महिंद्रा स्कॉर्पियो किसी परिचय की मोहताज नहीं है। देश की जानी मानी ऑटो कंपनी महिंद्रा ऐंड महिंद्रा लिमिटेड की इस स्पोर्ट्स यूटिलिटी व्हीकल (एसयूवी) ने न सिर्फ देश में, बल्कि विदेशों में भी अपनी सफलता के झंडे गाड़े हैं।
लेकिन कहते हैं कि सफलता की कोई मंजिल नहीं होती है, बल्कि यह एक यात्रा की तरह होती है। महिंद्रा भी इस बात को समझती है तभी तो उसने स्कॉर्पियो को और बेहतर बनाकर उसका ऑटोमैटिक वर्जन तैयार किया है।
आइए इस पर नजर डालते हैं और देखते हैं कि पुरानी यानी मैनुअल स्कॉर्पियो से यह किस तरह जुदा है। और क्या हैं इसकी खूबियां और अभी भी कहां रह गई हैं खामियां।
यदि आपने मैनुअल स्कॉर्पियो को चलाया होगा, तब आपने महसूस किया होगा कि गीयर लीवर पर हाथ रखने पर वह कंपकंपाता है। कंपन की वह आवाज नुकसान तो नहीं पहुंचाती, लेकिन आपकी कलाई को अच्छा एहसास नहीं होता।
नई हॉक ऑटोमैटिक स्कॉर्पियो 2.2 में आपको यह खामी नहीं दिखेगी। लेकिन किसी कार को खरीदने के फैसले पर पहुंचने से पहले कई चीजों के बारे में जानना बेहद जरूरी होता है।
शुरुआत में मुझे लगा कि ऑटोमैटिक गीयरबॉक्स की कोई खास जरूरत नहीं थी। लेकिन इसकी टेस्ट ड्राइव पर मुझे बेहद ताज्जुब हुआ। हॉक 2.2 का इंजन बेहद शक्तिशाली है।
इसका इंजन 4,000 आरपीएम पर 120 बीएचपी की पावर देता है। वहीं 1,800 से 2,800 आरपीएम पर 29.6 केजीएम का टॉर्क देता है जो किसी भी बड़ी एसयूवी को ताकत देने के लिए काफी है।
वैसे महिंद्रा के इंजीनियर इतने सक्षम हैं कि गाड़ी में और भी पावर दे सकते थे। लेकिन मौजूदा पावर भी काफी है। नया ऑटोमैटिक गीयरबॉक्स अधिकतम 34 केजीएम के टॉर्क को ही सहन कर सकता है।
मस्नुअल ट्रांसमिशन वाली एम हॉक में शहर की सड़कों पर और हाइवे पर कोई फर्क नजर नहीं आता। दूसरे गीयर के बाद इसमें सब एक-सा ही महसूस होता है। अब नए ऑटोमैटिक वर्जन में 6 स्पीड यूनिट के साथ स्कॉर्पियो एम हॉक में सुधार हुआ है और यह बेहतर हुई है।
कुल मिलाकर 6 गभ्यरवाली स्कॉर्पियो ऑटोमेटिक चलाने में शानदार है। वैसे लंबे गभ्यर लीवर से तालमेल बिठाने में कुछ वक्त लग सकता है। साथ ही इंस्ट्रुमेंट पैनल से भी यह नहीं पता लग पाता कि गाड़ी कौन से गीयर में है, लेकिन इससे कुछ खास फर्क नहीं पड़ता।
कुछ दिनों के बाद आप इसके आदी हो जाएंगे। इसमें डिस्प्ले को न देने की वजह भी है। यह कैन क म्युनिकेशन पर काम करती है। महिंद्रा के इंजीनियरों के मुताबिक क्लस्टर में अभी तक कैन सिस्टम नहीं लगा है। कुछ वक्त के बाद यह भी लग जाएगा।
एम हॉक को परखने के लिए मैंने तंग और भीड़-भाड़ वाली सड़कों को चुना। उस सड़क पर पैदल राहगीर भी आ-जा रहे थे। अगर शहर के अंदर ऐसे हालात में इसको नहीं परखा जाता तो इसकी क्षमताओं का सही आकलन नहीं किया जा सकता। ट्रैफिक के मुश्किल हालात में भी कार ने बढ़िया प्रदर्शन किया।
इस स्थिति में बढ़िया ड्राइविंग के लिए जरूरी टॉर्क आसानी से मिल रहा था। इसके लिए गीयरबॉक्स के अलावा शक्तिशाली इंजन का भी शुक्रगुजार होना चाहिए। और जब ट्रैफिक से कुछ राहत मिलती है तब खाली सड़क पर आप इसको दौड़ा सकते हैं। इसकी दमदार पावर आपको पलक झपकने का भी मौका नहीं देती।
अचानक से कार को तेज दौड़ाने के लिए जरूरी पावर और टॉर्क आसानी से मिल जाता है। गीयर के बीच शिफ्ट में बेहतरीन अंदाज में अंतर किया गया है, जिससे ड्राइविंग में आसानी होती है।
मैनुअल वर्जन के मुकाबले यह काफी बेहतर है। ट्रैफिक सिग्नल के बीच आपको इसकी खासियत कुछ ज्यादा ही नजर आएगी और आप इसकी तारीफ किए बिना नहीं रहेंगे। ऑस्ट्रेलिया से आयातित गीयरबॉक्स बहुत ज्यादा हाईटेक तो नहीं है, लेकिन फिर भी काफी शानदार है।
अगर आप ज्यादा ध्यान नहीं देंगे तो आपको पता भी नहीं चल पाएगा कि गीयर कब बदला गया। मैनुअल वर्जन के मुकाबले भी यह फायदेमंद है। स्कॉर्पियों के इस नए वर्जन में अगर झटका लगता है तो यह इस बात पर निर्भर करता है कि आप क्लच को कैसे छोड़ रहे हैं?
इस तरह कई ट्रायल के बाद शोध एवं विकास टीम ने बढ़िया ड्राइविंग कंडीशन के लिए जरूरी पेडल मैपिंग की। साथ ही इलेक्ट्रॉनिक कंट्रोल मॉडयूल (ईसीएम) में भी जरूरी तब्दीलियां की। ऑटोमैटिक स्कॉर्पियो रोजमर्रा के ट्रैफिक में भी बढ़िया काम करती है।
इसमें नया कूलिंग सिस्टम लगा है। ऑस्ट्रेलिया और स्पेन में इस पर काम किया गया है जबकि दक्षिण अफ्रीका और स्विट्जरलैंड में इसका ट्रायल किया गया। अब महिंद्रा ऐंड महिंद्रा इसको लेकर काफी उम्मीदें लगाए हुए है। वैसे स्कॉर्पियो ऑटोमैटिक ने अपनी क्षमताओं से हमें हैरान कर दिया।
शून्य से 60 किलोमीटर प्रति घंटा की रफ्तार पकड़ने में यह महज 6 सेकंड लेती है और सिर्फ 15 सेकंड में लगभग 2 टन की यह एसयूवी 100 किलोमीटर प्रति घंटा की तेजी पकड़ लेती है।
जब वापस लौटकर हमने मैनुअल एम हॉक से इसकी तुलना की तो ऑटोमैटिक को उसकी तुलना में काफी तेज पाया। यह शायद इसलिए भी था कि जिस मैनुअल का हमने जायजा लिया था वह एकदम नई थी और अभी उसके इंजन को खुलना बाकी था।
वैसे इस बात को मानने में कोई गुरेज नहीं है कि ऑटोमेटिक एम हॉक रफ्तार के मामले में किसी भी लिहाज से कमतर है। हाइवे पर यह फर्राटे भरती हुई नजर आती है।
आप आसानी से इसको 100 से 110 किलोमीटर प्रति घंटा की रफ्तार पर दौड़ा सकते हैं। हाइवे पर किसी ट्रक को ओवरटेक करने के लिए आपको एम स्लॉट की जरूरत ही नहीं पड़ेगी, इसके शानदार टॉर्क के चलते बस आप थोडा पेडल दबाइए और आगे निकल जाइए।
हालांकि, जब मुश्किलों की बात आती है तब आप एम स्विच को थोड़ा नीचे करके भी आसानी से ओवरटेक कर सकते हैं। इसके अलावा एम फंक्शन से आपको इंजन ब्रेकिंग की सुविधा मिलती है। फिसलन भरी सड़क पर एम हॉक का फीचर डब्ल्यू (विंटर) मोड आपका मददगार साबित होता है, लेकिन यह कुछ खास स्थितियों में ही काम करता है। महिंद्रा ने 4#4 एम हॉक ऑटो को पेश नहीं किया है।
काफी समय से मौजूद एम हॉक की तुलना में उसकी टेस्ट ड्राइव बेहद शानदार रही। लेकिन एक बात तो साफ है कि हल्के एम हॉक इंजन की वजह से स्कॉर्पियो पर पकड़ बनाना आसान हो गया है, लेकिन इसकी ब्रेकिंग में वह सुधार नहीं दिखता है।
अचानक से ब्रेक लगाने में शायद आपका अनुभव उतना अच्छा नहीं रहे। जिस वीएलएक्स वर्जन का हमने टैस्ट किया उसमें एबीएस लगा हुआ है। महिंद्रा को हमारा सुझाव है कि कंपनी अपने हर मॉडल में एबीएस का इस्तेमाल करे। कम से कम विकल्प के रूप में तो उसे एबीएस मुहैया कराना ही चाहिए।
अब देखना यह होगा कि स्कॉर्पियो ऑटोमेटिक के लिए आगे की डगर कैसी होगी? महिंद्रा को अभी कार को लॉन्च करना है और साथ ही उसकी कीमत भी बतानी होगी।
हमारा अनुमान है कि इसकी कीमत 11 से 11.5 लाख रुपये के बीच रहेगी। बेशक यह सस्ती नहीं है, लेकिन मैनुअल के मुकाबले इसके बहुत सारे फायदे हैं, जिसमें ईंधन खपत भी शामिल है। कुल मिलाकर स्कॉर्पियो का यह वर्जन हर लिहाज से बेहतर है।