ऊंचे पदों पर कार्यरत व्यक्तियों को निजी कंपनियों में भले ही मोटी तनख्वाह मिलती हो लेकिन बाबू और चपरासी जैसे निचले पदों पर काम करने वाले लोगों को कंपनियां पुरस्कृत करने में कंजूसी दिखाती हैं।
छठे वेतन आयोग की तरफ से एक्सएलआरआई जमशेदपुर द्वारा कराए गए एक अध्ययन के मुताबिक सरकार निचले स्तर पर काम करने वाले कर्मचारियों को निजी क्षेत्र के मुकाबले बेहतर वेतन का भुगतान करती है। रिपोर्ट के मुताबिक समूह ग और घ के स्तर पर सरकार द्वारा प्रदान मुआवजा काफी ज्यादा पाया गया। मध्य स्तर (समूह ख) के कर्मचारियों के मामले में रिपोर्ट में कहा गया है कि निजी क्षेत्र द्वारा उपलब्ध कराया जाने वाला पैकेज सरकार के पैकेज की तुलना में थोड़ा र्हीं ज्यादा है।
वास्तव में वेतन में सबसे ज्यादा अंतर उच्च वर्ग (समूह क) के मामले में है। निजी क्षेत्र में उच्च पदों पर कार्यरत कर्मचारियों को सरकार के पैकेज के मुकाबले बहुत ज्यादा वेतन का पैकेज मिलता है।
विभिन्न संगठनों की ओर से बाजारोन्मुखी वेतन की मांग पर प्रतिक्रिया व्यक्त करते हुए वेतन आयोग ने कहा कि मीडिया और अन्य रिपोर्टों में शुरुआती दौर में मोटी तनख्वाह केवल गिने चुने लोगों को मिलती है जो शीर्ष प्रबंधन स्कूलों के मेधावी विद्यार्थी होते हैं। आयोग ने कहा कि अधिक वेतन एक खास समय में प्रतिभा की मांग को देखते हुए दिया जाता है और यह उद्योग के औसत वेतन को परिलक्षित नहीं करता।
सरकारी और निजी क्षेत्र के वेतनमान की तुलना करते हुए आयोग ने कहा कि सरकार के लिए काम करने में सम्मान शामिल है और यह राष्ट्रीय नीति में योगदान करने का अवसर उपलब्ध कराता है।
इसके अलावा काम से जुड़ा तनाव सरकारी नौकरी में अपेक्षाकृत कम होता है और काम का समय, काम और निजी जीवन के बीच संतुलन स्थापित करने के लिए अनुकूल होता है। आयोग ने कहा कि पेंशन और अन्य लाभों के साथ ही सरकारी कर्मचारी नौकरी की सुरक्षा का भी आनंद उठाता है।