भारतीय चिकित्सा और अकादमिक बिरादरी का मानना है कि वह मौजूदा रूस-यूक्रेन युद्ध के कारण भारत वापस आए देश के स्नातकों के लिए तत्काल मानवीय सहायता की अपेक्षा करता है, लेकिन भारत में शिक्षा का स्तर कम करने की कीमत पर ऐसा नहीं किया जा सकता है। यह कहना है विशेषज्ञों का।
चिकित्सा संकाय और चिकित्सकों ने विदेश चिकित्सा स्नातकों (एफएमजी) को भारतीय मेडिकल कॉलेजों में अपनी इंटर्नशिप या व्यावहारिक प्रशिक्षण पूरा करने की अनुमति देने के राष्ट्रीय चिकित्सा आयोग (एनएमसी) के कदम का स्वागत किया है। एनएमसी ने राज्य चिकित्सा परिषदों को इन उम्मीदवारों की इंटर्नशिप पूरी करने की प्रक्रिया करने के लिए कहा है, बशर्ते उन्होंने विदेश चिकित्सा स्नातक परीक्षा (एफएमजीई) उत्तीर्ण कर ली हो। एफएमजीई देश में राष्ट्रीय परीक्षा बोर्ड (एनबीई) द्वारा आयोजित लाइसेंसधारी परीक्षा होती है। यह उन भारतीय नागरिकों के लिए अनिवार्य आवश्यकताओं में से एक होती है, जिन्होंने भारत में मेडिकल प्रैक्टिस करने के लिए देश के बाहर के किसी कॉलेज से मेडिकल डिग्री प्राप्त की होती है। साल में दो बार आयोजित होने वाला एफएमजीई 4 जून और 17 दिसंबर, 2022 को आयोजित की जाएगी।
लाइसेंसधारी परीक्षा में वर्ष 2020 के दौरान 20 प्रतिशत से कम का निराशाजनक उत्तीर्ण प्रतिशत दिखाई दिया था, जो वर्ष 2021 में 24 प्रतिशत रहा, इससे उन देशों में शिक्षण के मानक पर सवाल खड़े हैं, जहां से एफएमजी भारत में एफएमजीई परीक्षा देने से पहले अपना चिकित्सा प्रशिक्षण प्राप्त करते हैं।
अहमदाबाद के एनएचएल मेडिकल कॉलेज के डीन प्रतीक पटेल ने कहा कि मानवीय आधार पर इन छात्रों की मदद करने के लिए एनएमसी जो कुछ कर सकती थी, उसने वह किया है। लेकिन एफएमजीई एक ऐसी परीक्षा है, जिसका मानक छात्रों की खातिर कम नहीं किया जा सकता है। अगर केवल 24 प्रतिशत यह साबित कर पाते हैं कि वे भारतीय चिकित्सा मानकों से मेल खा सकते हैं, तो यह बात छात्रों पर निर्भर करती है। सबसे महत्त्वपूर्ण बात यह है कि हमें भारत में गुणवत्ता वाले डॉक्टरों की जरूरत है। इसी प्रकार फेडरेशन ऑफ ऑल इंडिया मेडिकल एसोसिएशन (एफएआईएमए) द्वारा आयोजित एक समूह चर्चा में पटना के आर्यभट्ट नॉलेज यूनिवर्सिटी के डीन (फैकल्टी ऑफ मेडिसन) डॉ. राजीव रंजन प्रसाद ने कहा कि एफएमजी के बीच इतने कम उत्तीर्ण प्रतिशत का कारण या तो एफएमजीई में कठिन प्रश्न हो सकते हैं या फिर विदेशी मेडिकल कॉलेजों में शिक्षण की खराब गुणवत्ता। प्रसाद ने कहा, ‘ये एफएमजी केवल यूक्रेन में फंसे हुए थे और उन्हें निकालने की जरूरत थी … पहले ही, एनएमसी ने वजीफे के साथ इंटर्नशिप की अनुमति दी है, जो एक बहुत बड़ा उपकार है। लेकिन मानक में अचानक कमी करना संभव नहीं है। यह एफएमजीई परीक्षा विदेश से पढ़े स्नातकों को भारतीय शिक्षा प्रणाली के बराबर लाने के लिए आयोजित की जाती है।’
अलबत्ता प्रसाद ने कुछेक समाधानों की पेशकश करते हुए कहा कि एनएमसी नियमों में एफएमजी को 10 साल में एमबीबीएस कार्यक्रम पूरा करने की जरूरत होती है, इसलिए वापस आए छात्रों के पास अब भी अपनी डिग्री पूरी करने के लिए काफी वक्त है, साथ ही भारत एफएमजीई परीक्षा में उनकी मदद के लिए विशेष प्रशिक्षण प्रदान करने पर विचार कर सकता है। दिल्ली मेडिकल एसोसिएशन (डीएमए) के अध्यक्ष डॉ. जीएस ग्रेवाल जैसे विशेषज्ञ भी बताते हैं कि युद्ध जैसी आपात स्थिति पूरी शिक्षा प्रणाली में बदलाव नहीं ला सकती है। ग्रेवाल ने कहा कि सवाल एफएमजी को भारतीय चिकित्सा स्नातक पाठ्यक्रमों के बराबर लाने का है, जिसे एफएमजीई के जरिये लाया गया है।
अन्य संभावित समाधानों में वल्र्ड मेडिकल एसोसिएशन (डब्लूएमए) के कोषाध्यक्ष रवि वानखेड़कर ने कहा कि यूक्रेन में युद्ध समाप्त होने के बाद छात्र अपने कॉलेजों में फिर से जाने पर विचार नहीं कर सकते हैं। इस बात की संभावना है कि पोलैंड जैसे पड़ोसी देश समान शुल्क पर इन छात्रों को सुविधा प्रदान कर सकते हैं।
