिसंपत्ति परिसमापक द्वारा हासिल की गई है तो कर्ज के दो-तिहाई मूल्य का प्रतिनिधि ऋणदाताओं की मंजूरी लेनी होगी या उन सभी ऋणदाताओं की मंजूरी लेनी होगी, जिनका पैसा बकाया है।
दिवालिया नियामक ने यह भी सुझाव दिया है कि निकासी का आवेदन परिसमापक द्वारा राष्ट्रीय कंपनी विधि न्यायाधिकरण (एनसीएलटी) में दायर किय जाना चाहिए। उसे यह भी आश्वासन देना होगा कि बंद करने की उचित प्रक्रिया का पालन किया गया है और यह किसी व्यक्ति को ठगने के लिए शुरू नहीं की गई है।
आईबीबीआई ने अपने विमर्श पत्र में कहा है कि इस कदम से संभावित व्यवहार्य कंपनी को परिसमापन से बचाने, संसाधनों के मूल्य को नष्ट होने और कामगारों, कर्मचारियों एवं कच्चे माल के आपूर्तिकर्ता जैसे अन्य हितधारकों पर प्रतिकूल असर को टालने में मदद मिल सकती है।
एक गतिशील बाजार अर्थव्यवस्था में बाजार की स्थितियां बदल सकती हैं। यह संभव है कि जब स्वैच्छिक परिसमापन की प्रक्रिया शुरू की जाए, उस समय बाजार स्थितियां अनुकूल न हों। मगर बाद में स्थितियां लाभप्रद एवं बेहतर हो जाएं, जिससे कंपनी के परिचालन को जारी रखना उचित साबित हो। आईबीबीआई ने कहा, ‘अगर उसमें कारोबारी मौके हैं तो स्वैच्छिक परिसमापन को बीच में ही रोकना हितधारकों एवं अर्थव्यवस्था के लिए बेहतर साबित हो सकता है।’ कानून इस विषय में मौन था, लेकिन स्वैच्छिक परिसमापन से निकासी बीते समय में हुई है। आईबीबीआई के मुताबिक इस साल अक्टूबर तक ऐसी आठ प्रक्रियाएं रद्द हुई हैं।
