नाले के पानी में सार्स-कोव-2 की जांच

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बीएस संवाददाता
Last Updated- December 11, 2022 | 8:07 PM IST

देश में कोविड-19 के लक्षण वाले संक्रमण में कमी दिख रही है ऐसे में भारतीय सार्स-कोव-2 जीनोमिक कंसोर्टियम (इन्साकॉग) ने अब देश में 55 जगहों पर नालियों से बहने वाले गंदे पानी आदि की निगरानी शुरू कर दी है ताकि सार्स-कोव-2 वायरस की मौजूदगी की पहचान की जा सके। इन्साकॉग ने इस बात की पुष्टि की है कि अब तक एक्सई स्वरूप के किसी भी मामले की पुष्टि भारत में नहीं हुई है।
इन्साकॉग के सह अध्यक्ष एन के अरोड़ा ने कहा, ‘इसे पर्यावरण स्तर की निगरानी कहा जा सकता है और भारत ने पोलियो अभियान के दौरान भी ऐसा किया है। पोलियो अभियान के सबक को अब नाली के पानी के नमूनों से सार्स-कोव-2 वायरस की जांच के लिए अपनाया जा रहा है।’ उन्होंने कहा कि दुनिया में कुछ ही देशों में नाली के पानी से वायरस के अंश की पहचान करने की तकनीक और क्षमता है। अरोड़ा का दावा था कि भारत पहला ऐसा देश था जिसने पोलियो के लिए ऐसा प्रयोग किया था। इसका इस्तेमाल यह देखने के लिए किया जाता है कि पर्यावरण में वायरस का प्रसार किस तरह किया जाता है। कोविड 19 संक्रमण से संक्रमित अधिकतर लोग या तो हल्के लक्षण वाले हैं या फिर उन्हें हल्का इन्फ्लूएंजा जैसा लक्षण हैं। इसी वजह से कई लोग आरटी-पीसीआर जांच का विकल्प नहीं अपना रहे हैं। इन्साकॉग के जीनोम सीक्वेंसिंग के लिए नमूने अब कम हो रहे हैं ऐसे में पर्यावरण स्तर की निगरानी आवश्यक है। अरोड़ा का कहना है, ‘हमें सतर्क रहना पड़ेगा और जल्द ही आबादी में वायरस के किसी नए म्यूटेशन या स्वरूप के प्रसार की पहचान करने के लिए सतर्क रहना होगा। इसके अलावा पर्यावरणीय निगरानी एक ऐसा तरीका है जिससे इस तरह के रुझान की पुष्टि होती है कि हम किसी नमूने के नियमित जीनोमिक नमूने ले रहे हैं।’ इससे आबादी में किसी प्रभावी स्ट्रेन की जांच में या फिर संक्रमण के भौगोलिक रुझान को देखने में मदद मिलती है।
भारत का पोलियो के साथ अनुभव ठीक था। अरोड़ा का कहना है कि पोलियो के लक्षण वाले सभी मामलों में 300-500 हल्के लक्षण वाले मामले थे। इसी तरह किसी क्षेत्र में लक्षण वाले प्रत्येक कोविड-19 मामलों में 8-10 हल्के लक्षण वाले कोविड मामले हैं।
अब तक एक्सई स्वरूप के किसी भी मामले की पुष्टि नहीं हुई है और अरोड़ा का कहना है कि इन्साकॉग लैबोरेटरीज नेटवर्क तीन चरण वाले तंत्र के जरिये काम करता है। वह कहते हैं, ‘किसी भी स्वरूप की पुष्टि करने के लिए 10 मूल प्रयोगशालाएं हैं। देश में किसी भी जगह किसी नमूने को जीनोम सिक्वेंसिंग के लिए इन्साकॉग में ही नियमित तौर पर भेजा जाता है।’
बुधवार को बृह्नमुंबई महानगरपालिका (बीएमसी) ने 11वें जीनोम सिक्वेंसिंग के नतीजे की घोषणा की जिसमें एक नमूने में सार्स-कोव-2 वायरस के एक्सई स्वरूप की जबकि दूसरे नमूने में कप्पा स्वरूप की पुष्टि हुई।
हालांकि केंद्रीय स्वास्थ्य मंत्रालय ने कहा कि जिस नमूने को ‘एक्सई’ स्वरूप कहा जा रहा है, उसका आकलन इन्साकॉग के जीनोमिक विशेषज्ञों द्वारा काफी विस्तृत तरीके से किया गया और उन्होंने अपने शोध के आकलन पर यह नतीजा निकाला कि वायरस के स्वरूप का एक्सई स्वरूप की जीनोमिक तस्वीर के कोई संबंध नहीं है।
बीएमसी के मुताबिक 50 साल पुरानी महिला में एक्सई स्वरूप की पुष्टि हुई है। अरोड़ा का कहना है कि इन्साकॉग लैबोरेटरीज में वायरस की संरचना का बारीकी से अध्ययन किया गया और इसका एक्सई से कोई संबंध नहीं है। अरोड़ा का मानना है कि अगर यह एक्सई स्वरूप का मामला होता तब उस महिला के आसपास इस तरह के अधिक संक्रमण अब तक (नमूने 2 मार्च के हैं) जरूर देखे जा सकते थे। विश्व स्वास्थ्य संगठन (डब्ल्यूएचओ) ने ब्रिटेन में कोविड स्वरूप के म्यूटेशन एक्सई के पाए जाने की पुष्टि की है। डब्ल्यूएचओ ने कहा है कि बदलाव के बाद बना यह स्वरूप कोरोनावायरस के पहले के स्वरूपों की तुलना में ज्यादा संक्रामक हो सकता है। एक्सई स्वरूप ओमीक्रोन के बीए.1 और बीए.2 उप स्वरूपों में बदलाव के बाद बना है।

First Published : April 7, 2022 | 11:24 PM IST