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कोविड की दूसरी लहर पहली से ज्यादा घातक!

Last Updated- December 12, 2022 | 6:11 AM IST

कोविड-19 की दूसरी लहर पहली के मुकाबले कम घातक है या हमने वर्ष 2020 में जो मृत्यु दर देखी थी, यह उससे कम दिखा रही है, इस जानकारी के विपरीत हाल के सप्ताहों में किए गए मौतों के एक विश्लेषण में पता चला है कि दूसरी लहर पहली की तरह ही घातक है या उससे भी ज्यादा घातक हो सकती है। शोध और डॉक्टरों के हिसाब से कोविड-19 के कारण होने वाली मौतें आम तौर पर बीमारी की पहचान के दो से तीन सप्ताह बाद होती हैं। यहां इस्तेमाल की गई विलंबित सीएफआर (संक्रमण से होने वाली मृत्यु दर) किसी खास दिन होने वाली मौतों को अनिवार्य रूप से उस दिन से 18 दिन पहले दर्ज किए गए मामलों के रूप में मापती है। हालांकि कुल मिलाकर देश की संयुक्त सीएफआर गिरकर 1.3 प्रतिशत पर आ गई है, लेकिन बिज़नेस स्टैंडर्ड द्वारा किए गए कोविड19इंडिया डॉट ओरजी के आंकड़ों के विश्लेषण के अनुसार मौजूदा सीएफआर धीरे-धीरे बढ़ रही है।
देश की विलंबित सीएफआर अब बढ़कर 1.7 मौत प्रति 100 मामले हो चुकी है, जो पहली लहर के चरम-सितंबर 2020 में नजर आए स्तर के बराबर है। सर्वाधिक पीडि़त राज्य महाराष्ट्र के मामले में यह विलंबित सीएफआर बढ़ रही है, लेकिन जांच बढऩे के कारण अधिक संख्या में मामलों का पता लगने की वजह से यह पहली लहर की तुलना में अब भी कम है। लेकिन राष्ट्रीय राजधानी दिल्ली के संबंध में तस्वीर बिगड़ती दिख रही है। यह विलंबित सीएफआर 2.6 प्रतिशत का स्तर पार कर चुकी है। यह वह स्तर है, जो वर्ष 2020 के चरम में भी नजर नहीं आया था। संक्रमण रोकने के लिए शहर में हाल ही में रात्रि कफ्र्यू लगाया गया है। पंजाब भी सबसे अधिक प्रभावित राज्यों में से एक है और ऐसा राज्य है, जहां ब्रिटेन का अत्यधिक संक्रामक स्वरूप (बी.1.1.7) बड़े अनुपात में पाया गया था। इस विश्लेषण के अनुसार यहां यह विलंबित सीएफआर 5 अप्रैल को 3.4 प्रतिशत के ऊंचे स्तर पर था। दरअसल में, मार्च के तीसरे सप्ताह में यह बढ़कर 5.7 प्रतिशत तक पहुंच गया था।
आंकड़ों के अनुसार दूसरी लहर पहली के मुकाबले 1.7 गुना ज्यादा तेज है या दूसरे शब्दों में कहें, तो इस बार दैनिक मामलों की संख्या 11,000 से बढ़कर 84,000 तक पहुंचने में 51 दिन लगे हैं, जबकि पहली लहर में 85 दिन लगे थे।
साथ ही इन विश्लेषणों से पता चलता है कि हालात जरा भी बेहतर नहीं हैं, बल्कि असल में स्वास्थ्य बुनियादी ढांचे पर पिछले साल के मुकाबले अधिक दबाव पडऩे के परिणामस्वरूप कम वक्त में ज्यादा मौतें हो सकती हैं।
डॉक्टरों और विशेषज्ञों ने कहा कि इस बीमारी के कारण मौत होने के कई कारक जिम्मेदार हैं, जिनमें इसका पता लगने में देरी, उपचार की प्रकृति और संक्रमित व्यक्ति की उम्र शामिल है। कुछ ने यह भी कहा कि इस समय कम गंभीर लक्षण देखे जा रहे हैं। कोविड-19 के उपचार के लिए परजीवीरोधी दवा आइवरमेक्टिन के इस्तेमाल पर रिपोर्ट प्रकाशित करने वाले मुंबई स्थित श्वसन तंत्र विशेषज्ञ अगम वोरा ने कहा कि इस बीमारी के बढ़कर मौत होने के संबंध में कोई सामान्य समय-सीमा नहीं है। उन्होंने कहा ‘यह बात किसी व्यक्ति की प्रतिरक्षा पर निर्भर करती है। कुछ लोगों के लिए यह समय-सीमा 10 दिन हो सकती है, तो दूसरों के लिए यह अधिक हो सकती है। यह इस बात पर भी निर्भर करता है कि इस बीमारी का किस चरण में पता लगाया गया था।’
हालांकि दिनों की कोई निश्चित संख्या नहीं है कि इतने दिन बाद संक्रमित व्यक्ति की हालत गंभीर हो जाती है, लेकिन दुनिया भर में किए गए अध्ययनों से पता चला है कि बीमारी का पता चलने के 12 से 22 दिनों के बीच मौत होती है।
पब्लिक हेल्थ फाउंडेशन ऑफ इंडिया के अध्यक्ष के श्रीनाथ रेड्डी ने कहा कि कोविड-19 से होने वाली मौत को समझना मुश्किल है। उन्होंने कहा हालांकि पहले लक्षण दिखाई देने के लगभग दो से तीन सप्ताह बाद मौत हो सकती है, लेकिन युवा व्यक्ति ज्यादा लंबे समय तक लड़ सकता है और बुजुर्ग मरीज इस बीमारी के आगे पहले परास्त हो सकता है। रिपोर्टों से यह भी पता चलता है कि इस दूसरी लहर में युवा लोग बड़ी संख्या में अस्पताल में भर्ती कराए जा रहे हैं।
उन्होंने बिजनेस स्टैंडर्ड को बताया ‘यह सच है कि मौतों में इजाफा हो रहा है, लेकिन मौजूदा लहर किस कदर घातक है, इसकी पूरी स्थिति समझने के लिए हमें अस्पताल में भर्ती लोगों की मौतों को देखना चाहिए।’ मणिपाल हॉस्पिटल्स में फेफड़े प्रत्यारोपण चिकित्सक और कर्नाटक के कोविड-19 कार्यबल के सदस्य डॉ. सत्यनारायण मैसूर ने कहा कि मौतों की रोकथाम में शुरुआत में बीमारी का पता लगना महत्त्वपूर्ण भूमिका निभाता है।
उन्होंने बिज़नेस स्टैंडर्ड को बताया कि बीमारी की जल्द पहचान के लिए राज्य सरकारों को बुखार की क्लीनिकों को फिर से सक्रिय करने की जरूरत है।

First Published - April 7, 2021 | 11:37 PM IST

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