कोवैक्सीन के ज्यादा प्रभावी होने से कई आशंकाएं दूर

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बीएस संवाददाता
Last Updated- December 12, 2022 | 7:26 AM IST

अंतरिम निष्कर्षों में 81 फीसदी असरदार पाए गए भारत बायोटेक के कोविड टीके कोवैक्सीन ने अपने बारे में जताई जा रही आशंकाओं को खारिज कर दिया है। इस समय देश भर में जारी कोविड टीकाकरण कार्यक्रम के तहत कोवैक्सीन समेत दो टीके ही लगाए जाने की मंजूरी सरकार ने दी हुई है। भारत के टीकाकरण अभियान के लिए कोवैक्सीन की प्रभावशीलता के क्या हैं मायने?

टीके की प्रभावशीलता का क्या मतलब है?
टीका-विज्ञान किसी भी टीके के न्यूनतम अनिवार्य प्रकार्य (एमईएफ) के बारे में चर्चा करता है जिसमें उसकी सुरक्षा एवं प्रभावशीलता भी शामिल होती है। किसी टीके की की प्रभावशीलता का आशय टीका लगवाने वाले शख्स के भीतर प्रतिरोधक क्षमता पैदा कर पाने की काबिलियत से है। असरदार होने पर कोई भी टीका उस बीमारी की चपेट में आने की आशंका को काफी हद तक कम कर देता है। यह असर हल्का, मध्यम एवं गंभीर हो सकता है।  
संक्रमण आशंका में खासी कमी- कोविड-19 टीके के संदर्भ में विश्व स्वास्थ्य संगठन (डब्ल्यूटीओ) ने 50 फीसदी असरदार होने की सीमा रखी है। एक और बिंदु यह है कि किसी टीके से उस बीमारी की तीव्रता में कोई कमी आती है या नहीं। हालांकि अभी तक इसकी गणना नहीं की गई है लेकिन ब्रिटेन में यह पाया गया है कि टीका लगने के बाद मौतों की गिनती में कमी आई है।

टीके की की प्रभावशीलता को किस तरह मापा जाता है?
यह बीमारी की चपेट में आने वाले लोगों के दो समूहों की गणितीय गणना है। एक समूह को टीका लगाया जाता है जबकि दूसरे समूह को प्रायोगिक दवा दी जाती है। भारत बायोटेक की कोवैक्सीन के मामले में यह प्रायोगिक टीका लगवाने वाले 43 में से 36 लोग कोविड-19 महामारी से सुरक्षित पाए गए हैं जिससे इसकी की प्रभावशीलता 80.6 फीसदी पाई गई है। इससे टीके की की प्रभावशीलता साबित होती है।
भारत बायोटेक के अध्ययन में 60 साल से अधिक उम्र के 2,433 लोगों और गंभीर रूप से बीमार 45 साल से अधिक उम्र के 4,500 लोगों को शामिल किया गया था। अंतरिम विश्लेषण में सुरक्षा डेटाबेस की प्रारंभिक समीक्षा शामिल है जो दिखाता है कि गंभीर एवं चिकित्सकीय लिहाज से प्रतिकूल स्थितियां कम पैदा हुईं।   

भारत के टीकाकरण अभियान के लिए इसका क्या महत्त्व है?
विशेषज्ञों का मानना है कि टीकाकरण कार्यक्रम के असर में सुधार होने की संभावना है। क्रिश्चियन मेडिकल कॉलेज में क्लिनिकल वायरोलॉजी एवं माइक्रोबायोलॉजी के पूर्व प्रमुख टी जैकब जॉन कहते हैं, ‘जब आप टीका लगाना शुरू करते हैं तो की प्रभावशीलता आंकड़े से कहीं अधिक असर समुदाय में होता है। इसका कारण यह है कि टीका लगवा चुके लोगों की बीमारी फैलाने की दर बहुत कम हो जाती है।’ उनका कहना है कि इंसानों के आपसी संपर्क से फैलने वाली किसी भी बीमारी के लिए यह बात खास तौर पर सही है। आंकड़े से हमें एक अंदाजा मिलता है कि टीके से किस तरह की संरक्षा की उम्मीद की जा सकती है और टीके के प्रति लोगों की हिचक भी कम होती है।

अन्य कोविड टीकों की तुलना में कोवैक्सीन कितना असरदार है?
कोविशील्ड टीके की दो खुराकें चार हफ्ते के अंतराल पर लगाए जाने की स्थिति में करीब 54 फीसदी की असरकारिता पाई गई है। उसकी तुलना में कोवैक्सीन की दो खुराकें दिए जाने के बाद की असरकारिता काफी बेहतर है। हालांकि कोविशील्ड टीके की दोनों खुराकों के बीच अगर 12 हफ्ते का अंतर रखा जाता है तो उसकी असरकारिता करीब 79 फीसदी तक पहुंच जाती है। लेकिन इस अंतराल पर खुराक दिए जाने की अभी तक नियामकीय मंजूरी नहीं दी गई है।
फाइजर और बायो-एनटेक के विकसित टीके बीएनटी162बी2 ने करीब 95 फीसदी की असरकारिता दर्शाई है। लेकिन अभी तक यह टीका भारत में उपलब्ध नहीं है। इसी तरह मॉडर्ना और अमेरिका के राष्ट्रीय एलर्जी एवं संक्रामक रोग संस्थान द्वारा संयुक्त रूप से विकसित टीके को 94 फीसदी तक असरदार पाया गया है। जॉनसन ऐंड जॉनसन का इकलौती खुराक वाला टीका अंतरिम स्तर पर करीब 66 फीसदी असरदार रहा है लेकिन उसके आंकड़े अमेरिका, लैटिन अमेरिका एवं दक्षिण अफ्रीका में अलग-अलग हैं।
रूस में विकसित टीके स्पूतनिक-वी को भी 91 फीसदी असरदार होने का दावा किया गया है। भारत में डॉ रेड्डीज लैबोरेटरीज ने करीब 1500 वॉलंटियरों पर इसके दूसरे एवं तीसरे चरण के क्लिनिकल परीक्षण किए हैं।
इस तरह भारत में स्वदेशी रूप से विकसित कोवैक्सीन टीके ने अपनी की प्रभावशीलता साबित की है। इसका परीक्षण 25,000 से अधिक वॉलंटियरों पर किया गया है। दूसरी तरफ कोविशील्ड टीके की की प्रभावशीलता को ब्रिटेन एवं ब्राजील में परखा गया था।

अंतरिम प्रभावशीलता आंकड़े से क्या उम्मीद की जाए?
भारत बायोटेक ने कहा है कि क्लिनिकल परीक्षण अंतिम विश्लेषण आने तक जारी रहेगा ताकि अतिरिक्त द्वितीयक अध्ययन में कोवैक्सीन की असरकारिता को परखा जा सके। कुछ विशेषज्ञों का मानना है कि कोवैक्सीन टीके के तीसरे चरण का परीक्षण शुरू करने की मंजूरी देने में देरी होने से पुष्ट मामलों की संख्या कम रही है। प्रोफेसर जॉन कहते हैं, ‘इसका तीसरा चरण उस समय शुरू हुआ जब भारत में कोविड संक्रमण के मामले घटने लगे। दवा नियामक चाहता था कि कंपनी तीसरे चरण की तरफ बढऩे के पहले दूसरे चरण के नतीजों का विस्तृत विश्लेषण करे। जबकि कंपनी को पहले ही इसकी मंजूरी दे दी जानी चाहिए थी।’

First Published : March 5, 2021 | 11:01 PM IST