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चुनिंदा देशोंके बीच वैश्विक विकास पर चर्चा संभव नहीं

Last Updated- December 12, 2022 | 10:44 AM IST

प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने सोमवार को कहा कि वैश्विक विकास पर चर्चा केवल चुनिंदा देशों के बीच नहीं हो सकती और इसका दायरा बड़ा और मुद्दे व्यापक होने चाहिए। उन्होंने विकास की रूपरेखा में मानव-केंद्रित दृष्टिकोण अपनाने की भी पुरजोर वकालत की। छठे भारत-जापान संवाद सम्मेलन को संबोधित करते हुए प्रधानमंत्री ने पारंपरिक बौद्ध साहित्य और शास्त्रों के लिए एक पुस्तकालय के निर्माण का प्रस्ताव भी रखा। उन्होंने कहा, ‘शत्रुता से कभी शांति हासिल नहीं होगी। पहले भी मानवता ने सहयोग के बजाय टकराव का रास्ता अपनाया। साम्राज्यवाद से लेकर विश्व युद्ध तक, हथियारों की दौड़ से लेकर अंतरिक्ष की दौड़ तक, हमने संवाद किए लेकिन उनका उद्देश्य दूसरों को नीचे खींचना था। आइए अब हम मिलकर ऊपर उठें।’
प्रधानमंत्री ने कहा कि गौतम बुद्ध की शिक्षाओं से शत्रुता को सशक्तता में बदलने की शक्ति मिलती है। उन्होंने कहा, ‘वे हमें बीत चुके वक्त से सीखने और बेहतर भविष्य बनाने की दिशा में काम करने की शिक्षा देती हैं। यह हमारी आने वाली पीढिय़ों के लिए सबसे अच्छी सेवा है।’ मानवता को नीतियों के केंद्र में रखने की जरूरत पर बल देते हुए मोदी ने प्रकृति के साथ सामंजस्यपूर्ण सहअस्तित्व को अस्तित्व का मुख्य आधार बनाए जाने की वकालत की।
उन्होंने कहा, ‘वैश्विक विकास की चर्चा कुछ लोगों के बीच ही नहीं की जा सकती है। इसके लिए दायरे का बड़ा होना जरूरी है। इसके लिए कार्य सूची भी व्यापक होनी चाहिए। प्रगति के स्वरूप को मानव केंद्रित दृष्टिकोण का अनुसरण करना चाहिए और वह हमारे परिवेश के अनुरूप होना चाहिए।’ प्रधानमंत्री ने भगवान बुद्ध के आदर्शों और विचारों को खासकर युवाओं के बीच बढ़ावा देने के लिए इस मंच की जमकर सराहना की। मोदी ने कहा है कि खुले दिमाग के, लोकतांत्रिक और पारदर्शी समाज नवाचार के लिए सबसे उपयुक्त हैं। उन्होंने कहा, ‘आज किए जाने वाले हमारे कार्य, हमारे आने वाले समय का आकार और रास्ता तय करेंगे। यह दशक और उससे आगे का समय उन समाजों का होगा, जो सीखने और साथ-साथ नव परिवर्तन करने पर उचित ध्यान देंगे। यह उज्ज्वल युवा मस्तिष्कों को पोषित करने के बारे में भी है, जिससे आने वाले समय में मानवता के मूल्यों को बढ़ावा मिलेगा। शिक्षण ऐसा होनी चाहिए जिससे नवाचार को आगे बढ़ाया जा सके। कुल मिलाकर नवाचार मानव सशक्तिकरण का मुख्य आधार है।’  भारत-जापान संवाद के महत्व पर जोर देते हुए प्रधानमंत्री ने कहा कि इसे पृथ्वी पर सकारात्मकता, एकता और करुणा की भावना का प्रसार करना चाहिए।  

वियतनाम अहम साझेदार
वियतनाम को भारत का एक महत्त्वपूर्ण साझेदार बताते हुए प्रधानमंत्री मोदी ने कहा कि दोनों देशों के बीच सहयोग हिंद-प्रशांत क्षेत्र में शांति और स्थिरता बनाए रखने में योगदान दे सकता है। वियतनाम के प्रधानमंत्री गुएन जुआन फुक के साथ एक डिजिटल शिखर सम्मेलन में मोदी ने कहा कि भारत वियतनाम के साथ अपने संबंधों को दीर्घकालिक और रणनीतिक दृष्टिकोण से देखता है। उन्होंने कहा, वियतनाम भारत की ऐक्ट ईस्ट नीति का एक महत्वपूर्ण स्तंभ है। उन्होंने कहा कि दोनों देशों के बीच व्यापक रणनीतिक साझेदारी का दायरा काफी विस्तृत है। मोदी ने कहा, ‘हिंद-प्रशांत क्षेत्र में शांति, स्थिरता और समृद्धि  हमारा साझा उद्देश्य है। हमारा सहयोग क्षेत्र में शांति और स्थिरता बनाए रखने में योगदान दे सकता है।’ उन्होंने कोरोनावायरस महामारी से निपटने के लिए वियतनाम की भी सराहना की।
 भारत और वियतनाम ने 2016 में अपने द्विपक्षीय संबंधों को समग्र रणनीतिक साझेदारी तक विस्तारित किया और रक्षा सहयोग तेजी से बढ़ते इन द्विपक्षीय संबंधों में सबसे महत्त्वपूर्ण स्तभों में से एक रहा।  दोनों ही देशों का हिंद-प्रशांत क्षेत्र में काफी कुछ दांव पर है और उनका लक्ष्य इस क्षेत्र के लिए अपने-अपने दृष्टिकोण के आधार पर वहां सहयोग बढ़ाने की संभावनाएं तलाशने का हैं। पिछले साल बैंकाक में पूर्व एशिया सम्मेलन में प्रधानमंत्री मोदी ने समुद्री क्षेत्र के संरक्षण और सतत इस्तेमाल तथा सुरक्षित समुद्री क्षेत्र के निर्माण के लिए सार्थक प्रयास करने के लिए हिंद-प्रशांत महासागर पहल की स्थापना का प्रस्ताव दिया था।
दस सदस्यीय आसियान ने आसियान आउटलुक ऑन इंडो पैसफिक (एओआईपी) नामक दस्तावेज में इस क्षेत्र के वास्ते अपना दृष्टिकोण सामने रखा है।   

First Published - December 21, 2020 | 11:55 PM IST

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